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नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 – सत्य और तथ्य

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प्रश्न – क्या यह भारतीय हिन्दुओं, मुसलमानों या किसी अन्य को प्रभावित करता है?

उत्तर – नहीं, यह किसी भी तरह से किसी भारतीय के अधिकारों को प्रभावित नहीं करता. वह चाहे मुसलमान हो या हिन्दू या फिर कोई अन्य धर्म को मानने वाला.

प्रश्न – यह किस पर लागू होता है?

उत्तर – यह पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर प्रताड़ना झेलने वाले केवल उन हिन्दू, बौद्ध, सिक्ख, जैन, पारसी और ईसाइयों पर लागू होगा जो 01 दिसंबर 2014 से पहले भारत आ चुके हैं.

प्रश्न – इन तीन देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों को यह कानून कैसे लाभ पहुंचाएगा?

उत्तर – उनके निवास की समय सीमा 11 वर्ष से घटा कर पांच वर्ष कर दी गई है. इस कानून के तहत वे नागरिकता पर अधिकार के तहत दावा कर सकते हैं.

प्रश्न – क्या इन तीन देशों के मुसलमान कभी भी भारत की नागरिकता नहीं ले सकेंगे?

उत्तर – ऐसा नहीं है. वे भारत की नागरिकता ले सकते हैं. इसके लिए उन्हें प्राकृतिक रूप से नागरिकता प्राप्त करने के नियमों के तहत आवेदन करना होगा, जिनमें 11 वर्ष से निवास आदि शामिल हैं.

प्रश्न – क्या इस कानून के तहत इन तीन देशों के अवैध प्रवासियों को स्वत: ही निर्वासित कर दिया जाएगा?

उत्तर – ऐसा नहीं होगा. अब तक चली आ रही प्रक्रिया का ही पालन होगा. मौजूदा कानून के तहत ही प्राकृतिक रूप से नागरिक बनने के उनके आवेदन पर कार्यवाही होगी.

प्रश्न – केवल इन तीन देशों के बारे में ही कानून क्यों बना? केवल धार्मिक प्रताड़ना को ही आधार क्यों बनाया गया?

उत्तर – केवल इन तीन देशों में ही धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाता रहा है. विशेष रूप से पाकिस्तान में धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यक अधिक प्रताड़ित हुए हैं.

प्रश्न – पाकिस्तान के बलूच और अहमदिया या फिर म्यांमार के रोहिंग्या को इस कानून के दायरे में क्यों नहीं रखा गया?

उत्तर – उनके मामलों पर मौजूदा कानून के तहत विचार होगा. उनके लिए विशेष श्रेणी नहीं बनाई गई है.

प्रश्न – श्रीलंका के तमिलों को इस कानून के दायरे में क्यों नहीं लाया गया?

उत्तर – श्रीलंका का गृह युद्ध समाप्त हुए एक दशक से अधिक हो गया. वहां धार्मिक आधार पर नहीं, बल्कि नस्ल या सजातीय आधार पर भेदभाव हुआ करता था. श्रीलंका में इस भेदभाव पर काबू पा लिया गया है.

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