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शिक्षा से वैभव तो मिला, किन्तु शांति नहीं मिली – डॉ. कृष्णगोपाल जी

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आगरा (विसंकें). भारतीय शिक्षण मंडल ब्रज प्रांत द्वारा विश्व कल्याण के लिए भारतीय शिक्षा विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. आगरा कॉलेज के गंगाधर शास्त्री हॉल में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता अवध विश्वविद्यालय के वीसी मनोज दीक्षित जी ने की.

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी ने कहा कि मैंने आगरा कॉलेज से ही एमएससी व शोध करने के दौरान संघ कार्य की शुरूआत की थी. यहां के शिक्षकों से जुड़ी बहुत सी स्मृतियां आज भी मानस पटल पर अंकित हैं. ऐसे शिक्षकों के समक्ष श्रद्धा से सिर झुक जाता है. समय परिवर्तन के साथ ही युवाओं में नैतिकता का पतन होता जा रहा है. शिक्षक वह है जो छात्र के जीवन को दृष्टि देता है और उसके भविष्य को राष्ट्रनिर्माण के लिए तैयार करता है. एक समय जब महान वैज्ञानिक सीवी रमन को भारत रत्न मिलने जा रहा था. उस समय जो तिथि निर्धारित थी, उस तिथि पर सीवी रमन ने भारत रत्न सम्मान लेने से मना कर दिया. क्योंकि उस दिन उनके छात्र की पीएचडी की मौखिक परीक्षा थी. अपने छात्र के भविष्य के लिए सीवी रमन ने भारत रत्न जैसे सम्मान का त्याग कर दिया. ऐसी विलक्षण गुरू परंपरा में हमारा जन्म हुआ है.

उन्होंने देश में तीन घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि परिवार के विवाद में एक अरब पति बेटे ने अपने पिता को घर से निकाल दिया. मुंबई में आशा साहनी की मृत्यु और युवा आईएएस द्वारा पारिवारिक कलह के चलते आत्महत्या की घटना समाज को चिंतित करने वाली है. इन घटनाओं की प्रकृति भिन्न है जो समाज में अशांति ला रही है. शिक्षा से वैभव तो मिल रहा है, लेकिन शांति नहीं मिल रही है. उन्होंने कहा कि शिक्षा ने हमें समर्थ तो बनाया है, लेकिन इसमें कहीं न कहीं अनिवार्य चूक हो गई है. आज बेटा बूढ़े मां-बाप की सेवा नहीं करता. वहीं आजादी से पूर्व कलकत्ता में लॉर्ड कर्जन द्वारा आशुतोष मुखर्जी को वाइसराय का पद देकर इग्लैंड में शोध करने का मौका देने की बात कहने पर उन्होंने अपनी मां से पूछकर जवाब देने की बात कही. इसके बाद जब आशुतोष मुखर्जी की मां की तबियत खराब हुई, तो वे अपनी पीएचडी अधूरी छोड़कर स्वदेश लौट आए. उन्होंने कहा कि आज हम भौतिक स्पर्धा के लिए अपने संस्कारों को विस्मृत करते जा रहे हैं, हालांकि किसी भी स्पर्धा में हम दुनिया में पीछे नहीं हैं. छात्रों द्वारा शिक्षा ग्रहण करने के बाद विदेश में सेवा देने से चिंतित डॉ. कृष्णगोपाल जी ने कहा कि सरकार द्वारा आईआईटी और अन्य भारतीय इंजीनियरिंग संस्थानों में विद्यार्थियों पर तमाम धनराशि खर्च की जाती है, लेकिन वे ही छात्र यहां से शिक्षित होकर करोड़ों के पैकेज के लिए विदेशी सिस्टम को ठीक करने में जुट जाते हैं.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा जी ने कहा कि धर्म सदाचार को धारण करता है. पहले गुरुकुल होते थे, जिनमें राजा और रंक के बच्चे साथ-साथ समानभाव से पढ़ते थे. माता-पिता और गुरुजनों का सम्मान सर्वोच्च माना जाता था. इन्हीं संस्कारों के चलते भगवान राम ने पिता के कहने पर 14 साल का वनवास पूर्ण किया. भारत में तमाम आक्रांता आए, भारत से सबकुछ लूटकर ले गए, लेकिन हमारी आध्यात्मिकता को नहीं लूट पाए. आज अमेरिका में किसी लाइलाज बीमारी के शोध पर इतनी धनराशि खर्च नहीं की जा रही, जितनी की वहां की युवा पीढ़ी को व्यसनों से उबारने पर की खर्च की जा रही है. वहां तेरह-चौदह साल की उम्र में किशोर विभिन्न व्यसनों के शिकार हो रहे हैं. ये बच्चे ठीक हो सकते है, जब उन्हें भारतीय संस्कारों की सीख और धर्म के अध्यात्म से परिचय कराया जाए. कुछ साल पहले पढ़ाई के सिस्टम को परखने और जानने के लिए अमेरिका गया था. वहां मैंने एक संस्थान में हो रही प्रतियोगिता में देखा कि उसमें अमेरिका, फ्रांस, जापान और सबसे पीछे भारतीय छात्र भी बैठे हुए थे. कठिन प्रश्नों पर विदेशी छात्र चकरा जाते थे और वे पीछे बैठे भारतीय छात्रों से उनके जवाब पूछते थे. इसी तरह मॉरीशस में भी 85 फीसदी भातीय मूल के लोग हैं जो भारतीय संस्कारों को अभी तक भूले नहीं हैं. वहां भोजपुरी बोली जाती है. भारतीय त्योहारों को उल्लास के साथ मनाया जाता है. शिवरात्रि के पर्व पर तो एक सप्ताह की छट्टियां होती हैं. इस दौरान भारत से ले जाए गए गंगाजल से शिवजी का अभिषेक किया जाता है.

भारतीय शिक्षण मंडल के राष्ट्रीय संगठन मंत्री डॉ. मुकुल कानिटकर जी ने कहा कि आईआईटी से शिक्षा प्राप्त करने वाला छात्र उसी संस्थान में अध्यापन करना पसंद नहीं करता. वह बड़े पैकेज पर मल्टीनेशनल कंपनियों को अपनी सेवाएं देना पसंद करता है. आज जो शिक्षा मिल रही है, वह मस्तिष्क आधारित है, हम इसे ह्रदय आधारित बनाने के लिए निकले हैं. विदेशों में सर्वाधिक शोध नींद की बीमारी पर किया जाता है. लेकिन भारत में लोग चैन की नींद सोते हैं. भारत का जगतगुरु बनने का मार्ग प्रशस्त हो चुका है. जब भी युग परिवर्तन होता है तब और अधिक बलिदान मांगता है. इसलिए यह समय घरों में बैठने का नहीं, बल्कि गुरू-शिष्य परंपरा और भारतीय शिक्षण पद्धिति को बल प्रदान करने का है.

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