सौरभ कुमार
मुश्किल समय किसी की भी क्षमताओं की परीक्षा लेता है, कोरोना महामारी के इस दौर ने विश्व के सभी देशों की परीक्षा ली है. अमेरिका और यूरोप जैसे शक्तिसंपन्न, समृद्ध देश भी घुटने टेकते नजर आए. अस्पतालों में इतनी जगह नहीं बची कि मरीजों का इलाज किया जा सके, सालों के परिश्रम से खड़ा किया गया तानाबाना बिखरने लगा. अमेरिका में 96,000, यूके में 36000, इटली में 32000 और फ्रांस में लगभग 28000 लोग काल के गाल में समा गए, जबकि इन देशों में जनसँख्या घनत्व भारत से कहीं कम और स्वास्थ्य सेवाएं कहीं बेहतर हैं. भारत में तमाम चुनौतियों के बावजूद अब तक 3720 मौतें हुई हैं. एक भी नागरिक की मृत्यु हम सब के लिए दुःख का विषय है, लेकिन यह गर्व भी है कि जहाँ तमाम विकसित देश कोरोना पर नियंत्रण पाने में असमर्थ रहे. वहीं भारत ने न सिर्फ कोरोना को नियंत्रित किया, बल्कि अपनी सामाजिक व्यवस्था को भी संभाले रखा. आज भारत में कोरोना के 1,25,121 मरीजों में से 51,836 ठीक होकर अपने घरों को जा चुके हैं और कोरोना संक्रमितों का रिकवरी रेट 23 मई के आंकड़ों के अनुसार 41.39 प्रतिशत है. इस संकट ने यह सिद्ध कर दिया कि मजबूत और समर्पित नेतृत्व ही किसी राष्ट्र को सुरक्षित रखने में समर्थ है. सरकार ने कोरोना त्रासदी को नियंत्रित करने के लिए अपने सारे संसाधन झोंक दिए और इसी का परिणाम है कि आज भारत बाकी विश्व के लिए एक उदहारण के तौर पर उभर कर आया है.
जनता का हित पहले
चाणक्य अपनी अर्थ नीति में लिखते हैं – प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां तु हिते हितम . नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम् ॥ अर्थात प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है, प्रजा के हित में ही उसे अपना हित दिखना चाहिए. जो स्वयं को प्रिय लगे उसमें राजा का हित नहीं है, उसका हित तो प्रजा को जो प्रिय लगे उसमें है.
जब कोरोना के इस संकट की शुरुआत हुई तो विश्व भर के देशों का रवैया इसको लेकर अलग अलग था, सभी देश अर्तव्यवस्था की चिंता में जकड़े हुए थे. यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने पहले हर्ड इम्युनिटी विकसित करने की रणनीति पर काम करना शुरू किया, अमेरिका जैसा देश भी अर्थव्यवस्था को आगे लेकर चल रहा था. मगर भारत की सरकार ने जनता को अर्थ से आगे रखा. प्रधानमंत्री मोदी ने यह स्पष्ट कर दिया कि हमारी पहली प्राथमिकता हमारे देशवासियों के प्राणों की रक्षा है. हमारी सरकार ने अर्थव्यवस्था से ज्यादा महत्व जनता के जीवन को दिया और 25 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों से हाथ जोड़कर अपील की कि वे अपने घरों से बाहर न निकलें, जहाँ हैं वही रहें. जब भारत में 21 दिनों के पहले लॉकडाउन की शुरुआत की तब यहाँ कोरोना के मात्र 519 मामले थे, जबकि 11 लोगों की मृत्यु हुई थी. इन मामलों में से ज्यादातर विदेशों से आये लोगों के थे, इस फैसले ने कोरोना संक्रमण के फैलाव में बड़ी रुकावट के रूप में काम किया. कई मेडिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि समय रहते लिए गए इस फैसले के कारण ही भारत में अमेरिका और यूरोप जैसी स्थिति नहीं बनी, भारत के राजनितिक नेतृत्व की दूरदर्शिता ने एक बड़े खतरे को टाल दिया.
हालाँकि लॉकडाउन के असर की सही विवेचना एक विस्तृत अध्ययन के बाद ही की जा सकती है, लेकिन अधिकतर चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि लॉकडाउन न होने कि स्थिति में हालात और ज्यादा बिगड़ जाते.
सर गंगाराम अस्पताल के जाने माने लंग सर्जन डॉ. अरविन्द कुमार ने पीटीआई से बातचीत में कहा था कि सही समय पर लॉकडाउन का फैसला भारत के लिए बहुत ही लाभकारी सिद्ध हुआ और इसके कारण ही यहाँ यूरोप और अमेरिका जैसी स्थिति नहीं बनी और सबसे महत्वपूर्ण इसने स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों और स्थानीय प्रशासन को इस चुनौती से निपटने की तैयारी के लिए समय दे दिया.
