नई दिल्ली. प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने यहां 10 नवंबर को स्वर्गीय श्री एकनाथ रानाडे को एक ऐसी विभूति बताया जिन्होंने हमें अपने जीवन को न केवल सफल, बल्कि सार्थक बनाने के लिये भी प्रेरित किया. प्रधानमंत्री ने रानाडेजी को अपना प्रेरणास्रोत बताते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी.
एकनाथ रानाडे जन्म शती पर्व के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि रानाडे जी भव्य और दिव्य भारत के निर्माण के प्रेरणास्रोत थे. उन्होंने कहा कि भारत का गरीब समृद्धता चाहता है और दुनिया भारत से आध्यात्मिकता हासिल करना चाहती है.
प्रधानमंत्री ने कहा कि रानाडे जी का मिशन स्वामी विवेकानंद के सपनों के अनुरूप युवाओं को तैयार करना था. उन्होंने पूर्वोत्तर राज्यों में विवेकानंद केन्द्र द्वारा किये गये कार्यों को सराहा. उन्होंने कहा कि रानाडे जी वास्तव में ‘एक जीवन, एक मिशन’ के सिद्धांत का पालन करते रहे.
प्रधानमंत्री ने रानाडे जी के सान्निध्य का भावपूर्ण स्मरण करते हुए उनके साथ अपने व्यक्तिगत अनुभवों को विस्तार से बताया. उन्होंने कहा कि यह उनका सौभाग्य है कि अपने रचनात्मक वर्षों में उनके साथ काम करने के बाद वह आज उनके जन्म शती पर्व में भाग ले रहे हैं. उन्होंने श्री रानाडे को पूर्णतावादी बताया. कन्याकुमारी में विवेकानंद शिला स्मारक के निर्माण में रानाडे जी की भूमिका की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वे कार्य एवं व्यवहार में अत्यंत सूक्ष्म दृष्टि के साथ छोटी-छोटी बातों पर भी ध्यान देते थे. उदाहरण के लिये, मूर्ति की आंख किस तरफ देखेगी और मूर्ति को लंबे समय तक टिकाऊ रखने के लिये किस वातावरण रोधी सामग्री का इस्तेमाल किया जाना चाहिये.
श्री मोदी ने कहा रानाडे जी से एकता के सूत्रों व जन भागीदारी से कार्य करने की सीख लेने का आह्वान किया और कहा कि उन्होंने विवेकानंद शिला स्मारक के निर्माण के लिये सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से सहयोग मांगा था. उन्होंने कहा कि 40 साल से ज्यादा उम्र के अनेक भारतीय इस बात के स्मरण से गर्व करेंगे कि उन्होंने इस स्मारक के निर्माण के लिये छोटी धनराशि दान में दी थी और इस तरह इसमें उनका भी योगदान है.
एकनाथ रानाडे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्पित कार्यकर्ता थे जिन्होने सन् 1926 से ही संघ के विभिन्न दायित्वों का निर्वाह किया. कन्याकुमारी स्थित विवेकानन्द स्मारक शिला के निर्माण के लिये आन्दोलन करने एवं सफलतापूर्वक इस स्मारक का निर्माण करने के कारण लोग उन्हें आज भी याद करते हैं.
एकनाथ रानाडे का जन्म 19 नवम्बर 1914 को अमरावती जिले के टिटिला गांव में हुआ था. वहां शैक्षणिक सुविधायें नहीं थीं जिस कारण एकनाथ अपने बड़े भाई के घर नागपुर पढ़ाई करने के उद्देश्य से आये और यही से रानाडे संघ से जुड़ गये. 1936 में शिक्षा पूरी करने के बाद वे प्रचारक के रूप में मध्य प्रदेश में गये. महाकौशल तथा छत्तीसगढ़ में उन्होंने संघ कार्यों का विस्तार किया. मध्य प्रदेश प्रवास के समय उन्होंने डॉ॰ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय (सागर विश्वविद्यालय) से तत्त्वज्ञान विषय में स्नातकोत्तर भी किया.
एकनाथ रानाडे का नाम सुनते ही कन्याकुमारी के तीन सागरों के संगम पर स्थित “स्वामी विवेकानन्द शिला स्मारक’ की याद आती है और इस भव्य स्मारक के शिल्पकार का चित्र आंखों के सामने साकार हो जाता है. संघ के व्दितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी ने शिला स्मारक का काम श्री एकनाथ रानाडे के कंधों पर डाला था. जब वे मध्य प्रदेश में संघ कार्य का दायित्व यशस्वी रूप से सम्भाल रहे थे, उन्हीं दिनों महात्मा गांधी की हत्या हुई. इस दौरान पंडित नेहरू की तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने संघ पर पाबंदी लगाई. संघ ने इसके विरोध में जो सत्याग्रह किया, उसका नेतृत्व भी एकनाथ रानाडे ने भूमिगत रहकर किया. 22 अगस्त 1982 को गणेश चतुर्थी के दिन उनका निधन हो गया था.