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मां अमृतानंदमयी के बहाने हिंदू आस्था पर विषवमन

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क्या यह मात्र एक विस्मयजनक संयोग से परे एक सुनियोजित साजिश नहीं लगती है कि देश में ठीक आम चुनावों के पहले हिन्दू विद्वेषीग्रंथों व अनेक निन्दात्मक लेखों के प्रकाशन की बाढ़ जैसी आ गई है? साथ ही हिन्दुओं की भावनाओं को मर्मान्तक रूप से आहत करने वाले अनेक वर्षों या दशकों पुराने ग्रंथों व सामग्री का पुनःप्रकाशन/पुनःमुद्रण व पाकिस्तानी मीडिया विशेष कर ‘डॉन’ और ‘जंग’ नामक दैनिकों में हिन्दू आस्था पर खुलकर विषवमन करने वाले लेखों का स्रोत सहित प्रकाशन हमारे देश के राष्ट्रीय कहलाने वाले अंग्रेजी दैनिकों में अबाध गति से जारी है.

जहाँ तक एशियन एज, डेक्कन क्रॉनिकल, टाइम्स ऑफ इंडिया या इंडियन एक्सप्रेस का प्रश्न है, तो पिछले कई महीनों से एक दो नहीं, ऐसे पुनर्मुद्रण पिछली या आज की पीढ़ी के पाकिस्तानी लेखकों को खुलकर देश के प्रति घृणा के साथ प्रकाशित कर रहा है. अंग्रेजी भाषी सामान्य जनता व पाठकों को विपुल स्वयंसिद्ध साक्ष्यों को अन्यत्र देखने की जरूरत नहीं है कि पाकिस्तानी मीडिया हिन्दुओं को किस हेय दृष्टि से देखता है.

हिन्दू धर्म के वैकल्पिक इतिहास का मनोविश्लेषण के नाम पर वेंडी डोनिगेर नाम की अमेरिकी लेखिका के विश्वविख्यात प्रकाशन व उनके भारत स्थित सहयोगी प्रकाशकों द्वारा स्वयंमेव वापस ली हुई विवादित कृति को यदि हम थोड़ी देर के लिये भूल भी जायें तो भी कुछ कुटिल पाश्चात्य अध्येताओं के बदनाम ग्रंथों जैसे जेफ्री कृपाल का ‘काली चाइल्ड’ पॉल कोर्टराइड का गणेशा जो मनोविज्ञान के माध्यम से हिन्दू धर्म पर शोध का दावा करता रहा है, आज पुनः नई हिन्दू विद्वेषी निन्दात्मक उपलब्ध स्थितियों के द्वारा प्रचारित किया जा रहा है. वेंडी डोनिगेर अपनी उपर्युक्त कुख्यात कृति के अतिरिक्त भी पहले ही ‘शिवलिंगम’ का मनोविश्लेषण धर्म और संस्कृति (ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस) ने कुत्सित यौनाचरणों की पृष्ठभूमि ढूंढती रही है. ये स्वयं मानसिक विकृति युक्त (परवर्ट) और भड़काऊ (प्रोवोकोटियर) लेखिका तक कही जा चुकी हैं. अनेक ग्रंथों के आवरण पृष्ठ ही किसी आस्थावान हिन्दू को आँखें नीचे रखने को बाध्य कर सकते हैं?

टाइम्स ऑफ इंडिया का निरुत्तर, निर्लज्ज हिन्दू विद्वेष उस समय हाल में जगजाहिर हुआ, जब उसने सम्पूर्ण विश्व में ‘अमृत बांटती’ केरल के आलाप्पड ग्राम के निर्धन मछुआरे परिवार में जन्मी माँ अमृतानंदमयी के आश्रम पर यौनाचरण, धनलिप्सा का आरोप उनकी बीसों साल साथ-साथ रही आस्ट्रेलियन भक्त गेल गायत्री ट्रेडवेल की हाल ही में प्रकाशित कृति के बहाने किया.

उस ग्रन्थ का नाम है – होली हेल : ए मेमाँयर ऑफ फेथ, डिवोशन एंड प्योर मैजनेस. यह ग्रन्थ  8 अक्टूबर 2013 में वाल्टर डी प्रेस नामक प्रकाशक ने मुद्रित किया था और ‘अमेजन डाट काम’ द्वारा सर्वत्र उपलब्ध है. जिन्हें दुनिया में उनके भक्त और स्वयं राष्ट्रसंघ के अनेक देशों के प्रमुख गले लगाने वाली संत (हगिंग सेंट) के रूप में अपनी अध्यात्मिक ऊर्जा को बाँटने वाली माँ कहते हैं, स्वयं ट्रेडनिल दो दशकों तक कोल्लम में एक निजी सहायक के रूप में साथ रहीं, आज मानसिक रूप से बीमार भक्त की पुस्तक पर देश का अंग्रेजी मीडिया लांछन लगाने में रस ले रहा है.

यह दुष्प्रचार उसी शैली में है जब सन 2011-2012 में स्वामी असीमानंद, श्री इन्द्रेश कुमार या कांची मठ के शंकराचार्य आदि पर पाकिस्तानी मीडिया के भड़काऊ समाचारों व लेखों का प्रत्यारोपण  टाइम्स ऑफ इंडिया – भारतीय पाठकों के लिये जानबूझकर करता था. अभी इसी मार्च 24, 2014 को टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने सम्पादकीय पृष्ठ के चार कॉलमों वाले अग्रलेख में ‘हिन्दूधर्म को इनकी रक्षा करने वालों से बचाओ (सेव हिंदूइस्म फ्रॉम इट्स सेविअर)’ शीर्षक द्वारा लिखा गया, प्रकाशित किया है.

