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भारत ने दुनिया को जीवन मूल्य की संस्कृति दी है – इंद्रेश कुमार जी

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वाराणसी (विसंकें). धर्म संस्कृति संगम काशी एवं धर्म मीमांसा विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में छात्रवृत्ति वितरण समारोह तथा दो दिवसीय ‘वैश्विक परिप्रेक्ष्य में सर्वधर्म समभाव’ विषय पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में पहले दिन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म संकाय के सभागार में समारोह के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य इन्द्रेश कुमार जी ने कहा कि ज्ञान को विद्वता की भाषा में ही नहीं, लोक भाषा में भी सुनाया जा सकता है. संत अपने आचरण से सबको साथ लेकर चलता है, जिस कारण वह पूजा जाता है. जबकि विद्वान अकेला चलता है, जिससे वह सम्मानित होता है. धर्म अपने आप में पूर्ण रूप से केवल धर्म ही है. इसमें जीवन मूल्य हैं. इसे किसी विशेषता की जरूरत नहीं है. धर्म के साथ विश्लेषण से पंथ बनता है. पंथ में परंपरा होती है. आज लोग विश्लेषण युक्त पंथ को धर्म मानते हैं. जबकि धर्म में जीवन मूल्य और संस्कार होता है. पूरे विश्व के लोगों से पूछा जाए कि पढ़ने, कमाने, ऐशो-आराम के लिये कहां जाएं तो लोग पाश्चात्य देश अमेरिका, ब्रिटेन, आदि के नाम बताते हैं. मानवीय जीवन मूल्य और ईश्वरीय दर्शन जीने के लिए कहां जाएं तो लोग भारत का नाम लेते हैं. भारत ने दुनिया को जीवन मूल्य की संस्कृति दी है, दुनिया के सभी देशों में भ्रष्टाचार, आतंकवाद, हिंसा की लड़ाई हो रही है. जबकि भारत में विभिन्न पंथ होते हुए भी हिंसा नहीं होती है. दुनिया ने पंथ दिया, जबकि भारत ने विश्व को धर्म दिया. पंथ से ही द्वेष, हिंसा, भ्रष्टाचार का जन्म हुआ. उन्होंने कहा कि भारत में जन्में सभी जाति, धर्म, सम्प्रदाय, पंथ, के लोगों ने भारत को माता माना है. माता से बड़ी धरती माता सबका भरण पोषण करती है. इस धरती माता का भी भगवान ईश्वर है, जिसकी हम आराधना करते हैं. जबकि विश्व के दूसरे देशों ने इसे धरती मात्र माना है. भारत ने दुनिया को संदेश दिया की एक मां, एक ईश्वर है. यही सर्वधर्म समभाव है. इस जीवन मूल्य को जीवन में उतारना कठिन है. धर्म के सत्य के साथ दुनिया में कोई विवाद नहीं है, पंथों में ही विवाद है. धर्म से चरित्र, जीवन मूल्य, आचरण नैतिकता आते हैं. जिसमें संस्कार नहीं, उसमें जीवन मूल्य नहीं हैं. आज हमें विवेकानन्द, महात्मा गांधी, मालवीय जी, सुभाष चन्द्र बोस जैसे लोगों को ढूंढना पड़ता है. लेकिन ये लोग अपने काल समय में थे. ठीक वैसे ही धर्म पर बोलने वाले बहुत से हैं. लेकिन उस पर चलने वाले नहीं मिलते.

कार्यक्रम की अध्यक्ष नंदिता शास्त्री जी (प्राचार्या, पाणिनी कन्या महाविद्यालय) ने कहा कि हमारे विचार एक हों, हमारा दृष्टिकोण एक हो, तभी सर्वधर्म समभाव की प्राप्ति हो सकती है. विश्व में समभाव प्राप्त करना है तो वेदों के निर्देशों का पालन करना होगा. सबके हित की बात करनी होगी.

मुख्य अतिथि पूर्व कुलपति किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी प्रो. चूडामणि गोपाल जी ने कहा कि भारत ने ही सभी देशों को ज्ञान, विज्ञान, दर्शन, अध्यात्म दिया. लेकिन दुर्भाग्यवश यह देश आज कितना पीछे चल रहा है. हम जीवन में दूसरों का हित सोचें, यही धर्म है. मनुष्य वही है, जो सम्पूर्ण जीव के कल्याण का ध्यान रखे. विशिष्ट अतिथि रेवती साकलकर जी ने कहा कि सभी को वेद धारण करना चाहिए. विश्व में वेदों की शिक्षा दी जाए, समभाव पैदा किया जाए. केवल मनुष्य ही नहीं, सम्पूर्ण जीव सृष्टि का आदर करके समभाव लाया जा सकता है. कार्यक्रम में प्रो. चन्द्रमा पाण्डेय ने भी विचार व्यक्त किये. कार्यक्रम का शुभारम्भ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन वैदिक मंगलाचरण से हुआ. कार्यक्रम में पांच छात्रों यज्ञनारायण, स्वाति कुमारी, टुम्पाराय, मणिश्री, विनय कुमार को छात्रवृत्ति प्रदान कर सम्मानित किया गया.

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