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वामपंथी सेवादारों की समाज विभाजक पत्रकारिता

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रविंद्र सिंह भड़वाल

भारत में निष्पक्ष पत्रकारिता अभी कितनी दूर है, उसका अंदाजा कोरोना संकट के दौरान एक समूह की पक्षपातपूर्ण पत्रकारिता के जरिए आसानी से लगाया जा सकता है. वाम विचार की विरासत के ये वारिस अपनी तमाम सीमाओं को लांघकर नकारात्मक पत्रकारिता को अपना परम कर्तव्य घोषित कर चुके हैं. इसी कर्तव्य का निर्वहन करते हुए ये तमाम तरह के हथकंडे अपनाने को आतुर रहते हैं. इसके लिए हिंदुओं और उनकी संस्कृति का अपमान, एक समुदाय विशेष के तुष्टीकरण से लेकर बौद्धिक प्रदूषण फैलाने जैसे तमाम उपायों को उपयोग करते हैं. इसी परंपरा को निभाते हुए कोरोना महामारी के भयंकर संकट को भी सामुदायिक विभाजन के एक अवसर के ही रूप में ही देखा.
वामपंथी सेवादार लगातार प्रचारित कर रहे हैं कि कोरोना के साथ-साथ मुसलमानों के खिलाफ घृणित अपराध का वायरस भी लगातार फैल रहा है. सर्वविदित है कि तबलीगी जमात में शामिल जमातियों के कारण देश में कोरोना संक्रमण की स्थित गंभीर हुई है, लेकिन इसे खारिज करते हुए चुनिंदा घटनाओं को आधार बनाकर यह साबित करने की एक बड़ी कोशिश की जा रहा है कि किस तरह से हिंदू, मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा का घृणित वायरस फैला रहे हैं. इन्हीं में से एक स्क्रॉल ने अपनी रिपोर्ट में बताने की कोशिश की है कि किस तरह से बहुसंख्यक समाज मुस्लिमों को सता रहा है. लेकिन शायद उन्हें समुदाय के लोगों द्वारा स्थान-स्थान पर अंजाम दी गई घटनाएं नहीं दिख रहीं. मिथ्या प्रचार करके इनके उद्देश्यों की पूर्ति तो हो जाती है, लेकिन पत्रकारीय सरोकार हर बार हार जाते हैं. इससे भी बढ़कर समाज के विभाजक बन बैठे हैं.

कोरोना वायरस को लेकर राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री द्वारा 22 मार्च के दिन सांय पांच बजे घंटी, थाली, शंख आदि बजाने तथा दूसरी अपील में घरों की बत्तियां बुझाकर दीये जलाने का आह्वान किया गया. इन दोनों बार में ही अपील का एकमात्र उद्देश्य राष्ट्रीय एकता को मजबूत करना था. लेकिन दूसरी ओर उसी दौरान वाम विचार के प्रतिनिधि पत्रकार इस राष्ट्रव्यापी एकता के खिलाफ सामुदायिक दुश्मनी के बीज बोने में व्यस्त थे. किसी मुस्लिम के खिलाफ हिंसा को अनैतिक और अमानवीय ठहराते हुए लंबी-चौड़ी रिपोर्ट दे रहे थे तो अन्य हिंसात्मक घटनाओं को भी उसी शिद्दत के साथ विश्लेषण जरूरी था.

कुछ घटनाएं जो शायद वामपंथी सेवादारों को दिकाई नहीं देंगीं…..

भणियाणा उपखंड में मारपीट
भणियाणा उपखंड के माडवा गांव में मारपीट में घायल रेवत सिंह की पांच दिन कोमा में रहने के पश्चात मौत हो गई. 4 अप्रैल को मावा में मारपीट की यह घटना हुई थी. मृतक रेवतसिंह के भतीजे ने भणियाणा थाने में मामला दर्ज करवाया था कि दिलदार खां पुत्र शाहिद खां, फिरोज पुत्र सदीक खां व इकबाल पुत्र रहमतुल्लाह ने रेवंतसिंह के साथ मारपीट की थी.

रेवतसिंह का किसी के साथ कोई विवाद नहीं था. उसने केवल प्रधानमंत्री के आह्वान पर 22 मार्च को थाली बजाई थी और उसके बाद रामनवमी के दिन थाली बजाने के साथ ही रात में दीपक जलाए थे. इससे ये लोग नाराज थे और इसी वजह से रेवतसिंह के साथ मारपीट की.

वृद्धा की ली जान
प्रधानमंत्री की अपील को लेकर पड़ोसी से बल्ब बंदकर दीप जलाने का आग्रह करना वृद्ध महिला को भारी पड़ा. रहिका के सतलखा गांव में मारपीट के बाद एक महिला की मौत हो गई. मृतका के पुत्र सुरेन्द्र मंडल ने बताया कि प्रधानमंत्री की अपील पर रविवार रात नौ बजे मोहल्ले के लोग घरों में लाइट बंद कर दीप जला रहे थे.
आस-पड़ोस के लोगों ने लाइट बंद कर दीप जलाने का आग्रह किया. लेकिन पड़ोसी ने बिजली बंद करने से मना कर दिया. इसी को लेकर कहासुनी होने लगी. इसी दौरान पड़ोसी ने उनकी माता पर हमले कर दिया, जिसमें उनकी मौत हुई. आरोपी शांति पसंद समुदाय के हैं.

नालंदा

रविवार को शाम पांच बजे जब पूरा देश कोरोना के खिलाफ लड़ रहे लोगों के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए थाली और ताली बजा रहा था, तो उस वक्त नालंदा जिला में एक वर्ग ने विवाद खड़ा कर दिया दो गुटों में मारपीट हुई. सूचना मिलने पर पुलिस पहुंची तो पुरलिस पर भी पथराव कर दिया गया.

कन्नौज

कन्नौज में लोग एकत्रित होकर घऱ की छत पर नमाज पढ़ रहे थे, जानकारी मिलने पर पुलिस समझाने गई तो लोगों ने पुलिस टीम पर कुल्हाड़ी से हमला कर दिया और पथराव भी किया.

इनके अलावा स्वास्थ्य विभाग की टीम पर हमले, स्वास्थ्य कर्मियों के साथ दुर्व्यवहार, पुलिस टीम पर हमले की देशभर में अनेक घटनाएं हुईं, लेकिन वामपंथी सेवादारों की इन घटनाओं का विश्लेषण करने की हैसियत नहीं या फिर पत्रकारिता के मूल्यों की धज्जियां उड़ाने, और सामाजिक विभेद खड़ा करने में आनंद आता है. शायद इसीलिए अन्य घटनाओं को नजरअंदाज कर दिया.

लेखक मीडिया शोधार्थी हैं.

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