स्वदेशी जागरण मंच एवं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा ‘स्वावलंबी भारत एवं मीडिया की भूमिका’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन
भोपाल. 2014. स्वाधीनता के बाद जिस नेतृत्व को भारत की ग्रोथ स्टोरी लिखनी थी, उसने भारत की परंपरा, संस्कृति, सामाजिक तानेबाने और अर्थव्यवस्था को समझने की कोशिश ही नहीं की. असल में भारत के प्रति उनकी आस्था ही नहीं थी. यही कारण है कि 67 साल बाद भारत सरकार के ही मुताबिक 33 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं और 24 करोड़ लोग खाली पेट सोने को मजबूर हैं. भारत को विकास के लिए स्वदेशी मॉडल की जरूरत थी लेकिन देश पर साम्यवादी और फिर अमरीकी मॉडल थोप दिया गया. यह विचार स्वदेशी जागरण मंच के क्षेत्र संगठक श्री सतीश ने व्यक्त किए. वे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में ‘स्वावलंबी भारत एवं मीडिया की भूमिका’ विषय पर 15 नवम्बर को आयोजित व्याख्यान में बतौर मुख्य वक्ता उपस्थित थे.
विख्यात आर्थिक चिंतक दत्तोपंत ठेंगडी की स्मृति में आयोजित व्याख्यान में स्वदेश चिंतक श्री सतीश ने कहा कि भारत के साथ-साथ जापान, इजराइल और चीन ने भी अपनी विकास यात्रा शुरू की थी. लेकिन, ये देश आज कहां है और हम कहां? इसका कारण है हमारे नेतृत्व ने विकास का स्वदेशी मॉडल नहीं अपनाया. साम्यवाद और कम्युनिज्म के प्रभाव में आकर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देश पर रशियन मॉडल थोप दिया. वर्ष 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अमरीकी मॉडल लाद दिया. जबकि उन देशों ने अपने परिवेश को ध्यान में रखकर अपने मॉडल बनाए, आज वे दुनिया की बड़ी ताकतें हैं. उन्होंने कहा कि जब भी स्वदेशी की बात आती है तो ध्यान में आता है, चरखा, खादी, गोबर से लिपे-पुते मकान यानी पुराने समय में चले जाना. जबकि स्वदेशी का वास्तविक अर्थ है स्वावलम्बन. सन् 1500 में भारत दुनिया की जीडीपी में 32 प्रतिशत और वर्ष 1820 में 16 प्रतिशत योगदान करता था. आज क्या स्थिति है? दरअसल, भारत में न तो पैसे की कमी है और न ही बुद्धि की . स्वतंत्रतासेनानियों के सपने का भारत बनाने के लिए हमें स्वदेशी अर्थव्यवस्था की जरूरत है. प्रख्यात अर्थशास्त्री एंगस मेडिसन ने दुनिया के 200 साल की अर्थव्यवस्था का इतिहास लिखा है. भारतीय अर्थशास्त्री दीपक नैयर की पुस्तक है ‘कैचअप’. दोनों ही विद्वानों के निष्कर्ष हैं कि प्राचीन भारत की अर्थव्यवस्था सबसे बेहतर और मजबूत रही है. श्री सतीश ने कहा कि दुनिया का नेतृत्व करने के लिए हमें अपनी उसी स्वावलंबी अर्थव्यवस्था पर लौटना होगा. स्वावलंबी अर्थव्यवस्था से ही भारत का असली विकास होगा. मीडिया को इस प्रकार का वातावरण बनाने में अपनी भूमिका का निर्वाहन करना चाहिए.
भारत लिखेगा दुनिया का इतिहास : प्रो. कुठियाला
कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने बताया कि एक अमरीकी विद्वान ने लिखा है कि आधुनिक दुनिया के इतिहास का पहला चेप्टर रूस और अमरीका ने लिखा है. लेकिन, आगे के चेप्टर भारत लिखेगा. उन्होंने कहा कि दुनिया जिन सूत्रों को खोजने का प्रयास कर रही है, वे सूत्र हमारे पास पहले से हैं. बस, उन्हें खोजकर वर्तमान के संदर्भ में प्रस्तुत करने की जरूरत है. उन्होंने बताया कि हाल ही में एक विद्वान का रिसर्च पेपर ‘हिन्दू मॉडल ऑफ कम्युनिकेशन’ सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले चाइना के रिसर्च जनरल में प्रकाशित हुआ है. इसे काफी मान्यता मिल रही है. दुनिया के तमाम विद्वान उसे संदर्भ की तरह उपयोग कर रहे हैं. प्रो. कुठियाला ने कहा कि हमें मीडिया के संबंध में भी चिंता करनी चाहिए कि भारत का मीडिया भारतीय है क्या? क्या मीडिया भारतीय हितों की चिंता करता है? मीडिया में भारतीय मूल्यों को ध्यान में रखकर काम किया जाता है क्या? इस मौके पर विश्वविद्यालय की ओर से प्रकाशित पाठ्यपुस्तकों के ब्रोसर का विमोचन किया गया. कार्यक्रम का संचालन डॉ. पवन मलिक और आभार प्रदर्शन दीपक पोरवाल ने किया.