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राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की सार्थक भूमिका होनी चाहिए – डॉ. मोहन भागवत

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विभिन्न पूजा पद्धतियां होने के बावजूद हमारी संस्कृति संपूर्ण देश को जोड़ती है – डॉ. मोहन भागवत

सोलन (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि संतों, महात्माओं ने भारत की विशेषता सदियों से चली आ रही संस्कृति को बताया है, सदियों से अपने देश की एक संस्कृति रही है, जो विभिन्न पूजा-पद्धतियां होते हुए भी सम्पूर्ण देश को जोड़ती है. इसलिए हमें अपनी संस्कृति का गौरव होना चाहिए. जिस मनुष्य को अपने राष्ट्र की पहचान नहीं, उसका जीवन व्यर्थ है. राष्ट्र हमको जोड़े रखने के लिए एक शक्ति व प्रेम देता है. अपने कर्तृत्व से सुख-शांति प्राप्त कर अपना जीवन ठीक करो, ये सब अपनी संस्कृति कहती है. इस प्रकार प्रामाणिकता, निस्वार्थ बुद्धि से नई पीढ़ी को तैयार करेंगे तो ही राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका सार्थक होगी.

सरसंघचालक हिमाचल प्रदेश के सोलन जिला में स्थित डॉ. यशवंत सिंह परमार वानिकी एवं बागवानी विश्वविद्यालय, नौणी में प्राध्यापक संगोष्ठी में संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि आज के दौर में शिक्षकों को राष्ट्र की परिकल्पना स्पष्ट चाहिए. जैसे कई वर्षों से हमको पढ़ाया गया कि आर्य बाहर से आए. लेकिन, हिसार के राखीगढ़ी के उत्खनन से अब ये एक मिथक साबित हो रहा है. आर्य भारत के ही निवासी थे, ये सिद्ध हुआ है.

उन्होंने यूरोप में उत्तम शिक्षा प्रणाली के लिए प्रसिद्ध देश फिनलैंड में शिक्षा प्रणाली के विषय में बताया कि वहां पर अभिभावक बच्चों पर अधिक अंक लाने का जोर नहीं देते हैं, वह कहते हैं कि हम अपने बच्चों को वर्तमान समय में जीने के लिए संघर्ष करना सिखाते हैं. इसलिए वे स्वतः ही अध्ययन के क्षेत्र में उल्लेखनीय स्थान प्राप्त करते हैं. स्कूलों में चौथी कक्षा तक का पाठ्यक्रम मातृभाषा में रहता है. इसके बाद यदि छात्र या उनके अभिभावकों का विचार छात्र को अन्य व विदेशी भाषा का भी ज्ञान देने का हो तो आगामी कक्षाओं में उसकी व्यवस्था रहती है. उन्होंने कहा कि हम भी भारत वर्ष में ऐसी और इससे बेहतर शिक्षा की व्यवस्था कर सकते हैं, लेकिन सबसे बड़ी जिम्मेदारी शिक्षकों की है जो उस व्यवस्था की अहम कड़ी है. उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि कैसे पोस्ट ग्रैजुएशन करते हुए उनके एक शिक्षक ने कक्षा के अलावा उन्हें अतिरिक्त समय देकर पढ़ाया, जबकि शिक्षा की पद्धति वही रही जो अभी भी है. इसलिए एक विद्यार्थी के निर्माण में शिक्षक की भूमिका ही अहम मानी जाएगी.

इस अवसर पर प्राध्यापकों की ओर से पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में सरसंघचालक जी ने कहा कि टीवी और मीडिया में मनगढ़ंत चरित्र अब युवा पीढ़ी के आदर्श बताए जा रहे हैं. राम के आदर्शों की चर्चा परिवारों में कम हो गई है, फिर भी युवा पीढ़ी में कुछ युवा उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं. इसलिए हमें भी अपना उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करना होगा.

उन्होंने ने कहा कि किसान अन्नदाता है, दूसरों के लिए खेती उसका दायित्व रहा. यह बोध न होने पर किसानों ने अब कृषि छोड़ दी है, पैसा ज्यादा कमाना उद्देश्य हो गया है. किसानों को ऐसे वैज्ञानिक उपाय सुझाने होंगे, जिससे वे कम लागत में बेहतर खेती कर सकें. इसके लिए उनकी फसल के संरक्षण के लिए गोदाम बनाना और उनके उत्पादों को बेहतर बाजार उपलब्ध करवाना व बगीचों के पास माल शीघ्रता से भेजने लिए निकट ही मंडियां, लघु उद्योग या बड़ी फैक्टरी होनी चाहिए. प्रकृति की मार से सरकार को राहत की व्यवस्था व लागत के आधार पर मूल्य तय करना चाहिए. इससे किसान लाभान्वित होगा और किसी अनिष्ट की संभावना समाप्त हो जाएगी.

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