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रक्षा बंधन – भाईयों की कलाई में चीनी नहीं, स्वदेशी राखियां बंधेंगी

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बिहार में महिला उद्यमी बना रहीं मिथिला, मंजुषा पेंटिंग वाली राखियां

गोरखपुर में थोक व्यापारी बनवा रहे स्वदेशी राखियां, चीनी राखियों का बहिष्कार

पटना/गोरखपुर. इस बार रक्षा बंधन पर भाईयों की कलाई में चाइनीज़ राखियां नहीं, बल्कि भारत में बनी स्वदेशी राखियां नजर आएंगी. चीन के साथ सीमा पर झड़प के पश्चात देश के लोगों में चीन के प्रति गुस्सा है. सरकार, उद्यमी, व्यापारी, उपभोक्ता चीन के बहिष्कार का अभियान चला रहे हैं. काफी व्यापारियों के पास चीनी उत्पादों का स्टॉक उपलब्ध है, इनमें अनेक स्थानों पर व्यापारियों ने घोषणा की है कि वह नुकसान उठा लेंगे अब चीन का सामान नहीं बेचेंगे.

राखी बाजार के काफी बड़े हिस्से पर चीन का कब्जा था. खासकर बच्चों में चाइनीज़ राखी को लेकर विशेष लगाव रहता है, नए डिजाइन व कार्टून को लेकर. लेकिन, इस बार चाइनीज़ राखियों को मात देने के लिए तैयारी शुरू हो गई है. देशभर में अनेक स्थानों पर बड़े स्तर पर स्वदेशी राखियां तैयार की जा रही हैं. जिससे त्यौहार के समय पर्याप्त आपूर्ति की जा सके. बिहार, राजस्थान, उत्तरप्रदेश में अनेक स्थानों पर महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों ने राखिया बनाने का कार्य अपने स्तर पर शुरू किया है और थोक व्यापारियों द्वारा भी करवाया जा रहा है.

रक्षाबंधन में अभी वक्त है, लेकिन राखियों का बाजार सजने लगा है. गोरखपुर के घंटाघर, पांडेयहाता और शाहमारुफ में 30 से ज्यादा राखी की थोक दुकानें हैं, जहां दौ सौ से ज्यादा किस्मों की राखियां एवं रक्षासूत्र उपलब्ध हैं. चीन के खिलाफ लोगों का रोष देखते हुए कारोबारी चाइनीज़ राखी से पूरी तरह परहेज कर रहे हैं. खरीदारी करने आ रहे दुकानदार भी कह रहे हैं कि सिर्फ स्वदेशी सामान चलेगा. घंटाघर में राखी के थोक विक्रेता शिवम पटवा ने बताया कि माहौल चाइनीज़ राखियों के खिलाफ दिख रहा है. ऐसे में वहां की राखियां बेचकर अपनों की नाराजगी मोल नहीं ले सकते. हम लोगों ने संकल्प लिया है कि भविष्य में कोई ऐसा सामान नहीं बेचेंगे जो चाइना में बना हो.

शाहमारुफ के थोक विक्रेता इसरार अहमद ने कहा कि कोलकाता के कुछ बड़े कारोबारियों ने चाइनीज़ राखियों के फोटो भेजे थे, जिसे नकार दिया गया. हमलोग सिर्फ स्वदेश निर्मित राखियां ही बेच रहे हैं.

चीनी नहीं, लोक कला से सज्जित स्वदेशी राखियां बंधेंगी

बिहार में भी चीनी राखियों का बहिष्कार होगा. बिहार में महिलाएं अपने दम पर आकर्षक ढंग से राखियां बना रही हैं. इन डिजाइनर राखियों की मांग भी होने लगी है. चीनी राखियों के बदले बिहार की महिला उद्यमियों ने ‘भाभी की राखी’ और श्रावण पर्व से जुड़े गहने बनाने का काम शुरु कर दिया है. बिहार महिला उद्योग संघ की संस्थापक उपाध्यक्ष इंदु अग्रवाल बताती हैं कि ये राखियां विशेष प्रकार की हैं. इन राखियों में बिहार की लोक कलाओं की छाप दिखेगी. राखियों में मंजुषा और मिथिला पेंटिंग की झलक दिखेगी. राखियों पर गुड्डे और गुड़ियों को लगाकर उसे आकर्षक स्वरूप भी प्रदान किया जा रहा है.

बिहार महिला उद्योग संघ की अध्यक्ष उषा झा महिला उद्यमियों को धन्यवाद देती हैं. 200 से ज्यादा महिलाएं राखी और मास्क के काम में प्राणपण से जुटी हैं. राखियों के जैसा मास्क पर भी मधुबनी और मंजुषा कला ऊकेरी जा रही है. बिहार की टिकुली कला को भी इसमें समाहित किया जा रहा है. राखी और मास्क की माकेर्टिंग भी शुरू हो गई है. मुंबई और दिल्ली से ऑर्डर आने शुरू हो गए हैं. इस बार सावन में लगभग 1 करोड़ का कारोबार राखी और मास्क का होगा. महिलाओं द्वारा निर्मित मास्क और राखियों की कीमत भी बाजार के अनुरूप ही रखी गई है. क्रोसिया से रेशम और जड़ी की बुनकर हेंडमेड राखियां भी बन रही है. महिला उद्यमियों ने कस्टमाइज राखियां भी बनानी शुरू कर दी हैं. भाई-बहन के फोटो से युक्त राखियों की कीमत 25 से 250 रूपये तक होगी. कुछ महिलाएं सावन की ज्वेलरी भी बना रही है. इसके अलावा सावन ग्रिटिंग कार्ड्स भी बन रही है. अपने शिल्प की छाप मास्क में देने की तैयारी भी चल रही है. लोक कलाओं से इतर ग्रीन और वर्क किये हुए मास्क भी बनाये जा रहे हैं.

15 अगस्त को देखते हुए तिरंगे मास्क भी बनाए जा रहे हैं. एक महिला को 25 से 50 हजार रुपये तक आमदनी सावन के महीने में होने की उम्मीद है.

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