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केरल में लाल आतंक के साये में रह रहे लोग अपनी गुहार लेकर पहुंचे दिल्ली

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दिल्ली में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जोरदार पैरवी करने वाली मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का दोहरा चरित्र है. केरल में इसी पार्टी के कार्यकर्ता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो दूर किसी दूसरी विचारधारा के लोगों को बर्दाश्त तक नहीं कर सकते.

ग्रुप ऑफ इंटलेक्चुअल और एकेडमिशियन की संयोजिका और सुप्रीम कोर्ट की वकील मोनिका अरोड़ा जी ने कहा कि मार्क्सवादी सीपीएम के अराजक कार्यकर्ता अब तक सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार चुके हैं, इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी से जुड़े लोगों की संख्या ज्यादा है.

मोनिका अरोड़ा जी ने दिल्ली में आयोजित सेमिनार – “कम्युनिस्ट हिंसा” – केरल में बढ़ती असहिष्णुता में बोलते हुए सीपीएम नेता सीताराम येचुरी को चुनौती दी कि वो साबित करें कि केरल में लाल आतंक झूठा प्रोपेगेंडा है. उन्होंने कम्युनिस्ट आतंक के शिकार हुए उन सभी लोगों के नाम गिनवाए, जिन्हें केरल में कम्युनिस्ट आतंकी कार्यकर्ताओं ने आईएसआईएस से भी निर्मम तरीके से मौत के घाट उतार दिया.

इस सेमिनार में केरल के उन 17 लोगों के परिवार आए थे. जिन्हें मार्क्सवादी कार्यकर्ताओं ने मौत के घाट उतार दिया था. इन परिवारों ने हिंसा की रोंगटे खड़ी कर देने वाली आंखों देखी घटनाएं बताई. आतंक के साए में जी रहे इन परिवारों की केरल में कोई सुनवाई नहीं है क्योंकि शासन, प्रशासन और पुलिस सब माकपा से जुड़े हैं. इन परिवारों की आवाज केरल में नहीं तो दिल्ली में सुनी जाए. इसलिए कन्नूर जिले के सह-कार्यवाह सोहन लाल शर्मा इन्हें दिल्ली लेकर आये हैं.

मूल केरल वासियों की संस्था नवोदयम के अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कैलाश नाथ पिल्लई ने केरल में 1957 से चल रहे लाल आतंक पर गंभीर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि माकपा के कुछ वरिष्ठ नेता दिल्ली में राष्ट्रीय मीडिया में बैठकर मानवाधिकारों और अभिव्यक्ति की आजादी की बात करते हैं. लेकिन उनकी अपनी पार्टी की बंगाल और केरल में खुनी इतिहास है.

कन्नूर जिले के सहकार्यवाह सोहनलाल शर्मा ने उन परिवारों से परिचय करवाया, जिनके अपनों को उनकी आंखों के सामने निर्मम तरीके से मौत के घाट उतार दिया गया. इनकी दुःख भरी सच्ची विभत्सकारी घटनाएं सुन कर श्रोताओं की आंखों में आंसू आ गए.

इन परिवारों ने कहा कि केरल के प्रशासन पुलिस और मीडिया की चुपी से उन्हें बहुत परेशानी हो रही है, प्रशासन और पुलिस से भरोसा उठ गया है. उन्हें भरोसा है कि दिल्ली में कोई उनकी आवाज सुनेगा और राष्ट्रीय मीडिया उनकी दुःख-भरी कहानी को दुनिया के सामने रखेगा.

इन परिवारों का कहना है कि लाल आतंक के सामने उनकी राष्ट्रवादी विचारधारा कभी हार नहीं मानेगी और एक दिन राष्ट्रवाद ही जीतेगा.

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