नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उत्तर क्षेत्र संघचालक बजरंग लाल गुप्त जी ने कहा कि गांधी विश्व मानव थे, उन्होंने भारत का ही नहीं वरन पूरे विश्व का मार्ग प्रशस्त किया है. गांधी एक दृष्टा ही नहीं, सृष्टा भी थे. उन्होंने विचार भी दिए, साथ ही उन्हें व्यवहार में लाने का मार्ग भी दिखाया. वे शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा लक्ष्मीबाई महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय में “21वीं सदी के भारत में गांधी-चिंतन की प्रासंगिकता” पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन अवसर पर संबोधित कर रहे थे. राम राज्य का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि भौतिक व आध्यात्मिक तरक़्क़ी का समन्वय ही आर्थिक विषय में गांधी-चिंतन है. इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में 21वीं सदी में भारत के सामने की प्रमुख 8 चुनौतियों के संदर्भ में गांधी चिंतन पर 8 सत्रों में चर्चा हुई, इसके साथ ही 50 से अधिक शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए. सामाजिक समरसता, भाषा, पर्यावरण, सांस्कृतिक और भारत बोध, अर्थ बोध में गांधी चिंतन जैसे प्रमुख विषयों पर संगोष्ठी में चर्चा हुई.
दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. राजीव रंजन गिरी ने कहा कि गांधी का सांस्कृतिक चिंतन भारतीय परम्परा की समझ का विस्तार है तथा पीजीडीएवी कॉलेज के डॉ. हरीश अरोड़ा जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि गांधी दर्शन को अपनाते हुए शिक्षा को भारतीय मूल्यों और भारतीय भाषाओं से जोड़ा जाना चाहिए. पर्यावरण में गांधी-चिंतन विषय पर बोलते हुए शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के पर्यावरण के राष्ट्रीय सह- संयोजक संजय स्वामी ने कहा कि गांधी जी ने ग्रामोद्योग पर बल दिया था जो गांवों को स्वावलंबी बनाने के साथ-साथ पर्यावरण की भी रक्षा करते हैं. शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के शोध प्रकल्प के राष्ट्रीय संयोजक राजेश्वर कुमार ने संगोष्ठी के हेतु व शोध विषय पर न्यास के कार्यों पर प्रकाश डाला. संचालन दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रमिला जी ने किया.