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संघ से जुड़ीं पांच पुस्तकें, जो आपको पढ़नी चाहिएं

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भोपाल.

ॐ असतो मा सद्गमय. तमसो मा ज्योतिर्गमय. मृत्योर्मामृतंगमय.

अर्थात् – हे ईश्वर (हमको) असत्य से सत्य की ओर ले चलो. अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो. मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो. असत्य से सत्य और अन्धकार से प्रकाश की इस यात्रा में पुस्तकें हमारी सबसे बड़ी मित्र हैं. विश्व को बेहतर समझने और स्वयं को निरंतर बेहतर बनाने में पुस्तकों ने मानव जाति का हमेशा साथ दिया है. विश्व पुस्तक दिवस के उपलक्ष्य में हम बात करेंगे, कुछ ऐसी पुस्तकों को जो संघ के विचार और भारतवर्ष के निर्माण में संघ की भूमिका को समझने में आपकी सहायता करेंगी.

1. कृतिरूप संघ दर्शन

‘कृति रूप संघ दर्शन’ पुस्तक श्रृंखला 6 भागों में विभाजित है. इस पुस्तक में संघ का वास्तविक स्वरूप क्या है, संघ की स्थापना कब, क्यों व कैसे हुई, संघ किन किन परिस्थितियों को लांघते हुए वर्तमान स्थिति में पहुंचा है और किन किन परिस्थितियों में कार्य कर रहा है, संघ की सम्पूर्ण संगठनात्मक जानकारी, समाज जीवन के भिन्न भिन्न क्षेत्रों में संघ किस प्रकार और क्या क्या कार्य करता है, इन सभी प्रश्नों का उत्तर संकलित करने का प्रयास किया गया है. इस पुस्तक का मूल स्वरुप हो.वी. शेषाद्री जी द्वारा लिखा गया था, जिसका नवीन संस्करण वर्ष 2018 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भगवत एवं सरकार्यवाह भय्याजी जोशी ने जारी किया था.

 

2. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पहली अग्निपरीक्षा

महात्मा गांधी की निर्मम हत्या के पश्चात उनके तथाकथित अनुयायियों ने उनकी चिता पर अपने स्वार्थों की रोटियां सेंकने का कृतघ्न प्रयास किया था. देश की सरकार ने 04 फरवरी 1948 को संघ पर प्रतिबंध लगा दिया. संघ विरोधी शक्तियों ने शासन के ही सहयोग से संघ पर चतुर्दिक सामूहिक प्रहार किए. हिंसा, आगजनी, लूटपाट का तांडव किया, इस अग्नि परीक्षा में आखिर संघ विजयी हुआ. संघ के इसी संघर्ष की कहानी को इस पुस्तक में संकलित किया गया है.

इस इतिहास की, इस संघर्ष गाथा की, इस महाभारत की सामग्री को श्री वझे ने 1950 में ही संकलित कर लिया था. पांडुलिपि भी तैयार कर ली गयी थी. उन दिनों प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित इतिवृत्तों व टिप्पणियों तथा कुछ जांच रिपोर्टों को ही उसका आधार बनाया गया था. तभी पुस्तक के प्रकाशन की योजना थी. परंतु जब सरदार पटेल को पता चला कि ऐसी कोई पुस्तक प्रकाशित होने वाली है तो उन्होंने तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरूजी से आग्रह किया कि ‘अब छोड़ो भाई’. पटेल जी के आग्रह पर उस समय इस पुस्तक के प्रकाशन को उस समय के लिए टाल दिया गया, अंततः 45 वर्ष पश्चात् 1993 में रा. स्व. संघ के अखिल भारतीय सह बौद्धिक प्रमुख कौशल किशोर जी के निर्देश पर, मामाजी माणिकचन्द्र वाजपेयी के नेतृत्व में यह पुस्तक प्रकाशित की गयी.

