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सहस्त्रों साल की विरासत पर गर्व करने का क्षण

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डॉ. नीलम महेंद्र

क्षिण पूर्व एशिया के देश वियतनाम में खुदाई के दौरान बलुआ पत्थर का एक शिवलिंग मिलना ना सिर्फ पुरातात्विक शोध की दृष्टि से एक अद्भुत घटना है. अपितु भारत के सनातन धर्म की सनातनता और उसकी व्यापकता का  एक अहम प्रमाण भी है. यह शिवलिंग 9वीं शताब्दी का बताया जा रहा है. जिस परिसर में यह शिवलिंग मिला है, इससे पहले भी यहाँ पर भगवान राम और सीता की अनेक मूर्तियाँ और शिवलिंग मिल चुके हैं. आधुनिक इतिहासकार भारत की सनातन संस्कृति को लेकर जो भी दावे करें, किंतु इसकी सनातनता और लगभग सम्पूर्ण विश्व में इसके फैले होने के प्रमाण अनेक अवसरों पर ऐसे ही सामने आते रहते हैं. और जब इस प्रकार के प्रमाण प्रत्यक्ष होते हैं तो स्वतः ही यह प्रश्न उठता है कि “प्रत्यक्षम किम् प्रमाणम्?” अर्थात् प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता? आज हम ऐसे ही प्रमाणों की बात करेंगे जो हमें जितने आश्चर्यचकित करते हैं, उतने ही गौरवान्वित भी करते हैं.

दरअसल सनातन संस्कृति समूचे विश्व में फैला हुआ था, इस पर अनेक खोजपूर्ण अध्ययन भी हुए हैं और इनसे अनेक प्रमाण भी मिलते हैं.

यह सर्वविदित है कि इंडोनेशिया विश्व का ऐसा देश है, जहाँ आज विश्व की सर्वाधिक मुस्लिम आबादी है. लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस मुस्लिम बहुल देश के लोगों का कहना है कि उनका धर्म इस्लाम है और संस्कृति में रामायण है. जी हाँ, रामकथा इंडोनेशिया की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा है. इतना ही नहीं, यहाँ के एक द्वीप बाली में खुदाई के दौरान प्राचीन मंदिरों के कुछ अंश भी मिले. जानकारी के अनुसार इंडोनेशिया का यह स्थान कभी हिन्दू धर्म का केंद्र था और आज यही मंदिर बाली द्वीप की पहचान है. इंडोनेशिया के इस द्वीप पर हिंदुओं के कई प्राचीन मंदिरों के साथ एक गुफा मंदिर भी स्थित है, जिसमें तीन शिवलिंग बने हैं और यह भगवान शिव को समर्पित है. 19 अक्तूबर 1995 को इसे विश्व धरोहरों में शामिल कर लिया गया था. यह तो हुई एशिया या फिर भारतीय उपमहाद्वीप की बात.

इसी प्रकार  विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक अंकोरवाट, एक हिन्दू मंदिर है जो कंबोडिया में स्थित है. यह भगवान विष्णु का मंदिर है जो आज भी संसार का सबसे बड़ा मंदिर है और सैकड़ों वर्ग मील में फैला है. यह मंदिर आज कंबोडिया राष्ट्र के सम्मान का प्रतीक है और इसे 1983 से कंबोडिया के राष्ट्रध्वज में स्थान दिया गया. विश्व का सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थल होने के साथ साथ यह मंदिर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में से भी एक है.

इन्हीं जानकारियों के बीच आपको अगर यह बताया जाए कि दक्षिण अफ्रीका में भी पुरातत्वविदों को लगभग 6 हज़ार वर्ष पुराना शिवलिंग मिला है तो आप क्या कहेंगे. साउथ अफ्रीका के सुद्वारा नामक गुफा में मिले इस शिवलिंग को खोजने वाले पुरातत्वेत्ता भी हैरान हैं कि इतने वर्षों से यह शिवलिंग अभी तक सुरक्षित कैसे है? लेकिन यहाँ गुफा में स्थापित हज़ारों वर्ष पुराना शिवलिंग इतना तो प्रमाणित करता ही है कि हिन्दू धर्म अफ्रीका तक प्रचलित था.

