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राष्ट्रवादी पत्रकारिता के हस्ताक्षर शिवकुमार गोयल का निधन

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गाजियाबाद. जाने-माने लेखक, राष्ट्रीय स्तर पर अनेकों सम्मान से अलंकृत वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार शिवकुमार गोयल का मंगलवार सुबह निधन हो गया.

76 वर्षीय शिवकुमार गोयल को कमजोरी महसूस होने पर 20 अप्रैल को यशोदा अस्पताल में भर्ती कराया गया था. यहां दिल का दौरा पड़ने के बाद उनके कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया. वह करीब आठ दिन तक वेंटीलेटर पर रहे.

सोमवार सुबह डाक्टरों के जवाब देने पर परिजन उन्हें पिलखुवा स्थित घर ले गये. मंगलवार सुबह साढे़ पांच बजे अपने घर पर ही उन्होंने अंतिम सांस ली. लेखकों, पत्रकारों और अन्य हस्तियों ने उनके निधन को साहित्य और पत्रकारिता जगत के लिए अपूर्णनीय क्षति बताया है.

उनकी शव यात्रा में हजारों गणमान्य लोग और परिचित शामिल हुये. मंगलवार दोपहर उनका अंतिम संस्कार ब्रजघाट पर किया गया. ज्येष्ठ पुत्र नरेंद्र गोयल ने उनकी चिता को मुखाग्नि दी. शिवकुमार गोयल अपने पीछे बेटे-बेटियां, नाती-पोतों का भरा-पूरा परिवार छोड़ गये हैं. उनके दो पुत्र नरेंद्र गोयल और धर्मेंद्र गोयल के अलावा दो बेटियां गुंजन और कंचन हैं.

शिवकुमार गोयल गवाह थे, उस दौर के जब पत्रकारिता मिशन हुआ करती थी. उन्होंने पत्रकारिता के हर उतार-चढ़ाव को देखा. मिशन को व्यसन बनते देखा, फिर फैशन और व्यवसाय बनते भी. बदलते दौर में भी वे अहर्निश हिंदी पत्रकारिता को दिव्यता प्रदान करने के लिये जुटे रहे.

उनकी लेखनी में पैनापन था लेकिन स्वभाव से वे उतने ही कोमल थे. इन्हीं गुणों के चलते अमर उजाला के संस्थापक दिवंगत श्री मुरालीलाल माहेश्वरी जी के वे प्रिय रहे. अमर उजाला में पिछले लंबे समय से उनके प्रेरक लेख ‘धर्मक्षेत्रे’ स्तंभ में प्रकाशित होते रहे हैं.

मंगलवार सुबह जब उनके निधन की खबर फैली तो उनके गृह नगर पिलखुवा में बाजार बंद हो गये. विधायक धर्मेश तोमर, गाजियाबाद के महापौर तेलूराम कांबोज, चेयरमैन ओमप्रकाश कोरी, राष्ट्रीय कवि हरीओम पंवार, बागीश दिनकर, पूर्व नगर संघ चालक आनंद प्रकाश सिंघल, नर नारायण गोयल समेत प्रदेश भर के प्रमुख पत्रकार और साहित्यकारों समेत धार्मिक और समाजसेवी संगठनों से जुड़े लोग मौजूद रहे.

पिलखुवा में संत साहित्य के प्रख्यात लेखक तथा आध्यात्मिक विभूति भक्त रामशरण दास के घर 31 अक्तूबर 1938 को जन्मे शिवकुमार गोयल की पहली रचना वर्ष 1955 में प्रकाशित हुई. वर्ष 1967 में हिंदुस्थान समाचार (संवाद समिति) से उनका पत्रकारिता जीवन शुरू हुआ. उन्होंने कल्याण, धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, कादंबिनी, साहित्य अमृत नवनीत, राष्ट्रधर्म, नंदन, पाञ्चजन्य, सन्मार्ग, नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान, जनसत्ता, पंजाब केसरी, दैनिक जागरण और अमर उजाला में सेवायें दीं.

रचनायें

शिव कुमार गोयल की पहली रचना सन 1955 में प्रकाशित हुई. वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान देश की रक्षा के लिये शहीद सैनिकों पर पहली पुस्तक ‘हिमालय के प्रहरी’ 1964 में प्रकाशित हुई. इसकी भूमिका राष्ट्रकवि कवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखी. हमारे वीर जवान, माटी है बलिदान की, अमर सेनानी सावरकर, नेताजी सुभाषचंद बोस, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, स्वामी विवेकानंद जीवन और विचार, भारत की वीर गाथायें, न्याय की कहानियां, सावरकर ने कहा था, सबसे बड़ी जीत, सोने का महल (बाल साहित्य) भाई हनुमान प्रसाद पोद्दार, राष्ट्रीयता के पुरोधा अटल बिहारी वाजपेयी, वीर सावरकर, कारगिल के वीर, शहीदों की गाथायें, जवानों की गाथायें आदि तीन दर्जन से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हुईं.

पुरस्कार

पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के साथ 1984 में मॉरीशस की यात्रा की. लेखन एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में तत्कालीन राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने गणेश शंकर विद्यार्थी पत्रकारिता पुरस्कार, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने कुशल संपादन के लिये स्वर्ण पदक और हनुमान पोद्दार राष्ट्र सेवा सम्मान से राजपाल विष्णुकांत शास्त्री ने नवाजा.

 

 

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