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सिनेमा, एप और ऑनलाइन सीरीज में बढ़ती अश्लीलता

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प्रभाकर शुक्ला

अभी कुछ दिन पहले ही हिंदुस्तानी भाउ ने एकता कपूर और उनकी कंपनी ऑल्ट बालाजी पर अश्लीलता और सेना के अपमान का केस दर्ज किया और सोशल मीडिया पर लोगों ने समर्थन भी किया. एकता कपूर की सीरीज एक्स एक्स एक्स में एक सैनिक जो नौकरी पर जाता जाता है, उसकी  पत्नी को सेना की वर्दी पहन कर अवैध सम्बन्ध बनाते दिखाया गया है. जिसमे सेना की वर्दी को फाड़ा जाता है. हो सकता है कि एकता कपूर या फिर उनके राइटर को यह बहुत उत्तेजनापूर्ण लगा हो, लेकिन यह सरासर सेना और उसकी वर्दी का अपमान है, देश का अपमान है.

बात सिर्फ यहीं नहीं रुकती, इसके पहले और इसके बाद भी बहुत से ऐसे विषय सब के सामने आ चुके हैं. अनुष्का शर्मा की सीरीज पाताल लोक, जिसमे ब्राह्मणों, मंदिरों, देवी देवताओं, सिक्ख समुदाय, पहाड़ी, नेपाली लोगों का भी अपमान किया गया और अल्पसंख्यक समुदाय को बिलकुल दूध का धुला बताया गया. इसमें मॉब लिंचिंग और राम मंदिर के मुद्दों को गलत दृष्टि से दिखाया गया. मशहूर निर्देशक दीपा मेहता की सीरीज लैला में भी अतिरंजनापूर्ण तरीके से यह दिखाने की कोशिश की गयी कि अगर भारत में वर्तमान सरकार अगले ३० साल तक रही तो कैसे हालात हो सकते हैं. यह सब सिर्फ एक विचारधारा तैयार करने की कोशिश की जा रही है और इन सब विचारों को अप्रत्यक्ष तरीके से लोगों के अवचेतन मस्तिष्क में बैठाया जा रहा है.

अनुराग कश्यप की सीरीज सेक्रेड गेम्स की जितनी भी चर्चा की जाए कम है क्योंकि विकृत मानसिकता से गाली, सेक्स, फूहड़ता और अश्लीलता को कहानी की मांग कह कर परोसना सिर्फ पैसा कमाने का जरिया है. इन्हें सिर्फ पैसों की चिंता है समाज की नहीं. भले ही लोग कहते रहें कि सिनेमा समाज का आइना होता है. ऐसे ही मिर्ज़ापुर, रक्तांचल जैसी बहुत सारी सीरीज हैं, सीरीज क्यों बहुत सारे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और एप जैसे उल्लू (५० लाख +), प्राइम फ्लिक्स (१ लाख +), रपचिक, एम एक्स प्लेयर (५० करोड़ +), ऑल्ट बालाजी (१ cr +), जेम प्लेक्स (१० हज़ार+), सिनेमा दोस्ती (१ लाख +), फ्लिज़ मूवीज (१० लाख +), जिओ सिनेमा (५ करोड़ +), वीबी ऑन वेब (१६ लाख+), हॉट-शॉट ( ५ लाख +), होई चोई (१० लाख +), अड्डा टाइम्स आदि भी हैं जो आंशिक या पूर्णरूप से अश्लीलता, गाली गलौज और हिंसा के सौदागर हैं. (सब्सक्राइबर और डाउनलोड्स)

