नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने वंचित वर्ग को समाज में समानता का स्थान दिलाकर उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिये अपनी तीव्र आकांक्षा व्यक्त की है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन राव भागवत ने संघ कार्यकर्ताओं के साथ आम भारतीयों को आगे बढ़कर उनका हाथ थामकर उन्हें बराबरी में लाने का आह्वान किया है. उन्होंने कहा कि यह काम अहंकार से नहीं, आत्मीयता से होना चाहिये. यह प्रयास बड़े भाई की तरह का हो. परम पूज्य ने कहा, ‘हम आरक्षण का समर्थन करते हैं. जब तक समाज में असमानता है, आरक्षण जरूरी है. जो लोग इस असमानता से पीड़ित हैं, उन्हें बराबर लाने के लिये आरक्षण चाहिये. लेकिन इस पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिये.’
एनडीएमसी के कंवेंशन सेंटर में 7 सितंबर को भाजपा प्रवक्ता डॉ. विजय सोनकर शास्त्री द्वारा लिखी तीन पुस्तकों हिंदू चर्मकारी जाति, हिंदू वाल्मीकि जाति व हिंदू खटीक जाति के विमोचन अवसर पर संघ प्रमुख ने कहा कि एक हजार साल तक उन लोगों ने देश हित के लिये अन्याय सहा. ‘जिन कारणों से उन्होंने अन्याय सहा, अब स्वतंत्र हो जाने के बाद वे कारण उपस्थित नहीं हैं. अब हमारा दायित्व है कि उन्हें बराबरी पर लायें और इसके लिये यदि किसी को 100 साल तक भी अन्याय सहना पड़े तो सहें.’ संघ प्रमुख ने कहा कि जो समाज विकास चाहता है, वह इस तरह के हालात को अधिक समय तक चलने नहीं दे सकता और समानता का यह लक्ष्य स्वतंत्रता के बाद ही प्राप्त कर लिया जाना चाहिये था.
देश के संविधान में अनुसूचित जाति एवं जनजातियों को प्राप्त आरक्षण पर संघ के दृष्टिकोण को और अधिक स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि हजारों वर्षो तक वंचित वर्ग के लोगों ने अस्पृश्यता, अपमान सहा है. ऐसे में इन्हें बराबरी पर लाने के लिये कुछ सौ सालों तक और आरक्षण मिले तो कोई हर्ज नहीं है. उन्होंने कहा कि हर मामले को तराजू पर तौलकर नहीं देखा जा सकता है. परम पूज्य ने कहा कि आरक्षण का तर्क भी समझ में आ जायेगा, अगर उसमें विचार नहीं बल्कि आत्मीयता होगी.
संघ के ‘सामाजिक समरसता’ के भाव को आगे करते हुए उन्होंने कहा कि अस्वच्छता से अपवित्रता नहीं होती है. अपवित्रता के भाव को दूर करने के लिये उन्होंने चिकित्सक के ऑपरेशन और मां के छोटे बच्चे का मल साफ करने का उल्लेख किया. उन्होंने इसके लिये शास्त्रों को भी किनारे रख देने पर जोर दिया.
परम पूज्य ने इस मुद्दे पर अगड़ी जातियों को आत्ममंथन की सलाह दी. उन्होंने कहा कि उन्हें यह आभास होना चाहिये कि उनके दोषों के कारण वंचित वर्ग के लोगों को विकास और सम्मान नहीं मिला और अभी तक उन्होंने इस तरफ कदम न उठाकर गलती की है.
लेखक डॉ. विजय सोनकर शास्त्री ने अपनी तीनों पुस्तकों के कलेवर पर प्रकाश डाला तथा बताया कि हिन्दू उपजातियों की संख्या हजारों में कैसे पहुँच गई, यह अपने आप में शोध का विषय है. आज की अछूत जातियाँ पूर्व कट्टर और बहादुर जातियाँ थीं. विदेशी आक्रांताओं के अत्याचारों को सहते हुये उन्होंने अपना धर्म परिवर्तन नहीं किया, बल्कि मैला ढोने जैसे कर्म को स्वीकार किया. तब फिर उनसे ज्यादा कट्टर हिन्दू और कौन हो सकता है.
विशिष्ट अतिथि प्रणव पंड्या ने कहा कि गायत्री परिवार पहले से ही समाज समरसता का कार्य कर रहा है. यहाँ किसी प्रकार की छूआछूत को कोई स्थान नहीं है. उन्होंने सुझाव दिया कि सभी हिंदुओं को अपने जातिसूचक उपनाम हटा देने चाहिये. अपने अत्यंत संक्षिप्त उद्बोधन में शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि उनका मंत्रालय समाज में समरसता लाने का कार्य प्रमुखता से कर रहा है. अब तक अछूत बनी सभी जातियों को मुख्यधारा में अवश्य आना चाहिये. सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने अपनी माँ का उदाहरण देते हुये कहा कि हमारे यहाँ कभी छूआछूत नहीं बरती जाती थी और संघ शाखा में जाने के बाद देखा कि वहाँ भी कोई किसी की जाति नहीं पूछता था, इसलिये हमें कभी इस प्रकार की कठिनाई को देखने का अवसर नहीं मिला. अब समय आ गया कि सभी जातियों को एकजुट हो जाना चाहिये. राजनीति में भी एक नई प्रकार की छुआछूत आ गई थी. वर्ष 2014 के चुनाव में नरेन्द्र मोदी की अगुआई में जातियों द्वारा बनाई गई यह दीवार ढह गई है. राजनीति में जाति के आधार पर मतदान का चलन शुरू हुआ, इसलिये सामाजिक संदर्भों में, 2014 के चुनाव इस लिहाज से क्रांतिकारी रहे कि जातियों द्वारा बनाई गई दीवार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुआई में एक ही झटके में ढह गई.
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में विहिप के वरिष्ठ नेता श्री अशोक सिंहल ने कहा कि उन्होंने शंकराचार्य के सामने भी इस समस्या को रखा कि अछूत जातियों की सूचियाँ किसने बनाईं? किस आधार पर बनाईं? इन्हें बनाने का मानदंड क्या रहा? लेकिन आज तक कोई इन प्रश्नों के उत्तर नहीं दे सका. आखिर एक जाति उ.प्र. में दलित जाति में गिनी जाती है, वही जाति पंजाब में सवर्ण जातियों में शामिल है. ये उपजातियाँ घटने के बजाय बढ़ क्यों रही हैं?
श्री सिंघल ने तथाकथित दलितों को पहले ब्राह्मण-क्षत्रिय होने का दावा करते हुए कहा कि यह लड़ाका कौम थी और मुगलों से लोहा लिया. जब पराजित हुए तो मुगलों ने उन्हें समाज से अलग करने का षड्यंत्र रचा. उन्होंने अंग्रेजी लेखकों द्वारा भारत के इतिहास से छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुए फिर से इतिहास लिखने पर जोर दिया.