करंट टॉपिक्स

योजना आयोग के विकल्प पर गंभीर विमर्श

Spread the love

Yojna Ayog ka naveen avtar- Dhancha evam prakriyaनई दिल्ली. “योजना आयोग का नवीन अवतार: ढांचा एवं प्रक्रिया” विषय पर भारत नीति प्रतिष्ठान और फोरम ऑफ फेडरेशन्स (एफओएफ) ने 15 नवंबर को कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इण्डिया में एक-दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया. यह संगोष्ठी भारत सरकार द्वारा समाप्त की गयी पूर्व योजना आयोग के स्थान पर प्रस्तावित नई संस्था के ढांचे और दिशा पर परिचर्चा के लिये आयोजित की गयी.

मिजोरम के पूर्व राज्यपाल श्री ए.आर. कोहली ने भारत नीति प्रतिष्ठान और एफओएफ को इस महत्वपूर्ण और सामयिक विषय पर संगोष्ठी आयोजित करने के लिये बधाई देते हुए कहा कि किसी भी समस्या का समाधान उसके मूलभूत कारकों में ढूंढा जाना चाहिये. ऊपरी ढांचे पर आधारित सरसरी समाधान आज नहीं तो कल विफल ही होंगे.

भारत सरकार के पूर्व कैबिनेट सचिव श्री टी.एस.आर. सुब्रमण्यम ने कहा कि भारत बड़े परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है और सोच में भी अब नई पीढ़ी के विचार हावी होने लगे हैं. अधिकारों का उपयोग करने वाली लेकिन जिम्मेदारी से रहित संस्थायें बाधायें ही पैदा कर सकती हैं. उन्होंने देश की शैक्षणिक संस्थाओं और उद्योगों के बीच कार्यशील सम्बन्ध स्थापित करने पर बल देते हुए कहा कि विकसित राष्ट्रों की सफलता का यह एक बहुत बड़ा कारण है.

भारत नीति प्रतिष्ठान के मानद निदेशक प्रो. राकेश सिन्हा ने कहा कि योजना की पूरी प्रक्रिया ही “बाल रुग्णता” का शिकार रही है. समाज के किसी भी घटक को नियोजन की प्रक्रिया से अलग नहीं रखा जा सकता है. यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि नियोजन की यहां प्रक्रिया सम्भ्रान्त लोगों के हाथों कैद रही है, जिन्हें हमारे राष्ट्र व समाज उसकी अपनी प्रतिभाओं, क्षमताओं और ज्ञान की कुछ भी समझ नहीं है.

फोरम ऑफ फेडरेशन्स (एफओएफ) के अध्यक्ष और सी.ई.ओ. श्री रूपक चट्टोपाध्याय ने फोरम ऑफ फेडरेशन्स के कार्य और उसमें भारत की भूमिका पर संक्षिप्त प्रकाश डाला. उन्होंने परिणामों पर अधिक ध्यान देने पर भी जोर दिया.

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में इंस्टिट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ के प्रो. मनोज पाण्डा ने कहा कि पी.सी. महालनोबिस जैसे दिग्गजों के अधीन योजना आयोग ने तब नये आजाद देश की विकासगत आवश्यकताओं को दिशा प्रदान की थी. भारत को तब से चले आ रहे मॉडल को बदलना चाहिये था लेकिन हम वैसा कर नहीं पाये.

स्वदेशी जागरण मंच के प्रो. अश्विनी महाजन ने देश के सर्वांगीण विकास के लिये नया ढांचा खड़ा करने की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि देश की सकल आय की संरचना बदल रही है और इसका काफी प्रभाव कृषि और ग्रामीण जीवन पर पड़ेगा. इससे शेष अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी.

भारत सरकार के अन्तर-राज्यीय परिषद के पूर्व सचिव श्री अमिताभ पाण्डे ने योजना आयोग की समाप्ति पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि प्रधानमन्त्री की इस साहसी पहल ने नई सोच का अवसर प्रस्तुत किया है. उन्होंने सर्वथा नई संस्था के निर्माण अथवा विद्यमान संस्थाओं में सुधार की मांग की.

इण्डियन इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की प्रो. डॉली अरोड़ा ने कहा कि भारत में विकास के परिप्रेक्ष्यों में काफी भिन्नता है. इसका कारण यह है कि लोगों में संसाधनों पर स्वामित्व, अपनी आवश्याकताओं और परिणामों को प्रभावित करने की क्षमता भी काफी भिन्न है. इसलिये विकास की अवधारणा ही एक चुनौतीपूर्ण मुद्दा है.

ऑब्सर्वर रिसर्च फाउण्डेशन के उपाध्यक्ष श्री समीर सरन ने स्वतन्त्रता के पश्चात हुये समाजार्थिक विकास का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत करते हुए कहा कि नई संस्थाओं के निर्माण के सन्दर्भ में हमारा देश आज जो निर्णय करेगा, वह आने वाले कुछ दशकों के लिये उसके भविष्य को निर्धारित करेगा.

कार्यक्रम के तीसरे सत्र में जाने-माने आर्थिक विचारक गोपाल अग्रवाल ने विकास, सुशासन और समावेशी संवृद्धि हेतु नई संस्थाओं के निर्माण में सभी हितधारकों को जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया.

भारतीय मजदूर संघ के उप संयोजक सचिव श्री सुरेन्द्रन ने एक अत्यन्त संवेदनशील मुद्दे को स्पर्श करते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने और ग्राम्य जीवन के लिये हमारे देश में सम्मान घटा है. उन्होंने किसी भी नई संस्था के निर्माण में पंच-स्तरीय प्रारूप को अपनाने की वकालत की.

वित्त आयोग के सदस्य डॉ. गोविन्द राव ने योजना आयोग को रद्द करने के प्रधानमन्त्री के स्वतन्त्रता दिवस के सन्देश को दोहराया और कहा कि केन्द्रीकृत नियोजन ने अपने घोषित उद्देश्यों की पूर्ति में अपनी पूरी असमर्थता दिखला दी है.

योजना आयोग के ही एक पूर्व सदस्य डॉ. नरेन्द्र जाधव ने कहा कि वर्तमान में योजना आयोग सभी की बलि का बकरा बना हुआ है लेकिन उसका कार्य-प्रदर्शन उतना भी बुरा नहीं है, जितना बतलाया जाता है. उन्होंने कहा कि प्रस्तावित नई संस्था को पारम्परिक आदेश-नियन्त्रण ढर्रे का पूरी तरह परित्याग करना पड़ेगा. उसे जटिल विषयों और हलचलों को सम्भालने वाली एक संस्था बनना होगा.

सी.यू.टी.एस. इण्टरनेशनल के महासचिव श्री प्रदीपसिंह मेहता ने कहा कि योजना आयोग ने कुछ अच्छे कार्य भी किये जिनकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिये. उन्होंने आगे कहा कि एक नये संस्थान की आवश्यकता को लेकर पूरे देश में सकारात्मक राय है.

यू.एन.डी.पी. में भारत के पूर्व सहायक प्रतिनिधि श्री हर्ष सिंह ने कहा कि भारत अब उस अवस्था में पहुंच चुका है जहां उसके लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति केवल नियोजन की प्रक्रिया से नहीं हो सकती. श्री हर्ष सिंह ने राजनीतिक रूप से सक्षम एक “राष्ट्रीय परिवर्तन आयोग” के गठन की मांग की जो नये और उभर रहे भारत के लिये नई दृष्टि को लेकर सहमति निर्मित करने का कार्य करेगा.

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *