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राष्ट्र को सर्वोपरि मानने वाला व राष्ट्रहित में सोचने वाला समूह सत्ता में आए – भय्याजी जोशी

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“देश को सर्वोपरि मानने वाला, देश के हित में सोचने वाला राजनैतिक समूह केंद्र सरकार की बागडोर संभाले यही संघ की इच्छा है. संकुचित बातों से ऊपर उठकर देश हित में सोचने वाला राजनैतिक समूह सत्ता में आना चाहिए.” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह भय्याजी जोशी ने हिन्दी विवेक पत्रिका के साथ साक्षात्कार में कहा, “चुनाव में भाषा और आचरण का संयम होना चाहिए. संवाद के जरिए चर्चा हो और चुनाव खत्म होते ही कटुता भी खत्म हो.”

साक्षात्कार के महत्वपूर्ण अंश –

 पुलवामा की घटना के बाद देश में ‘राष्ट्रवाद’ पर चर्चा गर्म है. संघ की ‘राष्ट्रवाद’ पर क्या भूमिका है? वास्तव में पुलवामा जैसे हमलों से जो दुखी होते हैं, वे राष्ट्रीय प्रवृत्ति के ही लोग हैं. जो इस देश से, अपनी मातृभूमि से, उसकी सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों से स्वयं को सम्बंधित मानते हैं, वे सभी राष्ट्रीय हैं. पुलवामा हमले के बाद जिन्होंने भी इस सम्बंध में चिंता व्यक्त की, वे सभी राष्ट्रीय हैं.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हमेशा यह भूमिका रही है कि देश के प्रति निष्ठा रखने वाला, इस देश के सुख-दुःख से जुड़ा हुआ जो समूह है, उसे संघ राष्ट्रीय मानता है. पुलवामा जैसी घटना के बाद ‘राष्ट्रवाद’ विषय पर जो क्रिया-प्रतिक्रिया हो रही है, वह दर्शाती है कि भारत में राष्ट्रीयता की जड़ें कितनी गहरी हैं.

संघ की ‘राष्ट्रवाद’ की भूमिका पर उपस्थित प्रश्नों के प्रति संघ की भूमिका क्या है?
असल में यह चर्चा ही अनावश्यक है. संघ की राष्ट्रीयता की कल्पना भिन्न है. लोग नेशन (राष्ट्र) और स्टेट (राज्य) दोनों को एक मान लेते हैं. जैसे शरीर होता है, वैसे आत्मा भी होती है. राज्य शरीर है. राष्ट्र आत्मा है. बिना आत्मा के शरीर का कोई महत्व नहीं है और बिना शरीर के आत्मा का प्रकटीकरण नहीं होता.

इसलिए, भारत में राष्ट्रीय भाव होना एक दूसरे के पूरक हैं. संघ का मानना है कि राज्य तो बदलते रहते हैं परंतु राष्ट्र कभी नहीं बदलता, वह शाश्वत होता है.

संघ को हमेशा राजनीति से जोड़ा जाता है. आपकी राय में यह कितना सही है?

इस देश का दुर्भाग्य है कि इस देश की व्यवस्था की, समाज की जो प्रामाणिकता से चिंता करता है, उसको राजनैतिक मान लिया जाता है. वास्तव में वह देशभक्ति का, राष्ट्रीय भाव का प्रकटीकरण है. राजनीति गलत नहीं है, परंतु वर्तमान में ‘राजनीति’ शब्द का संकुचित अर्थ निकाला जाता है. हर देश अपनी नीति पर चलता है. राज्य को चलाने की भी एक नीति होती है. अगर हम उसका व्यापक दृष्टि से चिंतन करें तो इस देश की नीतियां कैसी हों, विदेशों से सम्बंध स्थापित करने की व्यवस्था कैसी हो, इस विषय पर देश का कोई भी संगठन अपने विचार रख सकता है. सामान्य व्यक्ति भी अपना भाव प्रकट कर सकता है. अत: ‘राजनीति’ शब्द के संकुचित अर्थ से संघ कार्य को जोड़ा जाना उचित नहीं है.

