नई दिल्ली. भारत नीति प्रतिष्ठान ने 14 अक्टूबर को भा.नी.प्र. के सेमिनार कक्ष में “भारतीय राजनीति में मूलभूत परिवर्तन” विषय पर एक परिसंवाद कार्यक्रम का आयोजन किया.
परिसंवाद में वक्ता थे विख्यात विद्वान और बेल्जियम के घेंट विश्वविद्यालय में विज्ञान के प्राध्यापक प्रो. बालगंगाधर. उन्होंने इस रोचक तथ्य से दर्शकों को अवगत कराया कि अपने शुरुआती शैक्षणिक जीवन में वे मार्क्सवाद की ओर झुके, किन्तु शीघ्र ही मार्क्स और उनकी रूढि़यों से मोहभंग हो गया. इसके पश्चात् प्रो. बालगंगाधर अपने आगे के अध्ययन के लिए यूरोप पहुंचे, जहां उन्होंने विज्ञान और दर्शन दोनों का अध्ययन किया.
केन्द्र में सत्ता परिवर्तन का स्वागत करते हुए प्रो. बालगंगाधर ने सावधान किया कि मात्र सरकार का बदलना उन वास्तविक और मूलभूत परिवर्तनों की गारंटी नहीं है, जिसकी भारतीय समाज, शिक्षा जगत और बौद्धिक वर्ग को आवश्यकता है. अनेक शताब्दियों के मुस्लिम व यूरोपीय औपनिवेशिक वर्चस्व ने हममें अपने ही इतिहास, संस्कृति और अनुभूतियों के प्रति विदेशी और परकीय मानसिकता से भर दिया है. भारत के लिए इस मानसिकता को असली खतरा बताते हुए प्रो. बालगंगाधर ने इस बात पर बल दिया कि आज हमें प्रत्यभिज्ञान यानि अपनी संस्कृति एवं मूल्यों के पुनरुत्थान की आवश्यकता है. यह प्रत्यभिज्ञान न केवल भारत बल्कि पूरी मानवता को भी लाभान्वित करेगा.
प्रो. बालगंगाधर ने अनेक विषयों की पढ़ाई की वर्तमान व्यवस्था व परिपाटी पर तीक्ष्ण हमला करते हुए कहा कि विज्ञान के नाम से जिन अनेक विषयों को पढ़ाया जाता है, वे दरअसल विज्ञान नहीं, बल्कि विचारधाराएं हैं, जिनकी जड़ें बाइबिल से निकली मजहबी विचारधारा में है. उन्होंने कहा कि वर्तमान विश्व में इसका प्रतिकार करने में भारतीय विद्वानों का विशेष दायित्व व भूमिका है. भ्रष्टाचार के प्रति सजग करते हुए प्रो. बालगंगाधर ने चेतावनी दी कि यदि भारत ने अपने जनजीवन के हर क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार के दानव का संहार नहीं किया, तो बहुत ही शीघ्र हम पायेंगे कि अनेक छोटे राष्ट्र हमें बहुत पीछे छोड़ चुके होंगे. नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार को मिले विराट जनादेश का स्वागत करते हुए प्रो. बालगंगाधर ने कहा कि यह भारत की राजनीति व समाज दोनों ही में एक मूलभूत परिवर्तन का निश्चय ही संकेत है, किन्तु इस परिवर्तन को टिकाए रखना हम सभी का दायित्व है.
भारत नीति प्रतिष्ठान के मानद निदेशक प्रो. राकेश सिन्हा ने प्रो. बालगंगाधर का उनकी विद्वत्तापूर्ण व्याख्यान के लिए आभार प्रकट करते हुए यह कहा कि बौद्धिकता और विमर्श की भारतीय परंपरा पश्चिम से मूलतः भिन्न है. जहां पश्चिम की परंपरा “मैं ही“ से उत्पन्न है, वहीं भारतीय चिंतन “मैं भी“ का प्रतिपादन करता है. प्रो. सिन्हा ने कहा कि भा.नी.प्र. बौद्धिक विमर्श ही नहीं बल्कि बुद्धिजीवी मात्र की परिभाषा को बदलने के लिए प्रयासरत है.