यही लगता है कि ये सब सिर्फ पैसों के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं और बातें करते हैं कि हम वही दिखाते हैं जो दर्शक देखना चाहते हैं. इस मानसिक, नैतिक और सांस्कृतिक पतन की शुरुआत अगर कहा जाए तो पूजा भट्ट और महेश भट्ट की फिल्म जिस्म (२००३) व मर्डर (२००४) से हुई. ऐसा नहीं है कि इसके पहले फिल्मों में इस तरह का चलन नहीं था. अगर था भी तो ढके छिपे तरीके से कांति शाह जैसे लोग अपनी रोज़ी रोटी चला रहे थे. ऐसे में महेश भट्ट ने कांति शाह जैसों के विषय को सी ग्रेड से निकाल कर ए ग्रेड में परोसना शुरू कर दिया. रही सही कसर पोर्न फिल्मों की हीरोइन सनी लिओनी को कलर्स चैनल ने बिग बॉस में लेकर पूरी कर दी. जो नहीं भी जानता था, वह उसे इंटरनेट पर खोजने लगा. दुनिया में अश्लील व्यापार वालों को इससे भारत में अपना बाजार नज़र आया. अपुष्ट सूत्रों के अनुसार पोर्न इंडस्ट्री वाली लॉबी ने फिर पैसे देकर मेन स्ट्रीम फिल्म में मुख्य भूमिका में खड़ा कर दिया.

अब असली खेल शुरू हुआ, कई बड़ी फिल्मों में आइटम सांग रखे जाने लगे और उसे लेकर सॉफ्ट पोर्न और अति वयस्क फ़िल्में जैसे मस्तीज़ादे, वन नाईट स्टैंड आदि बनने लगीं. नोटों की बारिश होने लगी. कई लोग तो यह भी कहने लगे कि फिल्मों की सफलता की गारंटी तभी है, जब उसमे ए क्लास हीरो हो या फिर सी क्लास वाला सेक्स.

लेकिन फिल्मों की यह आंधी सेंसर बोर्ड से टकराई तो मस्तीज़ादे, ग्रेट ग्रैंड मस्ती, क्या सुपर कूल हैं हम जैसी अति वयस्क फ़िल्में फंसी, कटीं, थोड़ी भोथरी हुईं, लेकिन ट्रिब्यूनल या कोर्ट के आर्डर से रिलीज़ भी हुईं. कुछ चलीं, कुछ नहीं चलीं.

अब शुरू होता है सस्ते इंटरनेट और गंदे वीडियो का खेल एप और ओटीटी प्लैटफॉर्म्स के जरिये.

एकता कपूर ने फिल्म बनाई रागिनी एमएमएस-२ और सफलता का फार्मूला मिला ऑल्ट बालाजी एप में गन्दी बात सीरीज के साथ. विक्रम भट्ट ने भी वी बी ऑन वेब से उसी गंध को भुनाना शुरू किया. इस समय तक बहुत सारे छोटे छोटे निर्माता निर्देशक ऐसी सी ग्रेड फिल्में बनाकर यू ट्यूब से पैसे कमाना शुरू कर चुके थे. एक तरह भेड़ चाल शुरू हो गई थी कि कौन कितना गिर सकता है. इन सबको मिड नाईट वीडियो कहा जाने लगा और इनके दर्शकों की एक बड़ी तादात हो गई. इन सब की सरकार और सेंसर बोर्ड से कई बार लोगों ने शिकायत भी की, लेकिन सबका प्रसारण स्थान अपने देश से बाहर  होने की वजह से कुछ कड़ी कार्रवाई नहीं हो पायी.

अब ज़रा इनका बिज़नेस मॉडल समझिये. ऑल्ट बालाजी एक करोड़ से ज्यादा डाउनलोड और ३०० रुपये की  एक साल की फीस मतलब ३०० करोड़ हर साल. अब इतनी बड़ी रकम कोई क्यों छोड़ेगा चाहे ज़मीर ही क्यों ना छोड़ना पड़े. ऐसे ही उल्लू के ५० लाख से ज्यादा डाउनलोड ९९ रुपये एक साल के तो लगभग ५० करोड़. कोई सेंसरशिप नहीं जो मर्जी दिखाओ, चाहे देश का अपमान हो, कला का, संस्कृति का या फिर सेना का. बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया.

