मुंबई. उपराष्ट्रपति वेंकैय्या नायडू जी ने कहा कि देश के युवकों को सकारात्मक एवं रचनात्मक वृत्ति से कार्य करने की आवश्यकता है. हर एक व्यक्ति अपना काम करे तो वह भी देश सेवा ही है. 130 करोड़ भारतीयों के एकत्रित प्रयत्नों के कारण भारत आज विश्वगुरू बनने की ओर तेज गति से बढ़ रहा है. वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा आयोजित प्रथम स्व. यशवंतराव केलकर स्मृति व्याख्यान में संबोधित कर रहे थे.
मुंबई में विशिष्ट आमंत्रित व्यक्तियों के लिये आयोजित कार्यक्रम में महाराष्ट्र के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी जी अध्यक्ष के रूप में तथा उद्योगपति अजय पिरामल प्रमुख अतिथि के रूप में उपस्थित थे. मंच पर अभाविप के राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुनील आंबेकर जी, महामंत्री आशीष चौहान, मुंबई शेयर मार्केट से नयन मेहेत्रा आदि मान्यवर उपस्थित थे. नागालैंड तथा असम के पूर्व राज्यपाल पद्मनाथ आचार्य भी श्रोताओं में उपस्थित थे.
वेंकैय्या नायडू जी ने “राष्ट्र प्रथम” की अवधारणा पर अपने विचार प्रकट किये. उन्होंने कहा जातिभेद तथा स्त्री-पुरुष भेद को भारतीय संस्कृति में, धर्म ग्रंथों में और शास्त्रों में कोई स्थान नहीं. जाति एवं स्त्री पुरुष भेद यह देश को लगा कलंक है. यह भेदाभेद को दूर करना आवश्यक है. भारतीय संस्कृति में स्त्री का विशेष महत्त्व है. शिक्षा विभाग देवी सरस्वती के पास, सुरक्षा विभाग देवी पार्वती के पास तथा वित्त विभाग देवी लक्ष्मी के पास है.
उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी जी ने ‘गावों में चलो’, ऐसा आह्वान किया था. परंतु हम शहरों की ओर चले आए. नगरीकरण से हम भाग नहीं सकते, परंतु उसके परिणाम और बढ़ता आकर्षण अवश्य कम कर सकते हैं. शाश्वत कृषि, जलसंवर्धन, वनीकरण, आरोग्य के लिये योग, यह केवल राजनीति के लिये नहीं, बल्कि राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में होना आवश्यक है.
उपराष्ट्रपति ने कहा कि हर चीज के लिये कानून बनाना आवश्यक नहीं है. आगे बढ़कर समाज में हमें खुद बदलाव करना चाहिये, तब ही समाज संतुष्ट और राष्ट्र शक्तिशाली बन सकता है. देश में किसी पर अन्याय न हो यही हमारा लक्ष्य होना चाहिये.
देश के युवाओं को “राष्ट्र प्रथम” का विचार करते समय अपने आरोग्य पर ध्यान देना आवश्यक है. जंक फूड, पाश्चात्य पद्धति के निकृष्ट व्यंजन नहीं खाने चाहिये. अच्छी तरह पकाए हुए एवं पोषण से परिपूर्ण पदार्थ खाने चाहिएं, तभी काम करने के लिये ताकत प्राप्त होगी.
राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी जी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद की कल्पना का बलशाली भारत बनने की दिशा में हम मार्गक्रमण कर रहे हैं. इस कार्य में अभाविप का बहुत बड़ा योगदान है. श्रीगुरूजी, दत्तोपंत ठेंगड़ी, पं. दीनदयाल उपाध्याय की तरह ही स्व. यशवंतराव केलकर के विचारों ने मेरा मार्गदर्शन किया है.