‘मां की कोख से जन्म लेने के पश्चात् हमारा शरीर तो मनुष्य का होता है, परन्तु क्या हम मनुष्य हैं, इस बात पर प्रश्नचिन्ह अंकित होता है? क्योंकि मनुष्य बनने के लिए विशेष गुणों की आवश्यकता होती है, जिसके बिना वह पूर्ण हो ही नहीं सकता’. ये विचार हैं सुप्रसिद्ध चिंतक श्री विवेक घलसासी के. श्री घलसाली पिछले दिनों मध्य प्रदेश के दमोह में आयोजित श्रीगुरुजी व्याख्यानमाला को सम्बोधित कर रहे थे.
कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य वक्ता श्री विवेक घलसली,श्री बहादुर सिंह, श्री विवेक शेण्डेय एवं डॉ. कृष्ण सदाशिव पित्रे ने मां वीणापाणी, भारत माता, डॉ. हेडगेवार एवं श्रीगुरुजी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन कर किया. श्री घलसासी ने कहा कि वर्तमान में हम कहां हैं और किस प्रकार हैं, यह चिंतन करने की आवश्यकता है. क्या हम सच्चे भारतीय हैं अथवा सिर्फ भारतीय होने का स्वांग रचते हैं? अनेक तर्कों एवं प्रमाणों को प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा कि दिन की शुरुआत अच्छी बातों के साथ होनी चाहिये. पृथ्वी, सूर्य एवं मां को प्रणाम एवं उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना चाहिए. वहीं रसोई घर के विषय में कहा कि यह मनुष्य बनाने वाली एक प्रयोगशाला है जिसमें पके हुए भोजन को हम ग्रहण कर शरीर को पुष्ट करते हैं.
वर्तमान समय में परिवारों में बढ़ रही संवादहीनता तथा एकल परिवारों पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि अब तो दीवार पर टंगे सास-श्वसुर को पसंद करने वाली बहुओं की संख्या बढ़ रही है जो निश्चित रूप से चिंतन का विषय है. साधनों से नहीं साधना से परिवार बनते हैं. सरस्वती वंदना आकाशवाणी व दूरदर्शन के कलाकार एवं संस्कार भारती के प्रांत सह संगठन मंत्री श्री नवोदित निगम के मार्गदर्शन में प्रस्तुत की गई. कार्यक्रम की अध्यक्षता सागर विश्वविद्यालय के पूर्व डीन डॉ. कृष्ण सदाशिव पित्रे ने की.