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सबके मर्यादा पुरुषोत्तम राम

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राम सत्य है, मर्यादा है, कर्म है, आदर्श है, अनुकरणीय, हरमन में विराजते और जगत के पालनहार सबके मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं. “र” का अर्थ है – अग्नि, प्रकाश, तेज, प्रेम, गीत. रमते इति राम: जो कण-कण में रमते हों, उसे राम कहते हैं. निरंतर आत्मा में रमने वाला राम ही शीतल और स्वच्छ हृदय का धीरवान संत है हम सबके राम.

संत कबीर लिखते हैं कि, राम शब्द भक्त और भगवान में एकता का बोध कराता है. जीव को प्रत्येक वक्त आभास होता है कि राम मेरे बाहर एवं भीतर साथ-साथ हैं. केवल उनको पहचानने की आवश्यकता है. मन इसको सोचकर कितना प्रफुल्लित हो जाता है. इस नाम से सर्वआत्मा, स्वामी, सेवक और भक्त में उतनी सामीप्यता नहीं अनुभव होता हैं.

दुनिया के राम और राम की दुनिया, दुनियाभर में लोग श्रीराम को भगवान और अपना आराध्य मानते हैं. इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड में रामगाओं का गौरवमयी और पुराना इतिहास है. मॉरीशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद और गुयाना की राम कथाएं पूरी दुनिया में अपना अलग महत्व रखती हैं. दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में वैश्विक स्तर पर रामलीलाएं आयोजित होती हैं. हर देश में रामायण की प्रस्तुतियां, अनूठी राम मान्यताएं और उनकी महान परंपराएं विद्यमान हैं. स्तुत्य, घट-घट वासी हम सबके राम कंठ-कंठ में  अलौकिक है.

महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में अवतार के उद्देश्य और सिद्धांत को सुंदर ढंग से प्रतिपादित किया है. अवतारी पुरुष अपनी श्रेष्ठता प्रकट करने के उद्देश्य आचरण नहीं करते उनका उद्देश्य यह होता है कि मनुष्य अपने जीवन में श्रेष्ठता जागृत करने का मर्म एवं ढंग उनको देखकर सीख सकें. इसीलिए वह अपने आप को सामान्य मनुष्य की मर्यादा में रखकर ही कार्य करते हैं. राम तो धर्म की साक्षात मूर्ति है. वह बड़े साधु और सत्य पराक्रमी है. जिस प्रकार इंद्र देवताओं के नायक हैं. उसी प्रकार राम भी सब लोकों के नायक हैं. श्री राम धर्म के जानने, सत्य प्रतिज्ञ की भलाई करने वाले कीर्तिवान, ज्ञानी, पवित्र, मन और इंद्रियों को वश में करने वाले तथा योगी है.

प्रत्युत, तुलसी के राम, जैसे काम के अधीन कामुक व्यक्ति को नारी प्यारी लगती है और लालची व्यक्ति को जैसे धन प्यारा लगता है. वैसे ही हे रघुनाथ, हे राम, आप मुझे हमेशा प्रिय लगते हैं. हे श्री रघुवीर! मेरे समान कोई दीन नहीं, आपके समान कोई दीनों का करने वाला नहीं है. ऐसा विचार कर हे रघुवंशी मणि! मेरे जन्म-मरण के भयानक दुखों को हरण कर लीजिए. श्री राम भक्ति रुकमणी जिसके हृदय में बसती है. उसे स्वप्न में भी लेश मात्र दुख नहीं होता.

हृदयंगम, राम नाम के पैरोकार गुरु नानक देव जी ने ना केवल राम नाम बल्कि नाद, शब्द, धुन, सच एक ही अर्थ में प्रयोग किया है. भगवान राम की महिमा सिक्ख परंपरा में भी बखूबी विवेचित है. सिक्खों के प्रधान ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में 55 सौ बार भगवान राम के नाम का जिक्र मिलता है. सिक्खों  में भगवान राम से जुड़ी विरासत राम नगरी में ही स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड में पूरी शिद्दत से प्रावमान है. उनकी जड़ें भगवान राम के पुत्र लव से जुड़ती है और दशम गुरु गोविंद सिंह जिस सोनी कुल के नर नाहर थे, उसकी जड़ें भगवान राम के दूसरे पुत्र कुश से जुड़ती हैं.

मनोहारी, रहीम के राम में जिन लोगों ने राम का नाम धारण न कर अपने धन, पद और उपाधि को ही जाना और राम के नाम पर विवाद खड़े किये, उनका जन्म व्यर्थ है. वह केवल वाद-विवाद कर अपना जीवन नष्ट करते हैं.

लीला में मीरा कहती है, जैसे एक कीमती मोती समुंदर की गहराइयों में पड़ा होता है. और उसे अथक परिश्रम के बाद ही पाया जा सकता है. वैसे ही ‘राम’ यानी ईश्वर रूपी मोती हर किसी को सुलभ उपलब्ध नहीं है. सद्गुरु आपकी कृपा से मुझे राम रूपी रत्न मिला है. यह ऐसा धन है जो ना तो खर्च करने से घटता है और ना ही उसे चोर चुरा सकते हैं.

बतौर, शायर अल्लामा इकबाल ने सबके भगवान श्रीराम को इमाम-ए-हिन्द कहा है.

है राम के वजूद पे हिंदोस्तां को नाज.

अहल-ए-नजर समझते हैं उस को इमाम-ए-हिंद..

हेमेंद्र क्षीरसागर

 

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