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‘भारत को परम वैभवशाली बनाने के लिये युवा ऊर्जा अनिवार्य’

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Patanjali Yog Bhawan mein Sarsanghchalak ji Sambodhit karte hueहरिद्वार. (मीडिया सेंटर). युवा अन्याय, अपमान सहन नहीं करता, कुछ भव्य,दिव्य करना चाहता है. भारत के माता पिता अपने बच्चों को स्वामी विवेकानन्द की कहानी सुनाते है, किसी धनकुबेर की नहीं. अगर अपने समाज, देश, दुनिया के दुःख आपकी नींद हराम नहीं करते है तो आप तरूण कहलाने के हकदार नहीं है. भारत को परम् वैभवशाली बनाने के लिये तरूणाई की उर्जा अनिवार्य है.

यह कहना है राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के परम पूजनीय सरसंघचालक श्रीमान मोहनराव जी भागवत का. श्री भागवत 29 नवंबर को यहां पतंजलि योगपीठ फेज टू में आयोजित त्रिदिवसीय नवसृजन शिविर के  दूसरे दिन के प्रथम सामूहिक सत्र को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि तरूण माने युवा और युवाओ में  जोश होता है. जिसमें जोश नहीं होता व तरूण नहीं. पर जोश से भरे युवा होश न खोयें, इसके लिये निरन्तर स्व-नियंत्रण का अभ्यास करना पड़ता है. इसीलिये कहा जाता है जिसकी अपने शरीर पर पकड़ ढीली हो, वह बूढ़ा है इसलिये युवा का तात्पर्य है स्व पर पूर्ण नियंत्रण. तरूण का अर्थ उम्र से नहीं उत्साह और ऊर्जा है.

01उन्होंने कहा कि तरूणों में स्वार्थबुद्धि का होना स्वाभाविक है, लेकिन यह पशु प्रवृत्ति है. मनुष्य होने के नाते इस पर नियंत्रण होना आवश्यक है. यह पशु की पहचान है कि जहां उसे भोजन नहीं मिलेगा, वह स्थान छोड़ देता है, भले ही वह उसका देश हो, लेकिन मनुष्य उससे इसी मामले में भिन्न होता है. उसके मन में दूसरे के दुःख के प्रति संवेदना होती है, अपने देश के प्रति प्रेम होता है, वह सिर्फ भोजन के लिये देश नहीं छोड़ता वह उसके लिये अपना जीवन लगाता है.

यह शिविर तरुण स्वयंसेवको का है, जिसके जीवन की एक दिशा होती है. जिस तरह से तीर जरा सा टेढ़ा होने पर लक्ष्य से भटक जाता है, उसी तरह से तरूणाई की ऊर्जा भटकने पर समाप्त हो जाती है. इसलिये कड़े अभ्यास से अपने ध्यान को भटकने से बचाना है. उन्होनने कहा कि स्वयंसेवक का अर्थ है पहले स्वयंसेवा के लिये प्रस्तुत होना और बाद में अपनी सेवा से दूसरों को प्रेरित करना. काम बड़ा करना है तो छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना आवश्यक है. उन्होंने मोदी के अमेरिका भ्रमण का उदाहरण दिया और कहा कि उन्होंने पूरे अमेरिका भ्रमण में अपना नवरात्रि का व्रत चालू रखा और पूरा संयम बरता.यह संयम का बड़ा उदाहरण है. दुनिया की सारी लड़ाइयां संयम के दम पर ही लड़ी और जीती गई हैं.

02पूजनीय सरसंघचालक ने स्वयंसेवक का मतलब बताते हुए कहा कि जीवनभर परिश्रम करना, इसको बनाये रखने के लिये सतत साधना करना. प्रत्येक स्वयंसेवक को ध्यान रखना चाहिये कि उसे नरपशु की बजाय नारायण बनने की साधना करनी है. अपने स्वार्थ की बजाय समाज के स्वार्थ की चिंता करनी है. उन्होंने कहा कि राष्ट्र को वैभवशाली बनाना है तो भाषण की बजाय आचरण करके दिखाना होगा.

इस सत्र में प्रान्तकार्यवाह लक्ष्मी प्रसाद जायसवाल, संयुक्त क्षेत्र प्रचार प्रमुख कृपाशंकर, अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य इंद्रेश कुमार, दिनेश जी, अशोक बेरी जी, अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख सुरेश राव जोशी, सर्व व्यवस्था प्रमुख डा अनिल वर्मा, सह सर्व व्यवस्था प्रमुख योगेश जी, भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के मुख्य केन्द्रीय प्रभारी डा.राकेश, पूजनीय सरसंघचालक के निजी सचिव दिलीप जी, सह शिविराधिकारी डा. अनिल गुप्ता, शिविर कार्यवाह डा. कपिल, सह शिविर कार्यवाह डा. अरविंद भट्ट आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे. कार्यक्रम का शुभारंभ निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूले के गायन से हुआ.

Patanjali Yog shivir mein Sarsanghchalak ji ko sunte shivirarthi

 

 

 

 

 

 

शिक्षक को बनना होगा जीवन का गुरु, सच्ची मनुष्यता की देनी होगी शिक्षा

हरिद्वार (मीडिया सेंटर). दुनिया में कोई देश वर्तमान शिक्षा पद्धति से संतुष्ट नहीं है. पूरी दुनिया वर्तमान शिक्षा पद्धति में आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत महसूस कर रही है. दुनिया अब पेट भरने वाली शिक्षा से ऊब गई है और उसे सच्चा मनुष्य बनाने वाली शिक्षा पद्धति की जरूरत है. इसके लिये शिक्षा संस्थानों  के संचालकों, शिक्षकों, अभिभावाकों और विद्यार्थियों को गंभीरता से सोचना होगा और इसके लिये कार्य करना होगा.

यह कहना है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  के परमपूजनीय सरसंघचालक मोहन भागवत जी का. वे आज यहां पतंजलि योगपीठ फेज टू के प्रसादम् सभागार में विश्वविद्यालय, महाविद्यालय के प्राध्यापकों  व शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत लोगों से बातचीत कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि आज यह बात बहुत शिद्दत से महसूस की जा रही है कि आज की जो शिक्षा है, वह पेट भरने लायक रोजगार तो दे रही है लेकिन मानवीय संवेदनाओं को कही पीछे छोड़ रही है.  आज शिक्षा की उस पद्धति को अपनाने की जरूरत है, जिसमें अच्छा और सच्चा मनुष्य बनने की प्रेरणा,राष्ट्र का जिम्मेदार नागरिक होने का अहसास हो. इसके साथ ही शिक्षा को सर्व सुलभ और सस्ता बनाना होगा. शिक्षक को सिर्फ शिक्षक नहीं, बल्कि जीवन का शिक्षक बनना होगा. नयी पीढ़ी को शिक्षा दान और दया के रूप में नहीं बल्कि अधिकार के तौर पर देनी पड़ेगी. उन्होंने कहा कि नई तकनीकों की जानकारी, उद्यमों के उत्कृष्टीकरण के लिये विदेशी भाषा और विदेशी संस्थाओं का सहयोग लेने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन उस शिक्षा को अपने देश, अपने राष्ट्र के परिप्रेक्ष्य में प्रयोग करने की कला भी सीखनी पड़ेगी.

पूजनीय सरसंघचालक ने कहा कि सरकार शिक्षा में सुधार करे या न करे, संघ के स्वयंसेवक इसके लिये कार्य कर सकते हैं. इसके साथ ही विद्यार्थियों को संघ की शाखा में आने के लिये प्रेरित कर भी हम उनको नई शिक्षा दे सकते हैं. उन्होंने कहा कि शिक्षा  में परिवर्तन के लिये स्वयंसेवकों को खुद आगे आना होगा और वातावरण बनाना होगा. उनम्होंने कहा कि संघ के साथ ही व्यक्तिगत स्तर पर गायत्री परिवार, आर्य समाज, शांति निकेतन, पांडिचेरी में महर्षि अरविंद का आश्रम आदि इस क्षेत्र में बहुत ही प्रशंसनीय कार्य कर रहे हैं.

सरसंघचालक ने कार्यक्रम में उपस्थित प्राध्यापकों एवं शिक्षाविदों के संघ के बारे में पूछे गये कई तरह के सवालों का जवाब दिया.

कार्यक्रम में संयुक्त क्षेत्र प्रचार प्रमुख कृपाशंकर जी, अखिल भारतीय कार्यकारिण सदस्य डा. दिनेश जी, क्षेत्र प्रचारक प्रमुख किशन जी, क्षेत्र बौद्धिक प्रमुख डा. सुशील जी, क्षेत्र संपर्क प्रमुख शशिकांत दीक्षित ,क्षेत्र संघचालक दर्शनलाल जी, प्रांत संघचालक चंद्रपाल सिंह नेगी, शिविर अधिकारी बहादुर सिंह बिष्ट आदि लोग प्रमुख रूप से उपस्थित रहे.

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