इस बार के लोकसभा चुनावों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ किस दृष्टि से देखता है?
लोकसभा के चुनाव वास्तव में बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. चुनाव देश के भिन्न-भिन्न विषयों को मुख्य प्रवाह में लाने का एक माध्यम होता है. देश की सुरक्षा से जुड़े विषयों, देश कीविदेश नीति से जुड़े विषयों पर योग्य निर्णय लेने का दायित्व केंद्र सरकार का होता है. लोकसभा के चुनाव के आधार पर ही केंद्र सरकार बनती है. इस कारण देश को सर्वोपरि मानने वाला, देश के हित में सोचने वाला राजनैतिक समूह केंद्र सरकार की बागड़ोर सम्भाले यही हमारी (संघ की) इच्छा है.

संकुचित बातों से ऊपर उठकर देश हित में सोचने वाला राजनैतिक समूह सत्ता में आना चाहिए. चुनाव के माहौल में जिस प्रकार की गलत चर्चाएं राजनैतिक नेताओं के द्वारा की जा रही हैं, उसे सुनकर बड़ा कष्ट होता है. सभी नेताओं द्वारा अत्यंत संयमित तरीके से राजनैतिक भिन्नता को शत्रुता न मानते हुए, एक-दूसरे के विचारों और दृष्टिकोण का आदर करते हुए अपने विचार रखना जरूरी है. यहां सभी को अपने विचार रखने की स्वतंत्रता है. आज चुनावी माहौल में जिस प्रकार भाषा स्तर गिरता जा रहा है, यह अत्यंत चिंता का विषय है. चुनाव के समय दुर्भाग्य से जो द्वेषपूर्ण माहौल बनता है वह कतई योग्य नहीं है. मेरा मानना है कि राजनीति में स्वार्थ साधने के लिए जिस निचले स्तर तक आज के नेता उतर आए हैं, वह स्वस्थ राजनीति का लक्षण नहीं है.

देश को सर्वोपरि मानने वाला राजनैतिक समूह ही केंद्र की सत्ता में हो, इससे आपका क्या आशय है?

लोकतंत्र में राष्ट्र का सबसे बडा शक्ति केंद्र ‘केंद्र सरकार’ होती है. जिस प्रकार यह शक्ति केंद्र है, उसी प्रकार देश का दिशादर्शक केंद्र भी है. इसलिए राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर विचार करने वाले लोगों का सत्ता में आना अत्यंत आवश्यक है, यह बात करते हुए मैं किसी भी एक राजनैतिक दल की बात नहीं कर रहा हूं. जो भी राजनैतिक दल सत्ता में आए, उसकी पृष्ठभूमि राष्ट्रहित को ध्यान में रख कर, देशहित को सर्वोपरि मानकर, देश का गौरव बढ़ाने में योगदान देने वाली होनी चाहिए. सिर्फ भारत में नहीं दुनिया के हर देश में इसी प्रकार की सोच होती है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश में जो परिवर्तन करना चाहता है, उसे प्रत्यक्ष रूप में लाने के लिए 2019 के चुनाव कितने महत्वपूर्ण हैं?

जैसा कि मैंने पहले ही कहा है, लोकतंत्र में केंद्र सरकार एक शक्ति केंद्र होता है, जो देश की अर्थनीति तय करती है, विदेश नीति तय करती है, शिक्षा नीति तय करती है, सामाजिक दुर्बलता दूर करके सामाजिक विकास की योजनाएं बनाती है. स्वतंत्रता के बाद देश कुछ क्षेत्रों में आगे तो बढ़ा है, परंतु अभी भी देश के सामने बहुत सारी चुनौतियां हैं. राष्ट्र सुरक्षा, बेरोजगारी, गरीबी जैसी समस्याएं हैं. संघ की धारणा है कि इन समस्याओं का हल निकालने वाली प्रामाणिक सरकार या राजनैतिक समूह ही भारत देश में परिवर्तन ला सकता है. इस प्रकार की विचारधारा का राजनैतिक समूह सत्ता में आना चाहिए. इस बात का विवेक देश की जनता को मतदान के द्वारा चुनाव करते समय ध्यान में रखना चाहिए, ऐसा हमें लगता है.