लेकिन इन देशों से इतर अगर आपको पता चले कि वो देश जो आज अपनी हरकतों के चलते लगभग विश्व के हर देश की आँख की किरकिरी बना हुआ है, कभी वहाँ भी हिन्दू मंदिर और संस्कृति हुआ करती थी! जी हाँ चीन के एक शहर में हज़ार वर्ष पुराने हिन्दू मंदिरों के खंडहर आज भी मौजूद हैं. यहाँ से निकली नरसिंह अवतार की मूर्तियाँ और मंदिर के स्तंभों पर अंकित शिवलिंग च्वानजो के समुद्री म्यूजियम में रखी हुई हैं. रूस को लेकर भी कहा जाता है कि लगभग एक हज़ार वर्ष पूर्व वहाँ भी वैदिक पद्धति से प्रकृति जैसे सूर्य, पर्वत, वायु और पेड़ों की पूजा की जाती थी. विद्वानों का कहना है कि रूसियों द्वारा की जाने वाली प्रकृति की पूजा बहुत कुछ हिन्दू रीति रिवाजों से मेल खाती थीं.

पुरातत्ववेताओं को रूस में भी खुदाई के दौरान कभी कभी रूसी देवी देवताओं की मूर्तियां मिल जाती हैं, जिनकी समानता हिन्दू देवी देवताओं से की जा सकती है. रूस के विद्वान भी मानते हैं कि आज भले ही वहाँ ईसाई धर्म प्रचलन में है, किंतु रूस के प्राचीन धर्म के बहुत से निशान अभी भी रूसी संस्कृति में बाकी रह गए हैं जो इस ओर इशारा करते हैं कि रूस के प्राचीन धर्म और हिन्दू धर्म में काफी समानताएं हैं.

आप कह सकते हैं कि यह बीते समय के प्रमाण हैं तो आपको वर्तमान समय के कुछ प्रमाण भी रोचक लग सकते हैं. जापान के विषय में आपका क्या विचार है? क्या जापान की वर्तमान संस्कृति और सनातन संस्कृति में कोई संबंध है? दरअसल जापान में सैकड़ों धार्मिक स्थल हैं, जहाँ की मूर्तियाँ देवी सरस्वती, लक्ष्मी, इंद्र देव, ब्रह्मा, गणेश, गरुड़, कुबेर, वायुदेव और वरुणदेव का प्रतीक हैं. यहाँ जिन देवी देवताओं की पूजा की जाती है.

जैसे वहाँ कांजीतेन भगवान की पूजा की जाती है, जिनकी मूर्ति गणेश जी के समान है, उन्हें बिनायकतेन (विनायक) कहा जाता है और ऐसी मान्यता है कि ये विघ्न हरकर समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. इसी प्रकार वहाँ बॉनतेन भगवान (ब्रह्मा) की पूजा होती है, जिनकी मूर्ति के चार सिर और चार हाथ हैं और ऐसा माना जाता है कि ये ब्रह्मलोक में निवास करते हैं. जापानी ताईशाकूतेन (इंद्रदेव) की पूजा करते हैं जो हाथी की सवारी करते हैं और मान्यता है कि वे स्वर्गलोक के राजा हैं. इसी प्रकार जापान में किच्चिजोतेन देवी (लक्ष्मी) की पूजा की जाती है जो कमल के फूल पर विराजमान हैं और इन्हें भाग्य और ऐश्वर्य की देवी माना जाता है. यह तो हुई सनातन धर्म से समानता की बात. अगर आध्यात्मिक ज्ञान और भारतीय दर्शन की बात करें तो भारतीय वांग्मय में मानव शरीर की आत्मिक ऊर्जा का केंद्र चक्रों को माना गया है और सात प्रमुख चक्र उल्लेख हैं. जापान की रेकी विद्या और इन चक्रों में भी काफी समानता है.

इस तरह जब हमें यह प्रमाण मिलते हैं कि रूस से लेकर रोम तक और इंडोनेशिया से लेकर अफ्रीका तक के देशों के इतिहास में कभी सनातन हिन्दू धर्म वहाँ की संस्कृति का हिस्सा था. और इसमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि भारत ने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया, अपने उपनिवेश स्थापित नहीं किये. अन्य संस्कृतियों को नष्ट करने का प्रयास नहीं किया, जबरन धर्मांतरण के प्रयास नहीं किये. भारत के शासक जहां भी गए उन्होंने वहां की संस्कृति का संवर्धन ही किया, और भारत के वसुधैव कुटुंबकम, सर्वे भवन्तु सुखिनः के विचार को ही पल्लवित किया.

 

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