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धर्म समन्वित और संतुलित तरीके से जीवन जीने का तरीका है – डॉ. मोहन भागवत

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इंदौर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने शांतादेवी रामकृष्ण विजयवर्गीय न्यास का लोकार्पण किया. विजयवर्गीय परिवार द्वारा संचालित न्यास गरीब बच्चों की शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में काम करता है.

लोकार्पण कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि ‘हिन्दू समाज ने प्राचीन समय से लेकर आज तक कई बातें झेली हैं, तो कई उपलब्धियां भी हासिल की हैं. गत पांच हजार वर्षों में आए उतार-चढ़ावों के बावजूद हिन्दू समाज के प्राचीन जीवन मूल्य भारत में आज भी प्रत्यक्ष तौर पर देखने को मिलते हैं’.

उन्होंने कहा कि दुनिया में कुछ देशों की संस्कृति के प्राचीन जीवन मूल्य मिट गए. कई देशों का तो नाम ही मिट चुका है. परंतु हमारे जीवन मूल्य अब तक नहीं बदले हैं. जैसा हजारों वर्ष पहले था, वैसा ही आज भी दिखता है. इसलिए इकबाल ने कहा – यूनान, मिस्र, रोमां, सब मिट गए जहां से…. कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी.

…और यह बात है – हमारा धर्म. यहां धर्म से तात्पर्य किसी संप्रदाय विशेष से नहीं, बल्कि मनुष्यों के सह अस्तित्व से जुड़े मूल्यों से है. इतिहास के उतार-चढ़ाव को पार कर समाज चलता है, धर्म का मतलब संप्रदाय से नहीं है, बल्कि उन तत्वों से है, जिससे समाज जुड़ता है.

धर्म समन्वित और संतुलित तरीके से जीवन जीने का तरीका है, जिसमें महत्व इस बात का है कि हम दूसरों को क्या दे रहे हैं और उनके भले के लिए क्या कर रहे हैं? परोपकार की भावना पर बल देते हुए कहा कि भौतिकता के तमाम बदलावों के बावजूद जीवन में देने का महत्व है, भारत में दान की परंपरा हमेशा जीवंत रहनी चाहिए…..

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