क्या आपको लगता है कि सिर्फ चुनाव के माध्यम से ही देश में सकारात्मक परिणाम आ सकते हैं?

वर्तमान परिस्थिति में तो यही कहना पड़ेगा. चुनाव के द्वारा सरकार निर्धारित होती है और सकारात्मक परिणाम सरकार ही ला सकती है. चुनाव के माध्यम से सरकार चुनी जाती है. इसलिए चुनाव का महत्व है.

समर्थ भारत की संकल्पनाओं की पूर्ति के लिए गत पांच सालों में विद्यमान सरकार ने क्या कार्य किए हैं?

मैं समझता हूं कि गरीबी और ग्राम विकास को ध्यान में रखकर, गांव-गांव में बिजली पहुंचाना, किसान को फसल के उचित दाम उपलब्ध कराने की दिशा में सरकार ने कार्य किया है. गत 5 वर्षों में देशभर में कई किलोमीटर महामार्गों का निर्माण हुआ है, यह अत्यंत अभिनंदनीय है. अब देश में आवागमन की गति बढ़ गई है. जिसके कारण देश आगे बढ रहा है. देश को समर्थ करने की प्रक्रिया तो कई वर्षों से चल रही है. वर्तमान सरकार ने अपने कार्य में जनविकास की योजनाओं को अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान दिया है. साथ ही विश्व के मंच पर भी भारत की गरिमा बढ़ाई है. भारत की गिनती दुनिया के शक्तिशाली देशों में हो रही है. योग को दुनिया के 90 प्रतिशत देशों द्वारा स्वीकार किया जाना अपने आप में बहुत बड़ी बात है. ‘समर्थ भारत’ के अंतर्गत भारत के विचारों को दुनिया की स्वीकार्यता तक ले जाना भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है.

पाकिस्तान की आतंकवादी कार्रवाई पर भारत सरकार ने जिस प्रकार की भूमिका ली, उसके संदर्भ में आपके विचार?

आतंकवाद से केवल भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व पीड़ित है. विश्व के भिन्न-भिन्न देशों को आतंकवाद के विरोध में एकत्रित खड़े रहने की पृष्ठभूमि बनाने में भारत का योगदान इस समय अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है.  आज आतंकवाद के कारण जनजीवन असुरक्षित हो रहा है. देश के अनेक विकास कार्यों में बाधाएं आ रही हैं. 21वीं सदी में शस्त्र के बल पर गलत धारणाएं मन में रखकर मानवता को झुकाना कितना योग्य है? ऐसे समय में भारत का नेतृत्व आतंकवाद के विरोध में दुनिया को संगठित करने की पहल कर रहा है. भविष्य में इससे ज्यादा प्रयास भारत का नेतृत्व करे, ऐसा हमें लगता है.

क्या ‘एयर सर्जिकल स्ट्राइक’ ही पुलवामा हमले का योग्य उत्तर था?

निश्चित रूप से. हमला होता है तो जवाब देना ही चाहिए. उनकी आतंकवादी गतिविधियों के खिलाफ भारत की उचित प्रतिक्रिया कोई गलत बात नहीं है. प्रतिक्रिया देना चेतना का लक्षण है. सजीवता का लक्षण है.

सहनशीलता कभी-कभी दुर्बलता मानी जाती है. इसलिए कभी-कभी ऐसे अवसरों पर अपने सामर्थ्य का परिचय देना अत्यंत आवश्यक होता है. आतंकवादी जिस भाषा को जानते हैं, उससे भी अधिक कठोर भाषा में भारत अपनी सुरक्षा की दृष्टि से जवाब दे सकता है, यह आतंकियों को याद दिलाना अत्यंत जरूरी था. पुलवामा की घटना एक कारण बन गया था. भारत ने पूरे विश्व में यह सिद्ध कर दिया कि आतंकवादियों को हम उन्हीं की भाषा में उत्तर दे सकते हैं.

