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‘हिंदू लड़कियों की पीड़ा उन्हें दिखाई क्यों नहीं देती?’

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41_11_09_15_kishan_gopalji0004_H@@IGHT_256_W@@IDTH_319जितने तथाकथित सेकुलर या मानवाधिकारी संगठन हैं, उनको हिंदुओं की पीड़ा दिखाई नहीं देती. वे हिंदू के कष्ट को कष्ट नहीं मानते. हजारों हिंदू बालिकाओं का कष्ट उनके दिल को आहत नहीं करता. महिला की चिंता करने का दावा करने वाले तमाम महिला संगठन ऐसे में कहां छिप जाते हैं?

लव जिहाद की बढ़ती घटनाओं के सन्दर्भ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह डॉ.कृष्णगोपाल से पाञ्चजन्य की बातचीत के संपादित अंश यहां प्रस्तुत हैं.

देश के विभिन्न हिस्सों से आज लव जिहाद की घटनायें सुनने में आ रही हैं. इसके फैलते व्याप के बारे में आपका क्या कहना है?

ये पूरे देश की समस्या बनती जा रही है. अनेक समाचार भी इस तरह के आ रहे हैं. कई हिस्सों में यह समस्या गंभीर रूप धारण कर चुकी है. प्रशासन और पुलिस के लोगों द्वारा इस समस्या की गहराई से जांच करने पर यह तथ्य सामने आ रहा है कि मुस्लिम वर्ग के युवक इस पूरे षड्यंत्र में शामिल हैं. कई स्थानों पर तो वे नाम बदल लेते हैं और अन्य नामों से दूसरे संप्रदायों, खासकर हिंदू संप्रदाय की लड़कियों को बहला-फुसलाकर झांसे में फंसा लेते हैं.

केरल उच्च न्यायालय ने इस संबंध में गंभीर टिप्पणी की थी. क्या उससे यह साफ नहीं हो जाता कि यह समस्या गंभीर रूप धारण कर चुकी है?

केरल उच्च न्यायालय ने कुछ समय पूर्व ऐसे मामलों पर गंभीर संज्ञान लिया था. इसलिये इस समस्या को कुछ घटनाओं तक सीमित न जानकर इसका व्यापक संज्ञान लेना चाहिये. इसके दूरगामी परिणामों की गंभीरता ध्यान में रखनी चाहिये. कई स्थानों पर तो माना जाता है, ऐसे मामले बड़ी संख्या में हुये हैं. देश के लगभग सभी बड़े जिलों, शहरों में यह समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. जांच करने वालों को समझ आने लगा है कि यह किसी बड़ी साजिश के तहत किया जा रहा है, क्योंकि इसमें दो तीन बातें बड़े साफ तौर पर दिखाई देती हैं. वे ये कि जब एक वर्ग यानी मुस्लिम वर्ग को कानून के द्वारा बहुविवाह की छूट मिल जाती है तो वे ऐसी हरकतें करने के लिये स्वतंत्र हो जाते हैं. इसलिये सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार दिशा निर्देश दिया है कि देश समान नागरिक संहिता की दिशा में आगे बढ़े. हिंदू की तरह देश के प्रत्येक नागरिक पर एक विवाह का कानून लागू होना चाहिये. दुनिया के अनेक मुस्लिम देशों में ऐसा कानून है. यह सामाजिक व्यवस्था बनाये रखने के लिये भी जरूरी है. साथ ही, इस तरह के मामले सामने आने पर उनसे निपटने के लिये कठोर कानून बनने चाहिये. एक संप्रदाय विशेष की लड़कियों के साथ होने वाले अन्याय के लिये विशेष कानून बनाया जाना चाहिये ताकि इस प्रवृत्ति को बढ़ने से रोका जा सके.

उत्तर प्रदेश, केरल और अन्य स्थानों के अलावा पूर्वोत्तर में ऐसी घटनायें तेजी से बढ़ती दिखाई दी हैं, इस पर आपका क्या कहना है?

गुवाहाटी, धुबरी, बरपेटा, नौगांव, नलबाड़ी, करीमगंज आदि अनेक मुस्लिम बहुल जिलों में ऐसी घटनायें देखने में आई हैं. यह कोई अचानक हो जाने वाली चीज नहीं है. यह सामान्य प्रेम- विवाह जैसा नहीं है. यह एक बहुत बड़ा षड्यंत्र है. अभी कुछ दिन पहले मुजफ्फरनगर में हुए दंगे के पीछे भी हिंदू लड़कियों से छेड़छाड़ ही कारण था. कुछ दिन पहले सिल्चर की विधायक रूमी नाथ का विवाह भी जबरदस्ती मुस्लिम से हुआ और उस पर मुसलमान बनने का दबाव डाला गया था. ये ऐसी घटनायें नहीं हैं, जिनको अनदेखा किया जा सके. इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर एक शक्ति संपन्न एजेंसी बननी चाहिये जिसकी अध्यक्षता सेवानिवृत्त न्यायाधीश कर सकते हैं. इसे रोकने के लिये राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को हर संभव प्रयत्न करना चाहिये. यह चलन भारत की महान परंपराओं के सर्वथा विपरीत है.

इस षड्यंत्र के पीछे क्या उन्हें कोई राजनीतिक शह भी प्राप्त है?

ऐसा क्यों है कि एक आध मामले में ही राजनीतिक दल आगे आते हैं, लेकिन ऐसे ही दूसरे हजारों मामलों में बोलने में उन्हें डर लगता है? उन्हें पीडि़त पक्ष के साथ खड़ा होना चाहिये. इस षड्यंत्र के शिकार पीड़ित पक्ष में सिर्फ हिंदू लड़कियां हैं, जो स्वभाव से सरल होती हैं. हिंदू सरल स्वभाव के होते हैं, आक्रामक नहीं होते. विभिन्न राजनीतिक दलों को ऐसा लगता है कि अगर ऐसे मामलों में बोलेंगे तो उन्हें मुस्लिम वोटों का खतरा हो जायेगा.

यह तो एक लंबे समय से चली आ रही राजनीति का हिस्सा है कि हिंदू को ही अपराधी मान लिया जाये और दूसरा पक्ष, जो मुस्लिम अपराधी होता है, उसे बचाने की कोशिश की जाये. अपराधी तो अपराधी ही है, उसे किसी संप्रदाय की दृष्टि से देखना स्वयं में ही अपराध है. इसलिये राजनीतिक दलों को सत्य के पक्ष में खड़े होना चाहिये.

हिंदू लड़की की पीड़ा पर कोई महिला संगठन, मानवाधिकारी संगठन या तथाकथित सेकुलर संगठन आवाज क्यों नहीं उठाते?

ये जितने तथाकथित सेकुलर या मानवाधिकारी संगठन हैं, उनको हिंदुओं की पीड़ा दिखाई नहीं देती. वे हिंदू के कष्ट को कष्ट नहीं मानते. हजारों हिंदू बालिकाओं का कष्ट उनके दिल को आहत नहीं करता. महिला की चिंता करने का दावा करने वाले तमाम महिला संगठन ऐसे में कहां छिप जाते हैं? उनकी जुबान क्यों बंद हो जाती है? कहीं न कहीं जरूर कोई हिंदू विरोधी शक्ति काम कर रही है.

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