लखनऊ. वैश्विक एवं आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ डॉ. रहीस सिंह का मानना है कि भारतीय मीडिया भटकाव की स्थिति में है. उसने शान्ति स्थापना के बजाय तनाव को बढ़ावा दिया है.
विश्व संवाद केन्द्र ट्रस्ट लखनऊ द्वारा संचालित “लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान” द्वारा आयोजित “जनसंचार के विविध आयाम” विषयक 5 से 7 अक्तूबर तक यहां चली त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में उन्होंने कहा कि विवाद की स्थिति का निर्माण हथियार करते हैं और हथियारों की धार संचार से तय होती है. इसलिये आने वाले समय में हमें जनसंचार के इस इस भयावह खतरे के प्रति भी सावधान रहना होगा.
श्री सिंह ने कहा कि मीडिया ने वर्तमान समय में निजी राय से ही समाज हांकने की परम्परा अपना ली है. देश दुनिया के दर्जनों ऐतिहासिक और अनिवार्य तथ्यों के स्थान पर वह अपनी मनपसंद विषय का ही चुनाव करता है. उन्होंने कहा कि संवाद और विवाद की प्रक्रिया में एक आईना है जो संवाद करता है. फिर वही आईना विवाद पैदा कर देता है.
उन्होंने कहा कि पत्रकारिता का अपना अनुभव तत्व होता है, वह पढ़ने की नहीं, करने की चीज होती है. सम्पादक को मालिक या विज्ञापन किसी अच्छे समाचार को छपने से रोकता नहीं है, बशर्ते कि आप उसे प्रकाशित करना चाहते हों.
राज्य के नागरिक सुरक्षा विभाग के महानिदेशक श्री अमिताभ ठाकुर ने एक सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा कि मीडिया को हमेशा अपनी भूमिका के सन्दर्भ में जागरूक रहना चाहिये. केवल परिस्थितियों को दोषी न मानें. मिशन और प्रोफेशन में कोई व्दंव्द नहीं है. अच्छा प्रोफेशनल भी अच्छा मिशनरी हो सकता है. मिशन के साथ साथ एक पत्रकार के लिये जीवन की मूलभूत जरूरतों को पूरा करते हुए अच्छा जीवन स्तर जीना भी अपराध नहीं माना जाना चाहिये.
‘प्रिंट मीडिया: मिशन और प्रोफेशन’ विषयक प्रथम सत्र के दौरान विषय प्रवेश करते हुए विभाग प्रचारक व सामाजिक कार्यकर्ता श्री अमरनाथ जी ने अतिथियों का स्वागत किया. सिटी टाइम्स में सम्पादक डॉ. मत्स्येन्द्र प्रभाकर ने विषय प्रवेश करते हुए प्रिंट मीडिया के विभिन्न उपादानों और उसमें किस तरह से मिशनरी और व्यावसायिक स्वरूप के मध्य संतुलन बनाकर रख सकते हैं, इस पर विस्तार से प्रकाश डाला. विशिष्ट वक्ता के तौर पर बोलते हुए द डेक्कन हेराल्ड के विशेष संवाददाता डॉ. संजय पाण्डेय ने बताया कि मीडिया में प्रोफेशनलिज्म का शामिल होना गलत नहीं है, बशर्ते कि हम समाचार की दशा और दिशा का ध्यान रखें.
‘पत्रकारिता की भाषा और शिल्प’ विषयक व्दितीय सत्र में विषय प्रवेश करते हुए जनयुग डाट काम के सम्पादक डॉ. आशीष वशिष्ठ ने कहा कि शब्द प्रमाण है. शब्द ब्रह्म का रूप होता है. पत्र की भाषा भी आम बोलचाल की भाषा ही होनी चाहिये. भाषा के प्रयोग में निष्पक्षता और पूर्वाग्रह रहित शब्दावली और शैली का इस्तेमाल करना चाहिये. जैसे हरिजन, हिजड़े और वेश्या जैसे शब्दों को लिखने से अब परहेज किया जाता है, ठीक उसी प्रकार भाषा को गत्यात्मक होना चाहिये. शिल्प के स्तर पर हमेशा ही इस बात का ख्याल रखना चाहिये कि हमारा मीडिया लेखन किस वर्ग को लक्षित करके किया जा रहा है. सत्र की अध्यक्षता कर रहे स्वतंत्र भारत के पूर्व सम्पादक श्री नन्द किशोर श्रीवास्तव ने बताया कि हम पहले कहते थे कि अपनी भाषा सुधारनी हो तो समाचार पत्र और पत्रिकायें पढ़िये. अब तो इसका उलटा हो जायेगा. ठीक होने का अवसर तो नहीं है, खराब होने की पूरी गुंजाइश बनी रहेगी.
अतिथियों का धन्यवाद ‘लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान’ के निदेशक श्री अशोक कुमार सिन्हा द्वारा दिया गया. उन्होंने बताया कि इस संगोष्ठी में कुल 98 प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया. आयोजन को सफल बनाने में संस्थान के छात्र श्री ओम शंकर पाण्डेय, श्री विनोद कुमार मिश्र, श्री कृष्ण कुमार, श्री मनोज कुमार चौरसिया, श्री अजीत कुशवाहा, श्री ऋषि कुमार सिंह, कु. चांदनी गुप्ता ने पूरा योगदान दिया. संगोष्ठी का तीनों दिन तक सफल संचालन संगोष्ठी संयोजक अतुल कुमार सिंह ने किया. इस त्रिदिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया था.