इस सर्जिकल स्ट्राइक से भारत के सामान्य व्यक्ति भी उत्साहित हुए हैं. राष्ट्र में एक विश्वास निर्माण हुआ है कि हम भी कुछ कर सकते हैं. दुनिया की बुरी ताकतों को हम उनकी सही जगह दिखा सकते हैं यह विश्वास सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सामान्य जनों में निर्माण हुआ है.

समाज में एक प्रकार की धारणा बन गई है कि चुनाव में भाजपा की विजय से ही राष्ट्र विकास हो सकताहै. इसका कारण क्या हो सकता है?

स्वतंत्रता प्राप्ति के 70 सालों के बाद के इतिहास को देखते हुए जनता को यह महसूस हो रहा है कि भारत को सशक्त बनाने के लिए जो कार्य किए जाने थे, वे 70 सालों में नहीं हो पाए हैं. विद्यमान सरकार ने सुरक्षा के क्षेत्र में, आर्थिक क्षेत्र में, शिक्षा के क्षेत्र में, कृषि क्षेत्र में जिस प्रकार की नीतियां बनाई हैं, वे नीतियां देश को उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जाने वाली हैं. इसलिए लोगों में एक धारणा बनी है कि इस सरकार को ही आने वाले 5 सालों के लिए देश के हित में चुनना चाहिए. भारतीय जनमानस में यह विचार है कि जो बातें इस सरकार ने तय की हैं, उन बातों को पूर्णत्व में लाने के लिए 2019 के चुनाव में चुनकर उचित समय देना चाहिए.

भारतीय वैज्ञानिकों को जिस प्रकार से अवसर दिया गया, उसी कारण अंतरिक्ष में भी भारत का दबदबा बढ़ा है. यह सरकार के कारण ही हो सका है. मैं यह नहीं कहूंगा कि भ्रष्टाचार पूरी तरह से समाप्त हुआ है, पर एक अच्छी बात है कि भ्रष्टाचार के विरोध में कमर कसी जा रही है. ये बातें भारतीय जनमानस के ध्यान भी में आ रही हैं. सही दिशा में काम करने के लिए किसी भी राजनीतिक दल को केवल पांच साल का समय पर्याप्त नहीं होता. इस कारण राष्ट्रीय विचारों के विभिन्न दलों के समूह को फिर एक बार भारत की सत्ता में आना चाहिए और राष्ट्र विकास जो का कार्य उन्होंने स्वीकार किया है, उसे आगे बढ़ाना चाहिए.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ चाहता है या ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’?

संघ मुक्त की किसी तरह की कल्पना से सहमत नहीं है. हम राष्ट्र भावना से परिपूर्ण देश चाहते हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत को उस देश के रूप में देखना चाहता है जो वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठा प्राप्त करे. अत: इससे मुक्त, उससे मुक्त इस प्रकार का कोई भी विचार संघ नहीं करता है. संघ सामर्थ्यशाली भारत चाहता है.

हिंदू आतंकवाद की व्याख्या गढ़ने से लेकर जनेऊ धारण करने तक के कांग्रेस के प्रवास को आप किस दृष्टि से देखते हैं?

मैं कांग्रेस के इस प्रवास की प्रामाणिकता पर ही प्रश्न उठा रहा हूं. जिस प्रकार से वर्तमान में वह प्रतिक्रिया दे रही है, मुझे नहीं लगता कि देशहित को लेकर कांग्रेस प्रामाणिक है. सर्जिकल स्ट्राइक जैसी घटनाओं पर प्रश्नचिह्न खड़ा किया जाता है, सेना की कार्रवाई पर प्रश्नचिह्न खड़ा किया जाता है, केवल भारत के सामान्य जनों को भ्रमित करने के लिए कांग्रेस धार्मिक बातों का आधार ले रही है.

