देश-विदेश के अनेक जिम्मेदार लोगों तथा संस्थाओं द्वारा भारत में जिहादियों, चर्च संगठनों एवं माओवादियों की ओर से समेकित उग्रवादी गतिविधियां चलने के संकेत प्रत्यक्ष रूप से देने के बाद भी केंद्र सरकार किसी भी तरह की प्रभावी कार्रवाई करती नहीं दिखती. ये कुछ ऐसे विषय हैं, जो मीडिया का मुद्दा नहीं बनते, लेकिन जिम्मेदार स्तर पर उसका प्रमाण मिलने के कारण उस पर नजर तो डालनी ही पड़ती है. मार्च, 2014 में असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने पत्रकारों के सामने कहा कि जिहादियों और माओवादियों की मिलीजुली गतिविधियों का सामना करना राज्य की सबसे बड़ी चुनौती है और इन संगठनों एवं उल्फा के संबंध सबको विदित हैं. इस कथन का अर्थ यह हुआ कि पिछले 15-20 सालों से विश्व की प्रमुख जासूसी संस्थाएं, अंतरराष्ट्रीय स्तर का मीडिया इस बारे में जो संकेत दे रहा था उसमें दम है.
विश्व में एक-दूसरे की दुश्मन इकाइयां जब एक साथ काम करती दिखती हैं, तब उसके अर्थ ‘परसेप्शन’ से ही निकालने पड़ते हैं. राजीव मल्होत्रा द्वारा लिखित ‘ब्रेकिंग इंडिया’ पुस्तक ने तो इन तीनों ताकतों ने भारत के टुकड़े करने की किस तरह तैयारी की है इस बारे में छोटी-छोटी घटनाओं पर गंभीर नजर रखकर जो रोशनी डाली है, इतने सबूत दिये हैं कि इसको अनदेखा करना गलत होगा. अनेक अध्ययनकर्ता एवं विचारक यह सोचकर पसोपेश में हैं कि भारत जैसे देश में उसके दो शत्रु कैसे एकत्र हो सकते हैं?
भारत के तीन शत्रुओं का आपस में एक होने का मुद्दा कोई छोटी मोटी बात नहीं है. उसके कई पहलू हैं इसलिए उसे इसी द्दृष्टिकोण से समझना होगा. स्थानीय सरकारें उस खास जगह की राजनीतिक स्थिति के कारण ऐसे कट्टर दुश्मनों के सहारे बची हुई दिखती हैं. इस विषय पर अगर बात करें तो असम के मुख्यमंत्री देश के तीन शत्रुओं के एकत्र आने का गंभीर अहसास दिला रहे हैं, लेकिन दूसरी ओर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की उनके एकत्रित कार्यक्रम में उपस्थित होने की फोटो प्रकाशित होती है!
अभी तक खास चर्चा में न आये इस मुद्दे पर देश के अनेक स्थानों में अनेक जगह गोष्ठियां तो हुई हैं लेकिन मीडिया इस पर बोलने के लिए तैयार नहीं है. इस देश के प्रत्येक राज्य में इसका असर दिखने लगा है, इसलिए यह विषय विस्तार से समझ लेना आवश्यक है. इनमें से जो घटनायें इस देश के भविष्य पर गहन परिणाम डालने वाली हैं, उनका तो यहां जिक्र किया ही जायेगा, लेकिन आम लोगों को भी अपने आस-पास ऐसी घटनाओं पर कैसे ध्यान देना है, इस पर भी विशेषज्ञों के कथन रखने का प्रयास रहेगा.
पिछले महीने भारत में कुछ जिहादी संगठनों के सदस्य गिरफ्तार किये गये. पिछले 15 वर्षों से इनके हमलों की संख्या लगातार बढ़ रही है. भारत के पुणे, मुंबई, बेंगलूरु, वाराणसी, अहमदाबाद, दिल्ली जैसे अनेक शहरों में जिस इंडियन मुजाहिदिन के उग्रवादियों ने बम विस्फोट करवाये उनमें से महत्वपूर्ण यासीन भटकल को भारत-नेपाल सीमा पर गिरफ्तार किया गया और उसके बाद देशभर में उसके सहयोगियों को गिरफ्तार किया. इस बारे में इस देश की पुलिस अभिनंदन की पात्र तो है ही, लेकिन आश्चर्य की बात है, उन्हें जिन स्थानों से गिरफ्तार किया वे सारे माओवादी एवं चर्च संगठनों के भूमिगत संगठनों द्वारा चलाये जा रहे थे. इस सच्चाई की जानकारी होने पर भी इसे नजरअंदाज किया गया. अगर यह जानकारी कि, ये तीनों संगठन एक साथ काम कर रहे हैं, सामने आई, तो जांच क्यों नहीं की गई. इस बारे में हम दोषारोपण भी नहीं कर सकते थे. लेकिन ‘ब्रेकिंग इंडिया’ पुस्तक द्वारा सैकड़ों सबूतों के आधार पर इस विषय की प्रस्तुति करने के बाद भी उसकी पड़ताल नहीं की गई, यह अत्यंत गंभीर बात है. इसका अर्थ यह है कि शरीर में रोग गहरे तक पैठ बना रहा है और हम केवल मलहम की डिबिया लेकर इलाज करके ही खुश हो रहे है. इस पर नजर डालें तो एक महत्वपूर्ण विषय को सरकार किस तरह नजरअंदाज कर रही है, इसे जानकर चुप बैठ जाने से काम नहीं चलेगा. आम लोगों में रहकर अगर ये ताकतें इस तरह का महायु हम पर लादे जा रही हैं, तो आम लोगों को ही इसका कैसे उत्तर देना है, इस पर विचार करना होगा. इस विषय का दायरा बड़ा है. अगर इस विषय के सारे अंग समझने हैं, तो इनमें से कुछ मुद्दों के संदर्भ बार-बार सामने आने की संभावना है.
