कांग्रेस में हाल ही में शामिल हुए शत्रुघ्न सिन्हा ने जिस जिन्ना की तारीफ में कसीदे पढ़े. जिस मोहम्मद अली जिन्ना का भी देश की तरक्की और आजादी में योगदान बताया. वह जिन्ना लाखों हिन्दुओं और सिक्खों के गुनहगार हैं. रावलपिंडी में मुस्लिम लीग के गुंडों ने जमकर हिन्दुओं और सिक्खों को मारा, उनकी संपति लूटी गई. पर, जिन्ना ने कभी अपने लोगों से दंगा रुकवाने की अपील नहीं की.
अगस्त, 1947, भारत में लगभग 300 वर्ष रहने के बाद गोरे जा रहे थे. देश का विभाजन हो रहा था. पाकिस्तान 14 अगस्त, 1947 को विश्व मानचित्र में आ गया था. इससे पहले ही पंजाब, बंगाल और देश के अन्य हिस्सों में दंगे शुरू हो गए. दंगों की आग लगाने में मोहम्मद अली जिन्ना अपनी भूमिका अदा कर चुके थे. जिन्ना ने ही 16 अगस्त, 1946 के लिए डायरेक्ट एक्शन (सीधी कार्रवाई) का आह्वान किया था. उसके बाद कलकत्ता (अब कोलकाता) में जो खूनी खेल खेला गया था. कोलकाता में जो हुआ, वह दंगों की शुरुआत थी. इन दंगों में पांच हजार लोग मारे गए थे. मरने वालों में उड़िया मजदूर सर्वाधिक थे. इसके बाद चौतरफा दंगे फैल गए.
जब रावलपिंडी में हिन्दुओं और सिक्खों को मारा गया
मई, 1947 में रावलपिंडी में मुस्लिम लीग के गुंडों ने जमकर हिन्दुओं और सिक्खों को मारा, उनकी संपति लूटी गई. रावलपिंडी में सिक्ख और हिन्दू खासे धनी थे, सभी का व्यापार था. इनकी संपतियां लूट ली गईं. जिन्ना ने कभी अपने लोगों से दंगा रुकवाने की अपील नहीं की. वह एक बार भी किसी दंगा ग्रस्त क्षेत्र में नहीं गए ताकि दंगे थम जाएं. पाकिस्तान के ही इतिहासकार प्रो. इश्ताक अहमद ने अपनी किताब ‘पंजाब ब्लडिड पार्टिशन’ में लिखा है, “हालांकि गांधी जी और कांग्रेस के बाकी तमाम नेता दंगों को रुकवाने की हर माकूल कोशिश कर रहे थे, पर जिन्ना ने इस तरह का कोई कदम उठाने की कभी जरूरत नहीं समझी. बाकी मुस्लिम लीग के नेता भी दंगे भड़काने में लगे हुए थे न कि उन्हें रुकवाने में.” उधर, गांधी जी पूर्वी बंगाल के नोआखाली से लेकर पानीपात तक में जाकर दंगे रुकवाने में जुटे हुए थे. 07 अगस्त, 1947 को मोहम्मद अली जिन्ना ने सफदरजंग एयरपोर्ट पर विमान के भीतर जाने से पहले दिल्ली के आसमान को कुछ पलों के लिए देखा. शायद वे सोच रहे थे कि अब वे इस शहर में मौज-मस्ती फिर कभी नहीं कर पाएंगे. वे अपनी छोटी बहन फातिमा जिन्ना, एडीसी सैयद एहसान और बाकी करीबी स्टाफ के साथ कराची के लिए रवाना हो रहे थे. हालांकि तब तक दिल्ली में भी छिट-पुट दंगे शुरू हो चुके थे. कराची जाने से पहले जिन्ना अपने 10 औरंगजेब रोड (अब एपीजे अब्दुल कलाम रोड) स्थित बंगले में लजीज भोजन और महंगी शराब की पार्टियां देने में व्यस्त थे.
14 अगस्त, 1947 को कराची में जिन्ना को पाकिस्तान के गर्वनर जनरल पद की शपथ दिलाई गई. भारत के वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने उन्हें शपथ दिलवाई. जिन्ना के शपथ लेते ही सांप्रदायिक दंगे और तेजी से भड़क उठे. पाकिस्तान में हिन्दू और सिक्खों को चुन-चुनकर मारा जा रहा था. लेकिन न जिन्ना और न ही मुस्लिम लीग के अन्य नेताओं को इस बात की परवाह थी कि दंगों के कारण हो रहे खून-खराबे को रोका जाए. पश्चिमी पंजाब के प्रमुख शहरों जैसे लाहौर, शेखुपुरा, कसूर, रावलपिंडी, चकवाल, मुल्तान में हिन्दू और सिक्ख मारे जा रहे थे. दंगाइयों का साथ दे रही थी मुस्लिम बहुल पुलिस. पर जिन्ना मौज में थे. वहीं अभी भी कुछ कथित इतिहासकार जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताते हैं. जिन्ना के धर्मनिरपेक्ष होने के पक्ष में अपने तर्क को आधार देने के लिए वे जिन्ना के 11 अगस्त, 1947 को दिए भाषण का हवाला देते हैं. उस भाषण में जिन्ना कहते हैं – “पाकिस्तान में सभी को अपने धर्म को मानने की स्वतंत्रता होगी.” इस भाषण का हवाला देने वाले जिन्ना के 24 मार्च, 1940 को लाहौर के बादशाही मस्जिद के ठीक आगे बने मिन्टो पार्क (अब इकबाल पार्क) में दिए भाषण को भी जरा याद कर लें. उस दिन अखिल भारतीय मुस्लिम लीग ने पृथक मुस्लिम राष्ट्र की मांग करते हुए प्रस्ताव पारित किया था. यह प्रस्ताव मशहूर हुआ पाकिस्तान प्रस्ताव के नाम से. इसमें कहा गया था कि मुस्लिम लीग मुसलमानों के लिए पृथक राष्ट्र का ख्वाब देखती है. वह इसे पूरा करके ही रहेगी. प्रस्ताव के पारित होने से पहले मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने दो घंटे लंबे भाषण में हिन्दुओं को जमकर कोसा था. “हिन्दू- मुसलमान दो अलग-अलग मजहब हैं. दो अलग विचार हैं. दोनों की परम्पराएं और इतिहास अलग है. दोनों के नायक अलग हैं. इसलिए दोनों कतई साथ नहीं रह सकते”. जिन्ना ने अपनी तकरीर के दौरान लाला लाजपत राय से लेकर चितरंजन दास तक को अपशब्द कहे. उनके भाषण के दौरान एक प्रतिनिधि मलिक बरकत अली ने लाला लाजपत राय को राष्ट्रवादी हिन्दू कहा. जवाब में जिन्ना ने कहा, कोई हिन्दू नेता राष्ट्रवादी नहीं हो सकता. वह पहले और अंत में हिन्दू ही है. जिन्ना का गुणगान करने वाले इस बात को याद रखें कि उन्होंने एक बार भी जेल यात्रा नहीं की. देश की स्वतंत्रता के लिए उन्होंने कोई लड़ाई नहीं लड़ी, कभी अंग्रेजों की लाठियां नहीं खाई. इसके बावजूद वो महान बन गए कैसे?
विवेक शुक्ला
Panchjanya