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श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की 350वीं जयंती पर आयोजित किया समारोह

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मुकेरियां, पंजाब (विसंकें). देश व धर्म के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर और अंतत: प्राणोत्सर्ग कर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने समाज में नेतृत्व के लिए जो मानदंड स्थापित किए, अगर इनका अनुसरन किया जाए तो भारत को पुन: विश्वगुरु की पदवी पर आसीन होने से कोई नहीं रोक सकता. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पंजाब प्रांत प्रचार प्रमुख रामगोपाल जी ने श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की 350वीं जयंती पर संघ द्वारा आयोजित समारोह को संबोधित किया.

समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में रामगोपाल जी ने कहा कि समाज व देश का नेतृत्व कैसा होना चाहिए, इसका उदाहरण पेश किया श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने. उन्होंने 9 साल की आयु में ही अपने पिता गुरु जी को आत्मबलिदान के लिए प्रेरित किया और महान सिख पंथ को नेतृत्व दिया. इतनी कम आयु में भी उन्होंने देश व समाज की तत्कालीन परिस्थितियों को पहचाना और समयानुकूल पद्धति से इनका सामना किया. वे जानते थे कि ज्ञान व अध्यात्म के साथ जोड़ कर ही भारतीय समाज का उत्थान हो सकता है. इसके लिए उन्होंने भारतीय वांग्मय का जनसाधारण की भाषा में अनुवाद करवाया. मात्र 9 साल की आयु में खुद मार्कंडेयपुराण का अनुवाद किया. अपने दरबार में देश भर से 52 कवि व साहित्यकारों को बुलाया व शरण दी. अपने 5 शिष्यों को भारतीय अध्यात्म व प्राचीन ज्ञान की शिक्षा दिलवाने के लिए काशी भेजा और निर्मला पंथ की स्थापना की. रामगोपाल जी ने कहा कि श्री गुरु जी जानते थे कि कोरे शास्त्र ज्ञान से ही मौजूदा परिस्थितियों का सामना नहीं किया जा सकता. इसके लिए उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना कर अपने शिष्यों को शस्त्रों का ऐसा धनी बनाया कि वे सवा-सवा लाख दुश्मनों से लड़ने के योग्य हो गए.

लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित करते हुए उन्होंने जिन पांच प्यारों को अमृतपान करवाया, उन्हीं के हाथों से खुद भी अमृतपान कर पांच प्यारों के रूप में जनप्रतिनिधियों को अधिमान दिया. निजी जीवन में उनका मन कितना अडोल व समाज से विरक्त था, इसका उदाहरण इसी बात से मिलता है कि अपना परिवार तक छिन जाने, दुश्मन सेना द्वारा पीछा किए जाने व युद्धरत होने के बावजूद तलवंडीसाबो में ठहर कर श्री गुरु ग्रंथ साहिब को पूर्ण रूप प्रदान किया. देश की वर्तमान पीढ़ी का यह परमसौभाग्य है कि हमने ऐसे राष्ट्र में जन्म लिया है, जिसकी धरती को कभी गुरु गोबिंद सिंह जैसे महापुरुष के चरणों ने पवित्र किया.

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