कटक. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक परम पूज्य डा. मोहन राव भागवत ने कहा है कि अगर इंग्लैंड में रहने वाले अंग्रेज हैं, जर्मनी में रहने वाले जर्मन हैं और अमेरिका में रहने वाले अमेरिकी हैं तो फिर हिंदुस्तान में रहने वाले सभी लोग हिंदू क्यों नहीं हो सकते.
रविवार 10 अगस्त को उड़िया भाषा के राष्ट्रदीप साप्ताहिक के स्वर्ण जयंती समारोह में परम पूज्य सरसंघचालक जी ने कहा, ‘सभी भारतीयों की सांस्कृतिक पहचान हिंदुत्व है और देश में रहने वाले इस महान सस्कृति के वंशज हैं.’ उन्होंने कहा कि हिंदुत्व एक जीवन शैली है और किसी भी ईश्वर की उपासना करने वाला अथवा किसी की उपासना नहीं करने वाला भी हिंदू हो सकता है.
स्वामी विवेकानंद का हवाला देते हुए डा. भागवत ने कहा कि किसी ईश्वर की उपासना नहीं करने का मतलब यह जरूरी नहीं है कि कोई व्यक्ति नास्तिक है, हालांकि जिसका खुद में विश्वास नहीं है वो निश्चित तौर पर नास्तिक है. उन्होंने कहा कि दुनिया अब मान चुकी है कि हिंदुत्व ही एकमात्र ऐसा आधार है जिसने भारत को प्राचीन काल से तमाम विविधताओं के बावजूद एकजुट रखा है.
सरसंघचालक ने यह भी कहा कि नई सरकार के गठन का श्रेय देश के लोगों को जाता है क्योंकि वे ही परिवर्तन लाना चाहते थे. ऐसा किसी एक नेता या पार्टी के कारण नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि लोगों को वह सरकार मिली जिसके वे अधिकारी थे. उन्होंने कहा कि कुछ लोग विजय का श्रेय कुछ लोगों को जबकि कुछ पार्टी को देते हैं लेकिन वास्तव में परिवर्तन तब हुआ जब देश के लोगों ने इसका फैसला किया. उन्होंने कहा कि वे ही लोग और वे ही पार्टियां पहले भी मौजूद थीं लेकिन सत्ता में परिवर्तन संभव नहीं हो पाया था.
डा. भागवत ने देश की सुरक्षा और विकास पर जोर दिया और कहा कि जिम्मेदारी सरकार पर नहीं बल्कि लोगों पर है, क्योंकि मतदाता (देश के) मालिक हैं. भागवत ने कहा कि सामाजिक विकास के लिये देश की सुरक्षा जरूरी है. उन्होंने कहा कि लोग अब तलवार जैसे पारंपरिक हथियार भूल गये हैं और उनकी जगह नये हथियारों ने ले ली है. उन्होंने कहा कि सुरक्षा मुद्दे ने कई क्षेत्रों को प्रभावित किया है जिसमें जमीन, पानी, पर्यावरण, पारिस्थितिकी और व्यापार शामिल हैं. उन्होंने कहा कि यदि कोई कमजोर हो जाता है तो उस पर विषाणु हमले करते हैं. उन्होंने कहा कि यह देखना होगा कि कहीं कोई दुश्मनों के लिये दरवाजे तो नहीं खोल रहा.
सरसंघचालक ने देश की संस्कृति, परंपरा और सामाजिक तानेबाने को सहेजने पर जोर देते हुए कहा कि नये विचारों के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है ताकि सामाजिक विकास हो सके और अपनी पहचान बन सके.