जिहादी उग्रवादियों के बारे में चर्च संगठनों एवं माओवादियों के जो संदर्भ सामने आये हैं, उन्हीं की ओर इस पुस्तक में इशारा किया गया है. पहली बात यह कि यह लड़ाई मामूली नहीं है. देश में फिलहाल चर्चा का विषय है यासीन भटकल की अगुआई में पूरे देश में चल रही उग्रवादी कार्रवाइयां. लेकिन इसका आरंभ बहुत पहले हुआ था. 15 वर्ष पूर्व नेपाल से उड़ा भारत का एक यात्री विमान अमृतसर, लाहौर होता हुआ अपहृत करके कंधार ले जाया गया एवं इस उग्रवादी कृत्य से तीन अत्यंत दुर्दांत जिहादी छुड़वा लिये गये. इसी से बाद में उग्रवादी घटनाओं की एक कड़ी शुरू हुई. नेपाल में चर्च संगठन और माओवादियों ने किस तरह इसमें मदद की, इस विषय पर विस्तृत जानकारी है. एक तो असम के मुख्यमंत्री के कहे अनुसार, जिहादियों को माओवादी मदद कर रहे हैं, इसकी शुरुआत नेपाल में हुई. नेपाल में चीन ने 15 वर्ष पहले पैर जमाने शुरू किये थे. वहां का पूरा अर्थतंत्र सुव्यवस्थित करने का आश्वासन देकर वहां बांध बनवाना और वहां बनी बिजली चीन भेजने की उसकी योजना थी. इसमें गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र आदि भारत में बहने वाली नदियों को रोककर उनके पानी से बिजली उत्पादन की आड़ में पानी चीन की ओर ले जाने की उसकी मंशा थी. यह बात अलग है कि एक वर्ष पूर्व हुये चुनाव में वहां की जनता ने उसकी योजना को धराशायी कर दिया. लेकिन जिस समय वहां माओवादियों का असर था, तब एक ओर जिहादियों को वहां आसरा मिलता था तो दूसरी ओर 15 वर्ष पूर्व चर्च संगठनों ने भी नेपाल में पैर जमाये. उन्होंने नेशनल काउंसिल ऑफ चर्चेज (एनसीसीएन) को वहां स्थान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. वहां माओवादियों की कई कार्रवाइयों का एनसीसीएन ने वैश्विक स्तर पर सहयोग किया. इसी से एनसीसीएन का जनरल सेक्रेटरी नेपाल के ह्युमन राइट्स कमीशन का आयुक्त बना. इसी का आगे ऐसा असर हुआ कि चर्च संगठनों ने नेपाल सरकार पर दबाव बनाकर संयुक्त राष्ट्र में उस सरकार को जाति व्यवस्था पर मूल प्रस्ताव बदलने के लिए बाध्य किया. भारत ने मानवाधिकार ड्राफ्ट में उसके उल्लेख का विरोध किया. लेकिन अचानक नेपाल के विदेश मंत्री द्वारा ही उसे समर्थन देने की आश्चर्यजनक घटना घटी. इस कारण भारत की स्थिति संकटपूर्ण हो गई. नेपाल की भूमिका का भारत में ‘दलित सॉलिडैरिटी नेटवर्क’ और ‘ऑल इंडिया क्रिश्चियन काउंसिल’ ने स्वागत किया. इसका उल्लेख करने का कारण यही है कि ये तीनों ताकतें एक दूसरे की मदद से वहां अपना असर बढ़ा रही थीं. किसी बड़े युद्ध के नियोजन की तरह ही किसी उग्रवादी हमले का नियोजन भी कैसे किया जाता है, यह इस पुस्तक में विस्तार से बताया गया है.
इस बारे में अमरीका में रहने वाले भारतीय मूल के क्रिश्चियन मिशनरी विशाल मंगलवाडी ने जो जानकारी दी है, वह केवल चौंकाने वाली ही नहीं बल्कि यह तैयारी किस तरह चल रही है, उसका खुलासा करने वाली भी है. उनका कहना है कि इस हिस्से में उनके एक या दो दिन के शिविर मिलकर आयोजित करना रोजमर्रा की बात हो चुकी है. हर कोई अपना विषय असरदार रूप से प्रस्तुत करता है. ये सारे शिविर ऐसी दुर्गम पहाडि़यों के पार होते हैं, जहां पुलिस जाने से कतराती है. उनका कहना है कि अगर इन लोगों से हमने अधिक सहयोग किया तो कुछ वक्त बाद हमारे लिए चीन में काम करना भी संभव होगा. इन सबमें और दो बातों का उल्लेख करना अनिवार्य है, वह है उनकी अस्त्र-शस्त्रों की तैयारी और दूसरी है उन स्थानों में खनिज भंडार. इनके अस्त्रों का भंडार किसी छोटी देश की सेना को लज्जित करने वाला है और ये लोग खनिज भंडारों का हिसाब ऐसे रखते हैं, जैसे किसी देश का वित्तीय नियोजन हो.
इतिहास के पन्नों को पलटें तो सन् 1001 के मध्य में इस देश में गजनी का दुर्दान्त हमलावर महमूद आया था. उसके आठ सौ वर्ष बाद जिस देश इस देश पर वैसे ही जिहादियों का राज था. उनके हमले जिस तैयारी के साथ होते थे एवं जिस तरह वे इस देश के अर्थतंत्र को बर्बाद करने का षडयंत्र रचते थे, वही इतिहास आज भी दुहराया जा रहा है.
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