3. आधुनिक भारत के निर्माता – डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार/राकेश सिन्हा

डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार भारतीय संस्कृति के परम उपासक थे. वह कर्मठ सत्य निष्ठ और राष्ट्रीय विचार के होने के साथ-साथ एक स्वतंत्र चेतना भी थे. उन्होंने हिंदुओं में नई चेतना जागृत करने का उल्लेखनीय कार्य करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की.

पुस्तक में उनके व्यक्तित्व और जीवन के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला गया है तथा उनके संबंध में ऐसी भी जानकारियां दी गई हैं जो अभी तक अल्पज्ञात थीं. पुस्तक के लेखक राकेश सिन्हा दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज में राजनीति शास्त्र के व्याख्याता रहे हैं एवं वर्तमान में राज्यसभा के सदस्य हैं. इसके अलावा स्तंभकार और राजनीति विश्लेषक के रूप में भी प्रतिष्ठित हैं.

4. भारतवर्ष की सर्वांग स्वतंत्रता / नरेंद्र सहगल

पुस्तक के लेखक नरेन्द्र सहगल संघ के प्रचारक एवं पत्रकार रहे है. वह लिखते हैं कि परम वैभव के लिए सर्वांग स्वतंत्रता अखंड भारत भारतीयों के लिए भूमि का टुकड़ा न होकर एक चैतन्यमयी देवी भारतमाता है. जब तक भारत का भूगोल; संविधान; शिक्षा प्रणाली; आर्थिक नीति; संस्कृति; समाज-रचना; परसा एवं विदेशी विचारधारा से प्रभावित और पश्चिम के अंधानुकरण पर आधारित रहेंगे; तब तक भारत की पूर्ण स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न लगता रहेगा.

स्वाधीन भारत में मानसिक पराधीनता का बोलबाला है. देश को बाँटने वाली विधर्मी/विदेशी मानसिकता के फलस्वरूप देश में अलगाववाद; अतंकवाद; भ्रष्टाचार; सामाजिक विषमता आदि पाँव पसार चुकी हैं. संघ जैसी संस्थाएँ सतर्क हैं. परिवर्तन की लहर चल पड़ी है. देश की सर्वांग स्वतंत्रता अवश्यंभावी है.

गांधी जी की इच्छा के विरुद्ध भारत-विभाजन के साथ खंडित राजनीतिक स्वाधीनता स्वीकार करके कांग्रेस का सारा नेतृत्व सत्तासीन हो गया. दूसरी ओर संघ अपने जन्मकाल से आज तक ‘अखंड भारत’ की ‘सर्वांग स्वतंत्रता’ के ध्येय पर अटल रहकर निरंतर गतिशील है. इस पुस्तक के माध्यम से संघ की दृष्टि से इसी सर्वांग स्वतंत्रता का चित्र प्रस्तुत किया गया है.

5. ज्योति जला निज प्राण की / मानिकचंद वाजपेयी, श्रीधर पराडकर

जब -जब भारत माता को अपनी ज्योति को ज्योतित रखने के लिए वीरों के प्राण रूपी तेल की आवश्यकता पड़ी है. तब इस देश के अनेकों बलिदानियों ने मां भारती की सेवा में निज प्राणों की आहुति देकर राष्ट्ररक्षा, धर्म-रक्षा और संस्कृति रक्षा के लिए जीवन आहूत करने में देरी नहीं की है. आरएसएस का अपना इतिहास भी इस प्रकार के बलिदानों से भरा पड़ा है. इस तथ्य को श्री माणिकचन्द्र वाजपेयी और श्रीधर पराडकर जी ने अपनी पुस्तक ‘ज्योति जला निज प्राण की’ में सुंदरता से स्पष्ट किया है. विभाजन की त्रासदी और उसके कारण उत्पन्न हुए संकट का संघ के स्वयंसेवकों ने समाज बन्धुओं को साथ लेकर किस प्रकार मुकाबला किया, इसका बड़ा रोमांचक और सजीव वर्णन वास्तविक व तथ्यपूर्ण घटनाओं के आधार पर इस पुस्तक में किया गया है.

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