मुंबई. देश की अर्थव्यवस्था को लेकर तरह-तरह के अनुमान लगाए जा रहे हैं. ज्यादातर अनुमानों में यह बताया जा रहा है कि भारत मंदी की चपेट में होगा और इस मंदी से बाहर निकल पाना आसान नहीं होगा. कुछ लोग तो 1991 से पहले जैसी अर्थव्यवस्था की बातें कर रहे हैं. भारत की अर्थव्यवस्था में वर्ष 1991 की महत्वपूर्ण भूमिका है. अर्थव्यवस्था के वैश्विकरण की शुरूआत इसी साल हुई थी.
अर्थव्यवस्था को लेकर जितने निराशाजनक विचार बाजार में आ रहे हैं, स्थिति उतनी चिंताजनक रहने वाली दिख नहीं रही है. स्थिति कुछ उस ग्लास जैसी है, जिसमें आधा पानी भरा है. कुछ लोगों को यह आधा भरा हुआ दिख रहा है तो कुछ लोगों को यह आधा खाली दिख रहा है. जिन्हें आधा खाली दिख रहा है, वे वैसे लोग हैं जो कभी आशावादी होते ही नहीं हैं. ऐसे लोग हमेशा समस्या को विकराल कर लोगों के सामने पेश करते हैं. उनके पास इन समस्याओं का समाधान नहीं होता है.
इस आलेख में हम आशावादी दृष्टिकोण से अर्थव्यवस्था की स्थिति की पड़ताल करने का प्रयास कर रहे हैं. आईएमएफ द्वारा दो-चार दिन पहले जारी ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक’ रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत और चीन को छोड़कर संपूर्ण विश्व अगले वर्ष मंदी की चपेट में आ जाएगा. इसमें भी भारत 1.9 प्रतिशत के विकास दर से विश्व में सबसे आगे बना रहेगा.
हालांकि इस रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है कि चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही बहुत खराब रहेगी. इसके बावजूद भारत 1.9 प्रतिशत के साथ सबसे पहले और 1.2 प्रतिशत के साथ चीन दूसरे नंबर पर मंदी से बाहर रहेगा.
आईएमएफ ने इस रिपोर्ट में संभावना व्यक्त की है कि विश्वभर की कंपनियां भारत की तरफ रुख करेंगी, और अगले ही छमाही में भारत 4.2 प्रतिशत और वर्ष 2021-22 में तो 7.4 प्रतिशत के साथ दुनिया की सबसे तेज अर्थव्यवस्था बनकर उभरेगा. चीन की अर्थव्यव्स्था 44 वर्ष पीछे चली जाएगी और वह 1976 के बाद की स्थिति में रहेगा. हालांकि उसकी स्थिति में भी सुधार आएगा और अगले वर्ष उसकी विकास दर 5.4 प्रतिशत के आस-पास रहेगी, जो भारत से 2 प्रतिशत से अधिक पीछे रहेगी.
भारत की अर्थव्यवस्था ग्रामीण अर्थव्यवस्था है और इस पर कोरोना का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा. समय के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था पहले से अधिक मजबूत होकर उभरेगी. भारत युवाओं का देश है और यूरोपीय देशों की तुलना में युवाओं पर कोरोना के संक्रमण का प्रभाव पड़ने की संभावना कम होती है. इसके अलावा भारत के छोटे कारोबारियों और मुहल्लों में स्थित छोटी-छोटी दुकानों के मालिकों पर बैंक का कर्ज ज्यादा नहीं है और यही वजह है कि बाजार खुलने के बाद वे मजबूती से उभरेंगे. तेल की कीमतों का कम होना भी हमारे लिए फायदेमंद साबित होगा, मुद्रास्फीति की दर नियंत्रित रहेगी और महंगाई नहीं बढ़ेगी. भारत की गृह बचत, लघु उद्यमों की 80 प्रतिशत तक की श्रृंखला, और युवा शक्ति के कारण भारत का भविष्य उज्जवल है. भारत अपनी विश्वसनीयता इस कोरोना युद्ध में सर्वाधिक प्राप्त कर चुका है. सारे संकेत भारत को समग्र विश्व का नेतृत्व करने के मिल रहे हैं.
कोरोना प्रकरण में संपूर्ण विश्व चीन से नाराज है और आने वाले दिनों में इस नाराजगी के दुष्परिणाम चीन में दिखाई देने लगेंगे. विदेशी कंपनियां चीन की तुलना में भारत में अपना कारोबार स्थापित करना चाहेंगी. सूचना तो यह भी है कि 100 से ज्यादा अमरीकी और 200 से ज्यादा जापानी कंपनियां चीन से हटकर भारत में अपना उत्पादन संयंत्र स्थापित करने की दिशा में सक्रिय हो चुकी हैं. इनमें हर प्रकार की कंपनियां हैं, मोबाईल फोन बनाने से लेकर दवा बनाने वाली कंपनियों तक. वैश्विक स्तर पर सभी बड़े और सर्वश्रेष्ठ ब्रांड्स को यह बात समझ में आ गई है कि भारतीय ईमानदार, परिश्रमी, प्रतिभाशाली और भरोसेमंद होते हैं. आम भारतीय के इन गुणों को अब तक नजरअंदाज किया जाता रहा है. इस लॉकडाउन का एक लाभ यह भी हुआ है कि लोगों में घर से काम करने की प्रवृत्ति विकसित हुई है. देखने में यह बात बहुत छोटी है, मगर आर्थिक दृष्टिकोण से यह बहुत महत्वपूर्ण है. आवागमन का खर्च और समय दोनों ही बचता है. ऑफिस के खर्चों में भी बचत होती है. लॉकडाउन के बाद भी घर से काम करने को प्रश्रय दिया जाना चाहिए.