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रामायण, कल और आज

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सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने रामायण सीरियल को डीडी नेशनल पर फिर से दिखाए जाने की घोषणा ट्वीट के माध्यम से की. उन्होंने कहा कि जनता की मांग को ध्यान में रखते हुए रामायण को पुनः शुरू किया जा रहा है. कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए पूरे देश में 21 दिन का लॉकडाउन घोषित किया गया है, इस माहौल में लोगों ने सोशल मीडिया पर अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कुछ ट्वीट किये. रामानंद सागर द्वारा निर्देशित रामायण दिखाने का सुझाव भी वहीं से आया.

रामायण का पहला ब्रॉडकास्ट 1987 में हुआ था और यह उस दौर का सबसे प्रचलित सीरियल था. इंडियन एक्सप्रेस ने 7 अगस्त, 1988 को विशेष अंक प्रकाशित किया. इसके अनुसार “रविवार का मतलब बस रामायण ही होता था.” सीरियल की लोकप्रियता इतनी थी कि प्रसारण के समय सड़कों पर सन्नाटा हो जाता था. आज वही दौर फिर से लौट आया है, बस कारण दूसरा है. कोरोना महामारी ने लोगों को घरों से निकलने कर रोक लगा दी है.

आज हम कोरोना महामारी से लड़ाई लड़ रहे है. ऐसे में रामायण हमारी प्रेरणा का फिर से साधन बना है. सोशल मीडिया पर सकारात्मक रुझान देखने को मिल रहा है. एक जमाने में यही रामायण हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित करती थी. उन्होंने भी ‘अंग्रेजी वायरस’ को भगाने में इस महाकाव्य को आधार बनाया था. आज हमें यह जानना चहिए कि कैसे उस दौर में हमारे नेताओं, वैज्ञानिकों, कवियों, और समाज सुधारकों ने रामायण को अपने जीवन का हिस्सा बनाया.

– महात्मा गाँधी ने अपनी कई प्रार्थना सभाओं, जनसभाओं में रामायण और उसके पात्रों का जिक्र किया है. उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास रचित श्री रामचरितमानस को Gems of Thoughts की संज्ञा दी.

– वीर सावरकर ने साल 1909 में ‘द इंडियन वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस, 1857’ नाम से एक पुस्तक लिखी. यह भारतीय स्वातंत्र्य आन्दोलन की आधारभूत किताब मानी जाती है. इसमें सावरकार ने 1857 के संग्राम के दो महानायकों – तात्या तोपे और नाना साहिब का जिक्र करते हुए लिखा है कि दोनों ने एकसाथ रामायण पढ़ी थी.

– राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार भी स्वयंसेवकों को रामायण सुनाकर प्रेरित किया करते थे. इस बात की जानकारी महात्मा गाँधी ने 16 सितम्बर, 1947 को दिल्ली में संघ के स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए दी.

– साल 1899 में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे रोमेश चन्द्र दत्त ने रामायण और महाभारत का इंग्लिश में अनुवाद किया था.

– कस्तूरबा गाँधी अपने जीवन के आखिरी दिनों तक रामायण पढ़ती थी. ऐसा उन्होंने आगा खां पैलेस, पुणे में अपनी नजरबंदी के दौरा भी जारी रखा.

– मदन मोहन मालवीय ने भी रामायण और महाभारत दोनों पर कई प्रसिद्ध व्याख्यान दिए है. मालवीय के पिता बृजनाथ धर श्रीमद्भागवत गीता और रामायण के व्याख्याकार रहे.

– देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ नाम से एक पुस्तक लिखी थी. हालाँकि, प्रधानमंत्री नेहरू की कथित धर्मनिरपेक्षता की आलोचना उनके सभी समकालीन सहयोगी और नेताओं ने की है. फिर भी, एक भारतीय होने के नाते उन पर भी रामायण का प्रभाव रहा और इसका जिक्र अपनी पुस्तक में करने से अपने को रोक नहीं सके. उन्होंने रामायण को महान महाकव्य कहकर संबोधित किया.

– भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ.  राजेन्द्र प्रसाद की माँ कमलेश्वरी देवी उन्हें बचपन में प्रतिदिन रामायण सुनाती थीं. गोस्वामी तुलसीदास रचित श्री रामचरितमानस हमेशा उनके पास रहती थी.

– भारतीय चित्रकला के इतिहास में प्रसिद्ध चित्रकार राजा रवि बर्मा भी रामायण से बेहद प्रभावित थे. उनकी चित्रकारी में रामायण के पात्रों का भी चित्रांकन शामिल है.

– जनसंघ के संस्थापक डॉ.  श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी रामायण से बेहद प्रेरित थे. उन्होंने अपने कई भाषणों में रामायण का जिक्र किया है.

– चक्रवर्ती राजगोपालचारी ने रामायण का इंग्लिश में भाष्य लिखा है, जो पूरे विश्व में प्रकाशित किया गया. उन्होंने कंबन द्वारा रचित रामायण पर भी व्याख्यान दिए है.

– बंकिम चंद्र चटर्जी ने भगवान राम को अपनी रचनाओं में जगह दी. ऐसा उन्होंने हिन्दू राष्ट्रवाद को पुनः जागृत करने के लिए किया.

– संविधान सभा के सदस्य, मैसूर राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री, लोकसभा सदस्य और केंद्रीय मंत्री रहे, के. हनुमंथैय्या भी रामायण और महाभारत को बचपन में पढ़ चुके थे.

– संविधान सभा के सदस्य और भारत के पहले वित्त मंत्री आर. के. शंमुगम चेट्टी पर रामायण का बेहद गहरा प्रभाव था.

– किसान नेता बाबा रामचंद्र ने फिजी में रामलीला का मंचन शुरू किया. वे अपने हाथ में रामायण की प्रति लेकर किसानों और मजदूरों को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संगठित करते थे.

– भौतिक विज्ञान में उत्कृष्ट योगदान के लिए नोबल पुरस्कार विजेता सी.वी. रमन अपनी वैज्ञानिक चर्चाओं के दौरान अकसर रामायण और महाभारत के श्लोक का हवाला दिया करते थे.

– उत्कल भाष्य कवि के नाम से जाने वाले फ़क़ीर मोहन सेनापति रामायण के अनुवाद के चलते ही प्रसिद्धि मिली थी.

– सर्वेंट ऑफ़ इंडिया सोसाइटी के संस्थापक और होम रुल लीग के नेता वी.एस. श्रीनिवास शास्त्री ने 1944 में मद्रास में रामायण पर व्याख्यान दिया था.

– संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष और सांसद सच्चिदानंद सिन्हा की माँ दोपहर में पड़ोस की महिलाओं को रामायण सुनाती थी. सिन्हा को रामायण से प्रेरणा वहीं से मिली थी.

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