अब शुरुआत होती है अमेज़न और नेटफ्लिक्स की. पूरी दुनिया में धूम मचाने के बाद जब भारत में लांच हुए मिर्ज़ापुर और सेक्रेड गेम्स से. जिनमें गाली गलौज, हिंसा और सेक्स का पूरा मसाला था. रिलीज़ होते ही इन लोगों ने हज़ारों करोड़ के सब्सक्रिप्शन कमा लिए. आप करो लड़ाई कि यह क्यों दिखाया, ऐसा क्यों दिखाया, लेकिन आप कुछ कर नहीं पाओगे क्योंकि यह सब ओटीटी प्लेटफॉर्म अपने देश के बाहर से प्रसारित होते हैं और हमारे कानून के हाथ वहां तक नहीं पहुँच पाते.

इनकी देखा देखी और भी कई सारे एप और ओटीटी प्लेटफॉर्म शुरू हो गए. जिनका एक ही ध्येय है, पैसा चाहे उसके लिए पोर्न दिखाना पड़े या फिर संस्कृति का सत्यानाश. इस समय देश में ऐसे एप और ओटीटी प्लेटफॉर्मस की बाढ़ आ गयी है. सब अपनी अपनी डफली लेकर भेड़चाल में कूद गए हैं, चाहे वह बड़े निर्माता हों या छोटे. अब सरकार को इस बारे में कोई ठोस कानून बनाना ही पड़ेगा.

अगर इसका विश्लेषण करें तो यह कला के ऊपर बाज़ारवाद, भोग और स्वार्थ का हावी होना है. पहले फिल्में धर्म, इतिहास और संस्कृति पर बनती थीं. फिर सामाजिक विषयों पर बननी शुरू हुईं, ऐसे ही एक्शन, कॉमेडी यथार्थ वाद से होते हुए भोगवाद पर आ गयी हैं. लेकिन उनका प्रसारण माध्यम और प्रस्तुतीकरण बदल गया है. अब लोग सेक्स या अश्लील विषय पर फिल्म या सीरीज बनाना और उसमे काम करना अपनी तौहीन नहीं समझते, बल्कि बड़े उत्साह से उसे सबको शेयर करते हैं. बहुत से ऐसे बड़े कलाकार जो ऐसे विषय नहीं करते थे, अब वह भी पैसे के लालच में यहां नहीं विदेशी फिल्म और सीरीज में अंग प्रदर्शन और अश्लीलता प्रदर्शन को अपनी शान समझते हैं. कहते हैं कि क्या करें कहानी की डिमांड है और वहां तो यह सब नॉर्मल है. उन्हें यह नहीं समझ में आता है कि यह विदेशी कंपनियां जो आप को दोगुने तिगुने पैसे देकर यह सब करवा रही हैं वो आपके माध्यम से इस देश के बंद दरवाजे अपने लिए खोल रही हैं. फिर एक बार जब बड़े स्टार इसमें लिप्त हो गए तो बाकि छोटे वालों के लिए वह एक मिसाल बन जाती है कि प्रियंका ने किया, दीपिका ने किया तो हम भी कर लेंगे.

यह तो एक ऐसी आदत लगायी जा रही है जो आसानी से छूटेगी नहीं. जैसे अंग्रेजों ने फ्री में चाय पिला पिला कर लोगों को चाय का आदि बना दिया, वैसे ही थोड़ा थोड़ा दिखा कर यह कम्पनियां अपने भविष्य के बाजार और ग्राहक तैयार कर रही हैं.

पूरी दुनिया में पोर्न इंडस्ट्री का बिज़नेस लगभग ६०० खरब डॉलर से ज्यादा का है. एक बार जब यहां के लोगों को इसकी आदत लग जाएगी तो छूटेगी नहीं और उनका धंधा चालू हो जाएगा जोरों से. क्या करें गंदा है, पर धंधा है ये.

इस विषय पर सरकार को गाइड लाइन्स और कानून बनाना चहिये नहीं तो लोगों के हाथ में जो मोबाइल है, उसे पीली पन्नी की किताब की तरह नीला पीला होने में देर नहीं लगेगी.

(Writer & Film Director, Ex Member Censor Board)

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