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पराक्रमशाली राष्ट्रीय महापुरुष थे सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य : प्रो सतीश चंद्र मित्तल

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itihas sankalan yojnaनई दिल्ली. सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य सोलहवीं सदी के उन राष्ट्रीय महापुरुषों में से एक थे जिनकी वीरता ने विदेशी आक्रांताओं और मुगल साम्राज्य के छक्के छुड़ा दिए. मात्र 29 दिनों के शासन काल में उन्होंने हिंदवी स्वराज की ओर अनेक कदम उठाये. 24 युद्धों में से 22 में सफ़ल रहे भारत माता के यह वीर सपूत दिल्ली से सटे रेवाड़ी में जन्मे और 7 अक्टूबर 1556 ई के दिन दिल्ली के पुराने किले में सम्राट विक्रमादित्य की उपाधि के साथ उनका राज्यारोहण हुआ. प्रसिद्ध इतिहासकार व अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो (डॉ) सतीश चंद्र मित्तल ने सम्राट के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पानीपत – द्वितीय युद्ध के दौरान दुर्घटनावश यदि उनकी और उनके हाथी की आँख में तीर न लगा होता तो मुगलिया सल्तनत और विदेशी आक्रांताओं का उसी समय समूल नष्ट हो गया होता.

itihas sankalan yojna-उपर्युक्त बातें उन्होंने अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना द्वारा 5 अक्टूबर को दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय सभागार में आयोजित गोष्ठी – “एक विस्मृत हिंदू सम्राट महाराजा हेमचंद्र विक्रमादित्य को स्मरणांजलि में कहीं. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री व प्रख्यात विचारक डॉ सुब्रह्मण्यम् स्वामी के कहा कि मुगल आक्रांताओं व अंग्रेज़ों ने दुनिया के जिन-जिन देशों में आक्रमण किये वहाँ की लगभग शत् प्रतिशत् आबादी को इस्लाम या ईसाइयत में परिवर्तित कर दिया. ईरान, ईराक, मिश्र व यूरोप इसके स्पष्ट उदाहरण हैं. किन्तु भारत पर 800 वर्ष मुगलों व 200 वर्ष अंग्रेज़ों ने शासन किया. तो भी, हमारी हिंदू जनसंख्या अभी 85% से ज़्यादा है. इसके पीछे महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई तथा सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य जैसे रणबांकुरों व धर्मधुरंधर देशभक्तों का बलिदान ही तो है. उन्होंने अंग्रेज़ों तथा साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित तथाकथित इतिहासकारों को आड़े हाथों लेते हुए यह भी कहा कि ऐसे योद्धाओं के पराक्रमशाली चरित्र को षड्यंत्रपूर्वक पाठ्यपुस्तकों से बाहर रखा गया जिसे शामिल किये जाने की नितांत आवश्यकता है जिससे देश की युवा पीढ़ी अपने पूर्वजों की शौर्यगाथा तथा उनके महान कार्यों को याद कर अपने भविष्य को सँवार सके.

itihas sankalan yojna--पूर्ण रूप से भरे सभागार में विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री श्री विनायक देशपांडे ने कहा कि भारत की स्वतंत्रता व हिंदवी स्वराज्य की स्थापना के कर्णधार महापुरुषों के स्मृतिचिह्न व स्मारक बनाये जाने की आज महती आवश्यकता है. यह दिल्ली का दुर्भाग्य है कि इंद्रप्रस्थ की स्थापना करने वाले पांडवों व उनके राजा युधिष्ठिर तक का कोई स्मारक भी दिल्ली में नहीं है. पृथ्वीराज चौहान, बाजीराव पेशवा, सदाशिवराव पेशवा तथा हेमचंद्र विक्रमादित्य जैसे भारत माँ के सपूतों को नमन करने हेतु उनके स्मारक बनाये जाने चाहिये जिससे युवा पीढ़ी को देश के पराक्रमशाली व संघर्षपूर्ण गौरव का ज्ञान हो सके.

इतिहास संकलन समिति के राष्ट्रीय संगठन सचिव श्री बालमुकुंद पांडे ने अतिथियों का परिचय कराया तथा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में संस्कृत के विभागाध्यक्ष प्रो संतोश शुक्ला द्वारा मंच संचालन किया गया तो वहीं समिति के प्रांत महामंत्री श्री अरुण पांडे कार्यक्रम के संयोजक थे. कार्यक्रम में प्रसिद्ध इतिहासकार श्री सोहन लाल जी रामरंग, विहिप के क्षेत्रीय संगठन मंत्री श्री करुणा प्रकाश, प्रान्त महामंत्री श्री राम कृष्ण श्रीवास्तव तथा लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत अकादमी के उपकुलपति प्रो राम निवास पाण्डे सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे.

shri Vinayak Deshpandey-VHP addrsing Hemchandra Vikramaditya workshopइस कार्यक्रम में “महाराजा हेम चन्द्र विक्रमादित्य” तथा “हिन्दूधर्म व देवलोक” नामक दो पुस्तकों का विमोचन भी किया गया.

 

 

 

Hemchandra Vikramaditya workshop

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