डॉ. शुचि चौहान
जयपुर. पचास साल पहले पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने कहा था कि मुसलमानों को न तो पुरस्कृत करो और न तिरस्कृत करो, बल्कि उन्हें परिष्कृत करो. उन्हें न तो वोट की मंडी का माल बनाओ, न घृणा की वस्तु बनाओ. उन्हें अपना समझो.
लेकिन राजनीतिक दल उन्हें अपने वोट की मंडी मानने वाली मानसिकता से बाहर नहीं आ पा रहीं और तुष्टीकरण की राजनीति कर रही हैं.
राजस्थान सरकार का हाल भी कुछ ऐसा ही है. राजस्थान में कोरोना वायरस से संक्रमितों की कुल संख्या 1005 हो चुकी है, जिनमें 453 मामले जयपुर के हैं. इनमें भी 409 मामले सिर्फ मुस्लिम बहुल इलाके रामगंज और जमातियों के हैं. अब रामगंज जयपुर का वह इलाका बन चुका है, जहां जयपुर के 90 प्रतिशत कोरोना संक्रमित रहते हैं. भीलवाड़ा मॉडल पर अपनी पीठ थपथपाने वाली सरकार उसे रामगंज में लागू नहीं कर पा रही. और मामले लगातार बढ़ रहे हैं.
इसका कारण है वहां की जनता. बार- बार समझाने के बाद भी जब लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं किया, छतों पर और मस्जिदों में सामूहिक नमाज पढ़ते रहे और लोगों से मिलते रहे तो पूरे क्षेत्र में महाकर्फ्यू लगा दिया गया. फिर भी कोरोना संक्रमितों के आसपास के इलाकों व दूसरे जिलों में यात्रा करने के समाचार आ रहे हैं. रामगंज सहित पूरा परकोटा सील होने के बावजूद एक कोरोना पॉजिटिव जमाती दो अन्य साथियों के साथ पलसाना पहुंच गया, दस सांगानेर में पकड़े गए. रामगंज का ही अब्दुल रहमान जो बाड़मेर की धोरीमन्ना तहसील के किसी स्कूल में प्रधानाचार्य है, 06 अप्रैल को 5-6 जिलों की सीमाएं लांघते हुए बाड़मेर पहुंच गया. जांच होने पर वही व्यक्ति बाड़मेर का पहला संक्रमित बना. बाड़मेर तब तक कोरोना के प्रभाव से अछूता था.
कोरोना पर जारी सरकारी दिशा निर्देशों को न मानकर पुलिस की नाक में दम करने वाले और जांच के लिए गए चिकित्साकर्मियों के साथ बदसलूकी करने वाले ऐसे कोरोना बमों के साथ सख्ती बरतने के बजाय प्रशासन उनकी मान मनौव्वल में लगा है. तुष्टीकरण की स्थिति यह है कि क्षेत्र में मुस्लिम अफसरों की तैनाती की जा रही है और संक्रमित जमातियों के आंकड़े छिपाए जा रहे हैं. 6 अप्रैल तक सरकार की ओर से कोरोना टैस्टिंग के जो आंकड़े जारी होते थे, उनमें संक्रमित जमातियों का अलग से कॉलम था. कोरोना पर जारी सरकारी दिशा निर्देशों की अनदेखी कर देश भर में संक्रमण फैलाने वाले जमातियों की वास्तविक संख्या लोगों को पता रहती थी. अचानक सरकार को जिहादी समुदाय की छवि की चिंता हो गई और उसने मौलाना, मौलवियों व पीयूसीएल जैसे संगठनों के दबाव में आकर सरकारी रिकॉर्ड से कोरोना पॉजिटिव संक्रमितों का कॉलम हटा दिया. सरकार के कुछ लोगों ने तर्क दिया कि धर्मनिरपेक्ष देश में हिंदू मुस्लिम करना ठीक नहीं. इससे दो समुदायों में भेदभाव वाली फीलिंग आती है. रोगी, रोगी होता है हिंदू या मुसलमान नहीं. बात में दम है. लेकिन उन गरीबों का क्या जो 5 किलो राशन के लिए प्रशासन के चक्कर काट रहे हैं और मनचाहे लोगों को आसानी से राशन मिल रहा है.
और तो और रोजगार देने में भी सरकार भेदभाव कर रही है. पिछले दिनों सरकारी उपक्रम सावित्री बाई फुले कृषि उपज मंडी समिति, जोधपुर व आरटीओ, उदयपुर ने कुछ लाइसेंस जारी किए हैं. ये लाइसेंस लॉकडाउन पीरियड में वॉर्ड अनुसार घर घर सब्जी पहुंचाने वाले वेंडरों व सार्वजनिक परिवहन सेवाएं बंद होने पर लोगों के आवागमन की सुविधा हेतु सरकार द्वारा अधिकृत ऑटो चालकों के हैं. जोधपुर की मंडी समिति ने लाइसेंस प्राप्त करने वाले 40 लोगों की सूची जारी की है, जिसमें 38 मुस्लिम समुदाय के हैं और उदयपुर आरटीओ द्वारा जारी ऑटो चालकों की सूची में 24 के 24 मुसलमान हैं.
सरकार द्वारा जारी इन सूचियों के बाद क्या मान लेना चाहिए कि जोधपुर व उदयपुर का हिंदू समुदाय अब सब्जियां बेंचने या ऑटो चलाने का व्यवसाय नहीं करता? या राशनिंग में भेदभाव पर मान लिया जाए कि कुछ गरीबों को भूख लगती है और कुछ को नहीं?
आज सरकार को भी मस्जिदों से घोषणा करवानी पड़ रही है, तब जाकर लोग जांच के लिए आगे आ रहे हैं. और सरकार है कि सारे नखरे सह रही है, वह उन्हें परिष्कृत करने के बजाय शायद वोट बैंक की मंडी ही बनाए रखना चाहती है. समाज के लिए यह रवैया अच्छा नहीं.