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‘अविरत श्रम करना, संघ जीवन जीना’ इस पंक्ति को बालासाहेब ने अर्थ दिया

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पुणे (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश (भय्याजी) जोशी ने कहा कि संघ के कार्य को केवल उसका व्याकरण अच्छा है, शब्द अच्छे हैं, स्वर अच्छे हैं, इसलिए अर्थ प्राप्त नहीं होता. बल्कि उसका अनुसरण कर जो स्वयंसेवक जीते हैं, उनके कामों के कारण अर्थ प्राप्त होता है. बालासाहेब आहिरे के कार्यों के कारण ‘अविरत श्रम करना, संघ जीवन जीना’ इस पंक्ति को सच्चे मायने में अर्थ प्राप्त हुआ है.

इन शब्दों से सरकार्यवाह जी ने नासिक के पूर्व जिला संघचालक बालासाहेब आहिरे जी को श्रद्धांजलि समर्पित की. बालासाहेब आहिरे पर ‘बिल्वदल’ नामक स्मृतिग्रंथ का लोकार्पण भय्याजी जोशी के करकमलों से संपन्न हुआ. मंच पर प्रांत संघचालक नानासाहेब जाधव जी, प्रमुख अतिथि मराठा विद्या प्रसारक संस्था की महासचिव नीलिमा पवार जी, नासिक विभाग संघचालक कैलास (नाना) सालुंखे जी, स्मृतिग्रंथ के संपादक बन्सी जोशी जी, बालासाहेब आहिरे के पुत्र निशिकांत आहिरे जी उपस्थित थे.

भय्याजी ने कहा कि ‘जिसे किसी ने नहीं देखा, ऐसे व्यक्ति का वर्णन करना आसान होता है. लेकिन जो समाज के लिए और जिनका संबंध सबसे आया, ऐसे व्यक्तित्व का वर्णन करना, उनके बारे में बोलना मुश्किल होता है. ऐसे व्यक्ति के बारे में बोलते हुए कुछ बाकी न रह जाए अथवा कुछ गलत न बोला जाए, इसका ध्यान रखना पड़ता है. संघ के विचार, कल्पना उसके गीतों में है. उन्हें अर्थ उनके शब्दों के कारण नहीं, बल्कि वैसा जीवन जीने के कारण मिलता है. बालासाहेब ने वैसा जीवन जीया. संघ प्रार्थना में ‘पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते’ पंक्ति सुनते समय बालासाहेब की छवि आंखों के सामने आती है.”

उन्होंने कहा कि पद की अवधि होती है. लेकिन काम की कोई अवधि नहीं होती. बालासाहेब शरीर का त्याग करने तक संघ के ही थे. बालासाहेब ने गृहस्थी के लिए जीवन के जितने वर्ष व्यतीत किए, उतने ही उन्होंने समाज के लिए भी दिए. पूर्व सरसंघचालक बालासाहेब देवरस को देवदुर्लभ कार्यकर्ता शब्द बालासाहेब जैसे अनगिनत कार्यकर्ताओं के कारण ही सूझा होगा.

संत ज्ञानेश्वर की पंक्ति उद्धृत करते हुए कहा कि हमारे देश और समाज को ऐसे ईश्वरनिष्ठ व्यक्ति मिले हैं. इस पंक्ति में बालासाहेब अग्रेसर हैं. संघ में विलंब से आकर भी उन्होंने संघ को अपना अमूल्य योगदान दिया. सरकार्यवाह जी ने कहा कि सेवा, समरसता और हिन्दुत्व का विचार पहुंचाने का कार्य संघ के कार्यकर्ता कर रहे हैं. उनके कामों को बालासाहेब जैसे कई कार्यकर्ताओं के कारण उजाला मिलता है. उनका यह स्मृतिग्रंथ ‘बिल्वदल’ एक ऐतिहासिक धरोहर है.

इस अवसर पर स्व. बालासाहेब आहिरे के परिवार की ओर से यादों को उनकी कन्या मेघा बोरसे ने समबके सोमक्ष रखा. कार्यक्रम का सूत्र संचालन एवं आभार प्रदर्शन दिलीप क्षीरसागर जी ने किया.

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