आंकड़ों में साफ़ दिखा असर
सही समय पर लिए गए लॉकडाउन के फैसले का असर आंकड़ों को देखने से और बेहतर तरीके से समझ में आता है. भारत में कोरोना के पहले संक्रमण से लेकर संख्या के 60,000 तक पहुँचने में 101 दिन का समय लगा, जबकि ब्रिटेन ने यह छलांग मात्र 40 दिनों में लगा ली थी. इटली में 52 दिन, स्पेन में 56 दिन, जर्मनी में 62 दिन, अमेरिका में 65 दिन, फ्रांस में 70 दिन और रूस में 83 दिनों में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 60,000 के पार चला गया था. इन 101 दिनों में भारत ने पीपीई किट, मास्क, दस्ताने जैसे आवश्यक वस्तुओं का निर्माण बड़े स्तर पर शुरू कर लिया था, सभी जिलों में क्वारेंटाइन सेंटर विकसित करने और स्थानीय अस्पतालों को इस चुनौती के लिए तैयार करने का भी समय हमें मिला. इस समय का सीधा लाभ भारत को मिला और यही कारण है कि 60,000 कोरोना संक्रमितों की संख्या होने पर भारत में रिकवरी रेट 30.75 प्रतिशत पर था. जबकि ऐसी स्थिति में अमेरिका जैसे समृद्ध राष्ट्र की रिकवरी मात्र 1.39 प्रतिशत थी.
दुनिया भर के विशेषज्ञ भारत की बड़ी आबादी और ज्यादा घनत्व के कारण संदेह की दृष्टि से देख रहे थे, लेकिन भारत की रणनीति ने सब संदेहों के बावजूद अच्छा प्रदर्शन किया. विश्व स्वस्थ्य संगठन द्वारा उपलब्ध करवाए गए आंकड़ों के अनुसार भारत ने 3 मई तक दस लाख टेस्ट किये थे, जिसमें 39,980 संक्रमित पाए गए थे. जबकि अमेरिका में इतनी ही टेस्टिंग में 1,64,620 संक्रमित पाए गए थे. स्पेन में यह आंकड़ा 2,00,194, इटली में 1,52,271 और टर्की में 1,17,589 था. आज की स्थिति में जनसंख्या के अनुपात में देखें तो भारत में संक्रमितों की संख्या बहुत कम है. यह आंकड़े स्पष्ट कर देते हैं कि कोरोना से इस जंग में भारत मजबूती के साथ खड़ा है.
पूरा देश एक परिवार
किसी पद पर बैठ जाने से कोई नेतृत्वकर्ता नहीं बन जाता, यह एक नैसर्गिक गुण है. सक्षम नेतृत्वकर्ता वह है जो लोगों को अपने साथ लेकर चले. प्रधानमंत्री मोदी ने इस पूरे संकट के दौरान राष्ट्र से एक साथ आगे आने का आह्वान किया और यह पूरा देश एक परिवार की तरह साथ खड़ा हो गया. देश भर से ऐसी तस्वीरें आईं, जिसमें लोग मदद के लिए हाथ बढ़ाते दिखे, सामाजिक संगठनों के साथ साथ व्यक्तिगत स्तर पर लोग वंचितों की सहायता के लिए अग्रसर हुए. यह हमारे भारतीय समाज का मूल चरित्र है, जिसे दिशा देने का काम प्रधानमंत्री मोदी ने किया.
इतने बड़े फैसले के बाद भी कुछ अपवादों को छोड़ दें तो कहीं अराजकता की स्थिति नहीं बनी, ‘हम अपने समाज, अपने राष्ट्र के लिए तकलीफ सह लेंगे’ लोग इस मानस के साथ सक्रिय हुए. यह मानस बनाना भी सरकार की एक उपलब्धि है, प्रधानमंत्री मोदी ने पहले जनता कर्फ्यू के माध्यम से लोगों को आने वाले फैसले की झलक दी और लोगों की स्वीकार्यता को देखते हुए पूर्ण लॉकडाउन किया. इस लॉकडाउन में लोग अपने घरों में बंद थे, कुछ घबराये हुए भी थे, लेकिन हमारे प्रधानमंत्री ने देश की उत्सवधर्मिता को जागृत किया. कभी थाली बजाने तो कभी दीप जलाने का आह्वान करके समाज को सक्रिय किया और इसका परिणाम है कि हर व्यक्ति अपने स्तर पर जागरूक है. हर व्यक्ति इस संक्रमण से लड़ाई में अपना सहयोग दे रहा है. अब जब लॉकडाउन में ढील दी जाने लगी है, तब भी हमें अपने इस मानस को बनाये रखना है. समाज में अवसाद न आये, हमें अपनी उत्सवधर्मिता को बनाये रखना है. लेकिन उसके साथ सरकार द्वारा जारी किये गए गाइडलाइन्स का पालन भी सुनिश्चित करना है. कोरोना से यह जंग हम जरुर जीतेंगे.