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परम पूज्य सरसंघचालक का वनवासी समाज के साथ भावनात्मक एकीकरण पर जोर

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नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सरसंघचालक डा. मोहन राव भागवत ने वनवासी समाज के साथ भावनात्मक एकीकरण को पवित्र राष्ट्रीय कर्तव्य बताते हुए कहा है कि वनवासी बंधु अभाव और असुविधाओं के कारण धर्मांतरण नहीं करते. उन्हें यदि विश्वास हो जाये कि सम्पूर्ण हिन्दू समाज उनके साथ खड़ा है तो वे ऐसा कदापि नहीं करेंगे.

श्री हरि सत्संग समिति इन्द्रप्रस्थ द्वारा आयोजित वनवासी रक्षा परिवार कुंभ-2014 को संबोधित करते हुए परम पूज्य सरसंघचालक ने जहां नगरों में सभ्यता का विकास हुआ है, वहीं संस्कृति व पर्यावरण का क्षरण हुआ है, लेकिन वनवासी समाज के पास आज भी सम्पूर्ण संसार को मानवता का प्रकाश देने की क्षमता है. उन्होंने कहा कि शस्य श्यामला मातृभूमि पर निवास करने वाले हमारे समृद्ध राष्ट्र का ऐसा स्वभाव बना जिसमें भेदभाव या दूसरो का गला काटने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी बल्कि हजारों वर्षों तक अपने जीवन से सब मानवों को शिक्षा देने का सामर्थ्य दिखाया. हमारी मातृभूमि रेगिस्तानी या पथरीली होती तो संभवत: हम भी स्वार्थी बन जाते. उन्होंने कहा कि हम विविधता को सिर्फ सहते नहीं बल्कि सहज स्वीकार करते हैं.

परम पूज्य ने कहा कि विदेशी दासता के दौरान सुनियोजित तरीके से भ्रम फैलाकर हमारी उदात्त परम्पराओं को विकृत करने का प्रयास  किया गया. इसलिये एक वर्ग को टूटे दर्पण में अपना भग्न चेहरा देखने की आदत पड़ गयी है. उन्होंने ऐसे लोगों को उन वनवासी बंधुओं के जीवन को निकट से देखने का प्रयास करना चाहिये, जिनके पास राष्ट्रीय स्वत्व अब भी सुरक्षित है. वे सभ्यता के विकास से वंचित अवश्य हैं, किंतु संस्कृति के रक्षक हैं. उन्होंने यह भी कहा कि वनबंधुओं को आज अवश्य शहरी समृद्ध समाज की सहायता की आवश्यकता है, लेकिन बाद में वे भी ‘देने वाले’ बन जायेंगे.

विश्व हिन्दू परिषद के संरक्षक श्री अशोक सिंघल ने कहा कि भय, प्रलोभन एवं दबाव से जिनका धर्मांतरण किया गया है, उनको फिर से गले लगाने की आवश्यकता है. उन्होंने चेतावनी दी कि  इनकी घर वापसी में देरी से समस्यायें, विशेषत: आतंकवाद, और जटिल बनेंगीं. श्री सिंघल ने कहा कि लगभग नौ करोड़ वनवासियों और 18 करोड़ अस्पृश्य समाज का पिछले लगातार 150 वर्षों से धर्मांतरण जारी है. ईसाई मिशनरियां सेवा के नाम पर उनके बीच जातीं हैं, परंतु उनका उद्देश्य भोले-भाले समाज को ईसाई बनाना है. उन्होंने कहा कि भारत ही नहीं अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी ये मिशनरियां इसी काम में लगीं हैं. अफ्रीका में सारी भूमि ईसाइयों के कब्जे में चली गई है. उन्होंने कहा कि मोरक्को से लेकर हिंदेशिया तक भूमि हड़पने के यही षडयंत्र इस्लाम भी कर रहा है.

श्री सिंघल ने वनवासी रक्षा परिवार से आशा व्यक्त की कि वह घर-घर में व्याप्त भगवान श्री राम के वनवासी प्रेम को सबसे परिचित करायेगा. उन्होंने लोगों को मुक्त हस्त से वनवासी सेवा प्रकल्पों के लिये दान देने की भी अपील की.

निवृत्त जगद्गुरु शंकराचार्य एवं भारत माता मंदिर हरिद्वार के संस्थापक स्वामी श्री सत्यमित्रानंद जी महाराज ने घर वापसी या प्रत्यावर्तन पर हो रही आलोचना पर सरकार को परामर्श दिया कि वह धैर्यपूर्वक उनकी व्यथा सुनते रहें, शनै:-शनै: उनकी पीड़ा शांत हो जायेगी. इसके पीछे के मनोविज्ञान को समझाते हुए उन्होंने कहा कि जब कोई अपनी पराजय पचा नहीं पाता तब पीड़ा प्रकट होती है.

परम पूज्य स्वामी जी ने उपस्थित श्रोताओं में नारायण का दर्शन करते हुए उन्हें अपने ‘शब्द- पुष्प’ अर्पित करते हुए कहा कि चींटी से सिंह तक में श्रद्धा रखने वाला हिंदू समाज पेशावर में 132 बच्चों की हत्या करने वोलों की तरह हिंसक नहीं है. उन्होंने वनवासी क्षेत्रों में वनवासी मेलों के आयोजन का परामर्श दिया. दान की अपील के साथ ही उन्होंने अपने चेन्नई के एक भक्त द्वारा दी गई एक लाख रुपये की धनराशि वनवासी प्रकल्पों के लिये दान दी.

देशभर से बड़ी संख्या में वनवासी क्षेत्रों में काम कर रहे कार्यकर्ताओं, कथाकारों, वनवासी कलाकारों, संघ की भिन्न-भिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधियों और समाजसेवियों के साथ 5000 वनवासी रक्षा परिवारों सहित लगभग 40 हजार लोगों ने कुंभ में भाग लिया और देश के सर्वांगीण विकास में सुदूर वनों, पहाड़ों तथा सीमांत क्षेत्रों में बसे लोगों के विकास के लिये वनवासी रक्षा परिवार योजना के समर्थन और विस्तार का संकल्प लिया.

पश्चिम बंगाल से आये वनवासी कलाकारों ने महिषासुर मर्दिनी की रोमांचक और विलक्षण नृत्यप्रस्तुति दी. भटनागर इण्टरनेशनल स्कूल के छात्रों ने देशभक्ति पर मनमोहक प्रस्तुति से दर्शकों का मनोरंजन किया.

कुंभ के संरक्षक उद्योगपति श्री मनोज अरोड़ा ने परम पूज्य सरसंघचालक को शॉल ओढ़ाकर परम्परागत सम्मान किया. कुंभ के स्वागताध्यक्ष श्री महेश भागचन्दका स्वागत संदेश दिया तथा स्वामी सत्यमित्रानंदजी व श्री अशोक सिंघल का अभिनंदन किया. कार्यक्रम का कुशल संचालन  श्रीमती मोनिका अरोड़ा ने किया. संयोजक श्री मुरारी लाल अग्रवाला ने धन्यवाद ज्ञापित किया.

वनवासी रक्षा परिवार कुंभ 2014 की प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए विश्व हिन्दू परिषद के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री श्री चम्पत राय जी ने कहा कि वनवासी क्षेत्रों की चुनौतियों, वहां की विशिष्ट सामाजिक, सांस्कृतिक व प्राकृतिक विरासत और समिति के कार्यों के बारे में नगरीय समाज को जागरूक करके ही वनबंधुओं के लिये साधन और सहयोग के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है. उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह प्रदर्शनी 20 हजार ग्रामों के संस्कार केन्द्र संचालन के लक्ष्य को प्राप्त करने तथा वनबंधुओं के विकास की योजना को और मुखरित तरीके से प्रस्तुत करने में सहायक होगी. उन्होंने संतोष व्यक्त करते यह भी कहा कि 25 वर्ष से पूर्व एकल विद्यालय की योजना के बारे में कोई सोच नहीं सकता था कि यह ऐसे वट-वृक्ष का रूप ले लेगी.

 

 

 

 

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