वेंडी डोनिगेर की हिन्दू धर्म पर एक अन्य पुस्तक को बिक्री से हटाने व प्रकाशकों द्वारा एक जाँच समिति के गठन की वैधता को एडेल्थी बुक कम्पनी धोखाधड़ी कहती है. इसी पृष्ठ पर सम्पादकीय में देश में तथाकथित उभरते असुरक्षित अतिरेकी राष्ट्रवाद की फीकी पढ़ती पहचान को रेखांकित करते हुए इसकी भर्त्सना करता है.

‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ लगता है बहुसंख्यकों पर निर्णयात्मक टिप्पणी कर चुका है और आज अपने हिन्दू विरोध के लिये नई-नई अलंकारिक शब्दावली उछाल रहा है. कभी हिन्दू धर्म का अपहरण (हिन्दुइज्म हाईजेक) अध्यात्मिक भगवा फासीवाद (कीपिंग शेफ्रन फासिज्म) अथवा उदारवादी भारत का अंत और देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हत्या जैसी शब्दावली अपने शीर्षकों में प्रयुक्त कर रहा है.

भारत के अध्यात्मिक चिन्तन व आस्थावानों का तिरस्कार करने वालों जहूर सिद्दकी, राजबाला शर्मा, सतीश चन्द्र, बजरी काटजू, दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास पढ़ने वाली डॉ. मनमोहन सिंह की पुत्री उपेन्दर सिंह के साथ अरुंधती रॉय, रामचंद्र गुहा, रोमिला थापर, हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रो. ज्योतिर्मय शर्मा, सिद्धार्थ नारायण, पार्थ चटर्जी, मालविका संघवी, के हिन्दू संगठनों के विरुद्ध गोलबंदी करने का श्रेय ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ को मिलता है. चाहे पाकिस्तानी दैनिक डॉन के लाहौर स्थित संपादक आराम रहमान हों या जावेद नकवी या नाजिहा सय्यद अली या नदीम पराचा जैसे पाकिस्तानी पत्रकार हों, उनके प्रतिदिन ऐसे लेख व अग्रलेख हमारे दैनिकों में प्रकाशित हो रहे हैं.

कांची के शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती को झूठे आरोपों के षड्यंत्र में जेल में डालने, उडीसा में हिन्दू जागरण के अग्रदूत स्वामी लक्ष्मणानंद के विरुद्ध मीडिया व मिशनरियों की साजिश से हत्या करने के बाद आज माँ अमृतानंदमयी के चरित्रहनन की बारी है. जिनका 2003 में जब 50वां जन्मदिवस विश्वस्तर पर मनाया गया था, तब 192 देशों से उनके भक्त आये थे.  इनमें वैज्ञानिक, समाजशास्त्री व विश्व के अनेक ख्यातिप्राप्त बुद्धिजीवी भी थे जो उनको धरती पर ईश्वर का वरदान मानते थे.

माँ अमृतानंदमयी आश्रम के एक प्रवक्ता सुदीप कुमार ने आस्ट्रेलियाई अनुयायी गेल गायत्री ट्रेडवेल के प्रकाशित ग्रन्थ पर घोर चिंता व्यक्त करते हुए उनके द्वारा कई बिलियन डालरों में चलाए जा रहे एक अत्याधुनिक अस्पताल और मेडिकल कालेज के साथ-साथ जनहित में चलाये मछुआरों के लिये स्थापित उद्योग में निवेश को अनदेखा करने पर रोष व्यक्त किया है. क्योंकि लेखिका स्वयं लम्बे समय तक मानसिक तनाव एवं कई रोगों का उपचार करा रही है. उसकी कृति की विश्वसनीयता सवालों के दायरे में है.

माँ अमृतानंदमयी: संक्षिप्त परिचय

माँ अमृतानंदमयी का नाम बचपन में सुधामणि था जो अपने पिता की चौथी संतान थीं. जब वे कक्षा चार में थीं तभी माँ की लम्बी बीमारी के दौरान उनकी अहर्निश सेवा में लगे रहने के कारण उनकी पढाई छूट गयी थी. पर ध्यान व पूजन में उन्हें अत्यंत आनंद मिलता था. माँ के देहांत के बाद उनकी मानसिक दशा अस्तव्यस्त थी. अतः उन्हें निकट के वन में निर्वासित कर दिया गया था. जहाँ सुधा ने पशु-पक्षियों को अपना मित्र बना लिया था. प्रकृति का संरक्षण व कुछ गायों के सान्निध्य से उनके विचारों की सुगंध जो फैली तो लोग उन्हें अम्मा या माँ अमृतानंदमयी कहने लगे. जब भी कोई व्यथित या दुखी व्यक्ति आता वे उसे गले लगा लेती और कहा जाता है की उनकी आध्यात्मिक ऊर्जा से यह रोगमुक्त भी हो जाता था. अम्मा ने निर्धनों के लिये अनेक सेवा कार्य चलाये हैं. इनमें आवास, गुरुकुल, विधवाओं को जीवनवृत्ति, अस्पताल व अनेक विद्यालय भी हैं. गुजरात के भूकंप व सुनामी आपदा के समय अम्मा ने अनेक गाँवों को गोद लेकर उसका पुनर्निर्माण किया. यद्यपि अम्मा केवल मलयालम भाषा जानती हैं, पर सारे विश्व में उनके भक्त हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने कार्यक्रम में तीन बार अतिविशिष्ट वक्ता के रूप में उन्हें सम्मानित किया था.

 

 

 

 

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