पुणे की मलीन बस्तियों की झुग्गियों में पला बड़ा नेत्रहीन चंद्रकांत आज उसी ब्लाइंड-स्कूल का प्रिंसिपल है, जहां से उसने अपनी पढ़ाई की थी. इससे ही मिलती – जुलती कहानी संतोष की भी है. मलखम में राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी व पुणे पुलिस में हवलदार संतोष का बचपन भी घोर गरीबी व अभावों की भेंट चढ़ जाता, यदि वो स्वरूपवर्धिनी के संपर्क में न आया होता. इतना ही नहीं, गांवों के रूढ़ीवादी परिवेश में बेटी होने के तमाम बंधनों से जूझकर पुणे के आसपास के गांवों से गत 16 बरसों में 3000 लड़कियां नर्स के रूप में एक आत्मनिर्भर व सम्मानजनक जीवन जी रही हैं. पुणे और आसपास के क्षेत्र में हो रहे इस व्यापक सामाजिक परिवर्तन को समझना हो तो सेवाभारती से संबद्ध बहुआयामी प्रकल्प ‘स्वरूपवर्धिनी’ को समझना होगा.
संघ के स्वयंसेवक स्वर्गीय किशाभाऊ पटवर्धन जी ने गरीब व प्रतिभाशाली छात्रों का जीवन संवारने का जो स्वप्न 1979 में स्वरूपवर्धिनी के रूप में देखा वो अब 200 क्लास वन व टू ऑफिसर के रूप में पूरा होता दिखाई देता है.
अब बात करते हैं चंद्रकांत भोंसले की, वो आज भी वो दिन नहीं भूला है, जब ब्लाइंड होने के कारण वो न तो स्वरूपवर्धिनी की शैक्षिक शाखा जा पा रहा था, न ही स्कूल जा पाता था. तब उसकी पढ़ाई जारी रखने के लिए, स्व. किशाभाऊ जी की प्रेरणा से निःशुल्क कोचिंग सेंटर में आने वाले 11वीं कक्षा के एक मेधावी छात्र विश्वास ने खाली समय में भीम नगर बस्ती में आकर कुछ साल पढ़ाया. विश्वास की मेहनत रंग लाई व चंद्रकांत हाईस्कूल में 70 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण हुआ. अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान भी विश्वास ने चंद्रकांत को पढ़ाना जारी रखा. इसके बाद चंद्रकांत ने मुड़कर नहीं देखा. बीए, फिर एम.ए और बीएड करके उसी ब्लाइंड-स्कूल का प्रिंसिपल बना, जहां वह कभी खुद छात्र था.
ठीक ऐसे ही झुग्गी क्षेत्र का बेहद शरारती संतोष, पढ़ाई से ज्यादा खेलकूद में रुची रखता था. उस पर एक स्पोर्ट्स कैम्प के दौरान स्वरूपवर्धिनी के कार्यकर्ताओं की नज़र पड़ी. उन्हें उसमें एक अच्छा खिलाड़ी बनने की सभी संभावनाएं दिखीं. संस्था ने उसकी फीस इत्यादि का खर्च उठाते हुए उसे एक स्तरीय स्पोर्ट्स अकादमी में एडमिशन दिलवा दिया. आज संतोष अखिल भारतीय स्तर का मलखम खिलाड़ी है और महाराष्ट्र पुलिस में भर्ती हो अपने विभाग का विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं में नाम बढ़ा रहा है. यह तो बस एक बानगी भर है, चन्द्रकान्त, विश्वास और संतोष की तरह ऐसे सैकड़ों बालक हैं, जो स्वरूपवर्धिनी के संपर्क में आये और आज समाज के लिए एक मिसाल बने हुए हैं.
‘स्व’ – रूपवर्धिनी के उपाध्यक्ष एवं राष्ट्रीय सेवा भारती की केन्द्रीय टोली के सदस्य शिरीष पटवर्धन जी बताते हैं कि वर्ष 1979 में यह प्रकल्प पुणे के स्लम क्षेत्रों में रहने वाले प्रतिभावान बालकों को खोज उनका चहुंमुखी विकास सुनिश्चित करने का लक्ष्य लेकर अस्तित्व में आया था. बहुत ही छोटी पहल के रूप में आरम्भ हुआ, यह प्रकल्प आज एक विस्तृत आयाम ले चुका है. शिरीष जी की मानें तो वर्धिनी के माध्यम से स्टेट लेवल की प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए न्यूनतम फीस लेकर चलाए जा रहे कोचिंग सेंटर से पढ़कर 200 से अधिक निर्धन बच्चे, अब क्लास वन या क्लास टू ऑफिसर बन गए हैं. वहीं मोबाइल प्रयोगशाला गांव-गांव में घूम बच्चों को विज्ञान के प्रयोग दिखा साइंस के प्रति रूचि जाग्रत करती है, गत 17 साल से चल रही इस चल प्रयोगशाला के माध्यम से लगभग 100 गांवों के हजारों बच्चों की विज्ञान के प्रति दृष्टि विकसित की है. इसके अलावा महिला स्वावलंबन केंद्र, काउंसलिंग सेंटर, पाकोली मोंटेसरी स्कूल और स्किल डेवलपमेंट के कई आयाम आज प्रकल्प के माध्यम से चल रहे हैं.
साभार – सेवागाथा