कांग्रेस अपने राजनीतिक जीवन में फिर से सामाजिक भ्रष्टाचार कर रही है. बाह्य रूप से भ्रमित करने वाली ये बातें और प्रत्यक्ष व्यवहार में आतंकवाद के प्रति कांग्रेस की भूमिका, कांग्रेस का दोहरा चेहरा दर्शाती हैं. केवल और केवल मतदाताओं को भ्रमित करने के लिए इस प्रकार के जनेऊधारी होने की बात की जा रही है. मंदिर में जाना अच्छी बात है. कोई भी जा सकता है, सभी को जाना भी चाहिए. लेकिन चुनाव को ध्यान में रखकर मतदाताओं को भ्रमित करने के लिए यह दिखावा करना उचित नहीं है.

किन परिवर्तनों के कारण अब भारत के साथ ही पूरे विश्व का हिंदू अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहा है?

वर्तमान केंद्र सरकार ने हिंदुत्व से जुड़े हुए विभिन्न विषयों पर कार्य किया है. तीर्थ यात्रा के लिए श्रद्धालुओं हेतु सुविधाएं प्रदान की हैं. नेपाल से लेकर भारत के रास्तों को जोड़ने के लिए मार्ग को प्रशस्त करने की बात की है. अनेक धार्मिक क्षेत्रों के विकास की बातें चल रही है. ऐसी विभिन्न बातें इस सरकार ने की हैं. इसे हम केवल धार्मिकता के दृष्टिकोण से नहीं देखते हैं. हिंदुओं का आत्मविश्वास ब़ढ़े ऐसा व्यवहार विश्व पटल पर हो रहा है. विश्व भर में अभिमान से वंदे मातरम का नारा लगाया जाता है. योग जैसे विषयों की स्वीकार्यता बढ़ती है. इन बातों को बढ़ावा मिले, इसलिए विद्यमान सरकार की ओर से प्रयास हो रहे हैं. इसी के कारण विश्व और भारत का हिंदू यह महसूस करता है कि हिंदू इस नाते हम गौरवान्वित हो रहे हैं. शक्ति के साथ हम पूरे विश्व के सामने आ रहे हैं. हम केवल इस बात को राजनीति से जोड़ कर नहीं देखते हैं. योग, संस्कृत, आयुर्वेद, पर्यावरण जैसे विषय में भारत का दृष्टिकोण दुनिया के द्वारा स्वीकार करना अब संभव हो रहा है. इसी कारण से हिंदू अपने आप को गौरवान्वित महसूस करता है.

क्या भारत विश्व गुरु होने की दिशा में अग्रसर हो रहा है?

विश्व गुरू होने की यात्रा लंबी है. इतनी आसान नहीं है. हम उस दिशा में बढ़े जरूर हैं. हमें विश्वास है कि भारत का मूलभूत चिंतन विश्व कल्याण की कामना करने वाला चिंतन है. वह सब की सुख की कामना करता है. समन्वय का चिंतन लेकर चलता है. भारतीय विचारधाराओं में यह जो मूलभूत चिंतन है, वह विश्व को सही दिशा में मार्गदर्शन करने वाला चिंतन है. अब यह चिंतन पूरा विश्व स्वीकार रहा है.

यह बात स्पष्ट हो रही है कि विश्व गुरु बनने का बीज भारत के चिंतन में है. वह बीज धीरे-धीरे अंकुरित हो रहा है. निश्चित रूप से भारत अनेक क्षेत्रों में विश्व को मार्गदर्शन करने की क्षमता रखता है. यह बात कल भी थी, आज भी है, लेकिन दुनिया के सामने लाने की यात्रा अभी भी लंबी है. उसे समय देना पड़ेगा.

पूर्वोत्तर में दिखाई देने वाले परिवर्तन में विद्यमान सरकार का योगदान किस प्रकार है?

