करंट टॉपिक्स

भारत एक हिन्दू राष्ट्र, हमें अपने राष्ट्र को सशक्त करना है – स्वांतरंजन जी

Spread the love

DSC_6286नागौर, जोधपुर (विसंकें). अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख स्वांत रंजन जी ने कहा कि स्वयंसेवक को हनुमानजी के जैसे धृती, दृष्टि, मति व दक्षता आदि गुणों को अपने अन्दर विकसित करना चाहिए. डॉक्टर हेडगेवार जी द्वारा प्रदत्त कार्यपद्धति का प्रयोग करते हुए हम अपने सनातन राष्ट्र को सशक्त करने का संघ उद्देश्य पूर्ण करें. उन्होंने कहा कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है और हमें अपने राष्ट्र को सशक्त करना है. हमारा सौभाग्य है कि हमें स्वयंसेवक बनने को मौका मिला है. अब हम स्वयंसेवक बने हें तो हमें संपूर्ण हिन्दू समाज को संगठित करने का कार्य करना है. हम सब ईश्वरीय कार्य को करने के अच्छए उपकरण बनें.

वह अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक से पूर्व नागौर जिले के स्वयंसेवक संगम में उपस्थित स्वयंसेवकों को संबोधित कर रहे थे. पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत भी मंच पर उपस्थित थे. स्वांत रंजन जी ने कहा कि संघ में तीन विषय हैं – पहला साध्य अर्थात् हिन्दू समाज को संस्कारित कर राष्ट्र को परम वैभव के शिखर पर पहुंचाना, दूसरा विषय – साधक अर्थात् कार्यकर्ता जो संघ प्रवाह में बहकर शालीग्राम बन जाए अर्थात् अपनी रूचि, प्रकृति व व्यवहार में से दोषों को हटाकर गुणों को बढ़ाता जाए, तीसरा विषय है – साधन अर्थात् कार्यपद्धति जो डॉक्टर हेडगेवार जी के गहन चितंन, इतिहास बोध व अनेक बन्धुओं से विचार विमर्श के बाद बनी है. उन्होंने संघ प्रार्थना के पांच गुणों के आधार पर शील अर्थात् व्यवहार, आचरण का महत्त्व बताया. गीता का उदाहरण देते हुए कहा कि हमारा संवाद सत्य एवं प्रिय होना चाहिए, जिससे हम सभी को जोड़ सकें. उन्होंने अहिंसा, सत्य, अस्तेय आदि पंचशील की चर्चा भी की.

DSC_6337अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख ने बताया कि हजार-बारह सौ वर्षों के संघर्ष के कारण हिन्दू समाज अपनी अस्मिता भूल गया है. वह यह भूल गया है कि हम किन श्रेष्ठ पूर्वजों की संतान है. हमें विद्या एवं शारीरिक शक्ति का उपयोग समाज हित में करना होगा. छोटे-छोटे कार्यक्रमों का निरन्तर अभ्यास करने से शक्ति बनती है. उन्होंने संस्कृत के श्लोक का अर्थ बताया कि जो बैठा रहता है, उसका भाग्य भी बैठ जाता है, जो खड़ा रहता है, उसका भाग्य स्थिर रहता है और जो सोता रहता है उसका भाग्य निष्क्रिय रहता है और जो निरंतर चलता रहता है उसका भाग्य भी साथ-साथ चलता रहता है. इसलिए हम को समाज को साथ लेकर सदैव चलते रहना चाहिये. चरैवेति, चरैवेति…….. उन्होंने कहा कि संघ का कार्य उस नदी के समान है, जिसमें विभिन्न प्रकार की चट्टानों के टुकड़े बहते हैं और आपस में घर्षण के बाद आगे जाकर सालिग्राम (भगवान की मूर्त) बनते हैं.

इस से पूर्व स्वयंसेवकों ने योग, दण्डयोग, समता व सामूहिक गीत – नव रचना साकार करें……- का प्रदर्शन  किया. इस अवसर पर मंच पर क्षेत्र संघचालक डॉ. भगवतीप्रकाश जी तथा प्रांत संघचालक ललित जी शर्मा भी उपस्थित थे.

DSC_6340 DSC_6338

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *