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रेलवे ने चलाई कुल 2818 श्रमिक ट्रेन, 2253 ट्रेन अपने गंतव्य पर पहुंचीं

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रेलवे द्वारा श्रमिक ट्रेन के माध्यम से करीब 36 लाख लोगों को घर पहुंचाया जा रहा

अगले कुछ दिनों में रेलवे चलाएगा 2600 श्रमिक स्पेशल ट्रेन

नई दिल्ली. वैश्विक महामारी कोरोना से निपटने के लिए संपूर्ण देश में लॉकडाउन किया गया. इसकी वजह से सारे काम-काज ठप हो गए. फैक्ट्री, कारखाना, कारोबार, दुकान, वाहन, जहाज, ट्रेन सब बंद हो गए. कभी न थमने वाली मुंबई, कोलकाता, दिल्ली की सड़कों में सन्नाटा छा गया. रोज खाने-कमाने वाले श्रमिकों से लेकर प्राइवेट जॉब करने वाले लोग बेरोजगार हो गए. लाखों श्रमिक अपने-अपने घर जाने की इच्छा लिये थे. लेकिन गांव पहुंचने के लिए साधन नहीं. सड़क पर श्रमिकों की भीड़ दिखाई देने लगी. इसका फायदा उठाने के लिए समाज विघातक शक्तियां सक्रिय हो गईं, और केंद्र सरकार व रेलवे को लेकर तमाम आरोप लगाने शुरू कर दिए.

जबकि सरकार ने संवेदनशीलता के साथ लाखों श्रमिकों को उनके गंतव्य घर तक पहुंचाने के लिए श्रमिक दिवस पर एक मई से श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का संचालन शुरू कर दिया था और 20 मई तक श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की मदद से साढ़े 23 लाख श्रमिकों को उनके गंतव्य स्थल तक पहुंचाया जा चुका है.

रेलवे द्वारा प्रदत्त 24 मई, प्रातः 10.00 बजे तक की अद्यतन जानकारी के अनुसार 2818 श्रमिक ट्रेन चलाई हैं, जिनमें से 2253 ट्रेन अपने स्टेशन तक पहुंच चुकी हैं, तथा 565 ट्रेन अपने की गंतव्य की ओर बढ़ रही हैं. रेलवे के अनुसार 60 अन्य श्रमिक ट्रेन पाइपलाइन में हैं. इनमें से अकेले उत्तर प्रदेश के लिए ही विभिन्न राज्यों से 1120 श्रमिक ट्रेन चलाई गई हैं. श्रमिक ट्रेन के माध्यम से करीब 36 लाख लोगों को घर पहुंचाया जा रहा है. इसके अलावा आगामी कुछ दिनों में 2600 अन्य श्रमिक ट्रेन चलाने का प्रस्ताव है.

लेकिन कुछ राज्यों की उदासीनता, प्रशासनिक कारणों की वजहों से ट्रेन की गति धीमी रही. श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में लिस्ट बनाने से लेकर उनके चयन का काम राज्यों के पास ही है. कांग्रेस शासित प्रदेश और पश्चिम बंगाल श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन बढ़ाने की इजाजत नहीं दे रहे हैं. ममता बनर्जी ने अजमेर की दरगाह में फंसे लोगों को निकालने के लिए ट्रेन को मंजूरी दी, लेकिन मजदूरों पर कोई ध्यान नहीं दिया.

रेलवे की ओर से तीन सौ ट्रेन रोज चलाने की तैयारी थी, लेकिन शुरू के दस दिनों में केवल 366 ट्रेन ही चली. उत्तर प्रदेश के लिए सबसे ज्यादा 12 सौ ट्रेनें चली, जबकि पश्चिम बंगाल, राजस्थान,  छत्तीसगढ़ और झारखंड राज्यों ने सबसे पीछे रहा. इन राज्यों को लेकर आरोप-प्रत्यारोप भी लगे. देश में सबसे अधिक श्रमिक उत्तर प्रदेश में आये हैं. अब तक श्रमिक ट्रेनों के माध्यम से 12 लाख से अधिक श्रमिक अपने घर पहुंच चुके हैं. वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार 18 लाख लोगों को वापिस अपने घर पहुंचा चुकी है. योगी सरकार की उदारता से सभी राज्यों को सीख लेना चाहिए. खास कर कांग्रेस शासित प्रदेश व ममता बनर्जी को. जो अपने ही श्रमिकों को वापस घर आने के लिए पाबंदी लगा रही है.

पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के करीब 10 लाख प्रवासी मजदूर फंसे थे. झारखंड के करीब नौ लाख लोग दूसरे राज्यों में फंसे थे, जिसमें से छह लाख से अधिक प्रवासी मजदूर थे. केरल में फंसे प्रवासी मजदूरों की संख्या साढ़े तीन लाख थी. राजस्थान सरकार ने प्रवासी श्रमिकों की वापसी के लिए जो ऑनलाइन पोर्टल बनाया, उस पर करीब छह लाख 35 हजार श्रमिकों और प्रवासियों ने पंजीकरण कराया. बिहार सरकार ने पहले आनाकानी की, फिर लोगों का आकलन किया. हालांकि रेलवे ने पहले ही साफ कहा था कि केवल राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित यात्रियों को ही स्वीकार किया जाएगा. क्योंकि ट्रेन उन्ही के अनुरोध पर ही चलाई गई है.

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