पहली बार पूर्वोत्तर के छोटे-छोटे राज्यों से संवाद की प्रक्रिया प्रारंभ हुई है. उनको भी राष्ट्र की मुख्य धारा में जोड़ने का काम विद्यमान सरकार ने किया है. वहां के राज्य और लोग भारत की शक्ति के साथ अपने आप को जोड़ रहे हैं. काफी वर्षों से प्रयास चल रहा था कि वहां के नागरिकों हेतु रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) की प्रक्रिया प्रारंभ की जाए. वह अब तक किसी ने किया नहीं था. विद्यमान केंद्र सरकार ने प्रथम इस बात को वहां लागू किया है. इस प्रक्रिया के क्रियान्वयन में कई प्रकार की बाधाएं आ रही हैं. परंतु केंद्र सरकार ने देश हित को ध्यान में रखकर अपने कदम आगे बढ़ाए. इस कारण जो विदेशी नागरिक हैं वे चिह्नित हुए हैं. विदेशी नागरिक भारत में अवैध रूप से निवास कर रहे हैं, यह स्पष्ट होते ही उन विदेशी नागरिकों को देश से बाहर निकालना किसी भी सरकार का अधिकार है. अब नागरिकता का कानून लाने की दिशा में सरकार आगे बढ़ सकती है. पूर्वोत्तर के कई प्रश्नों का समाधान इस कानून को लागू करने से मिल सकता है. केवल पूर्वोत्तर नहीं पूर्वोत्तर के नजदीक जो पश्चिम बंगाल है, उसमें भी कई विदेशी नागरिकों की घुसपैठ के कारण वहां कठिन समस्या निर्माण हो रही है. इस प्रक्रिया का प्रारंभ पूर्वोत्तर से हुआ है. इसे लेकर केंद्र सरकार यदि जोरशोर से आगे बढ़ती है तो घुसपैठियों की समस्या का निराकरण करने में बहुत बड़ा योगदान मिल सकता है. विदेशी नागरिकों का भारत के अंदर का अवैध प्रवेश बहुत बड़ी समस्या है. इस प्रश्न पर विद्यमान केंद्र सरकार ने जो पहल की है वह सराहनीय है.

नोटा के संदर्भ में आपकी राय क्या है?

भारतीय संविधान में भारतीय नागरिकों को अपनी पसंद की सरकार चुनने का अधिकार दिया है. उस अधिकार की पूर्णता मतदान प्रक्रिया से ही होती है. आपके मतदान न करने से कोई गलत व्यक्ति भी सरकार में जाकर बैठ सकता है. इसलिए देश हित को और साथ में अपने हित को भी ध्यान में रखकर अपने मतदान का अधिकार सभी भारतीयों को उपयोग में लाना ही चाहिए. शत-प्रतिशत मतदान हो, धैर्य के साथ मतदान हो. लोग निर्भय होकर मतदान करें. अपनी बुद्धि और विवेक का उपयोग करते हुए मतदान करें. किसी राजनैतिक दल के लिए नहीं, देशहित के लिए, राष्ट्रहित से प्रेरित समूह देश की केंद्र सत्ता में आए, इसलिए हर एक मतदाता को मतदान का उपयोग जरूर करना चाहिए.

इस साक्षात्कार के माध्यम से आप पाठकों को क्या संदेश देना चाहेंगे?

मैं इस साक्षात्कार के माध्यम से एक निवेदन जरूर करना चाहूंगा कि जब चुनाव आते हैं तो द्वेष की भावना बढ़ती है. संघर्ष का वातावरण निर्माण होता है. जिसे चुनाव समाप्त होने के बाद ठीक करना बहुत कठिन होता है. इसलिए सभी राजनैतिक दल अपने विचार भारत की जनता के सामने रखें. लेकिन यह लोकतांत्रिक चर्चा संवाद के वातावरण में सम्पन्न होनी आवश्यक है. जन सामान्य को संघर्ष का हथियार बनाकर देश का वातावरण बिगाड़ने का अधिकार किसी को भी नहीं है. संवाद पूर्ण वातावरण में शांति के साथ चुनाव हो सकते हैं, ऐसा आदर्श हम दुनिया के सामने प्रस्तुत करें. इस दिशा में सभी राजनीतिक दलों को सोचना अत्यंत आवश्यक है. सभी राजनीतिक दलों से और मतदाताओं से हम यही अपेक्षा और प्रार्थना करते हैं.

साभार – हिन्दी विवेक

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