नई दिल्ली. सामाजिक समरसता व हिंदू समाज को छूआछूत जैसी घृणित परम्परा से मुक्ति दिलाने वाले महान सन्त रविदास का जन्म धर्म नगरी काशी के निकट मंडुआडीह में संवत 1433 की माघ पूर्णिमा को हुआ था. उनके पिता का नाम राघव व माता का नाम करमा था. जिस दिन उनका जन्म हुआ, उस दिन रविवार था, इस कारण उन्हें रविदास कहा गया. उनका जन्म ऐसे समय में हुआ, जब भारत में मुगलों का शासन था. चारों ओर गरीबी, भ्रष्टाचार व अशिक्षा का बोलबाला था. एक प्रकार से हिंदू समाज की स्थिति बहुत विकट थी. रविदास का मन पारिवारिक व्यवसाय में नहीं लगता था. उन्हें साधु संतों की सेवा और आध्यात्मिक विषयों में रूचि थी. माता पिता ने इन्हें इससे विरत करने के लिये उनका छोटी उम्र में ही विवाह कर दिया. लेकिन इसका उनके जीवन पर कोई असर नहीं पड़ा. अन्ततः उन्हें परिवार से निकाल दिया गया. लेकिन वे तनिक भी विचलित नहीं हुए और उन्होंने घर के पीछे अपनी झोंपड़ी बना ली. उसी झोंपड़ी में वे अपने परिवार का व्यवसाय करने लगे.
युग प्रवर्तक स्वामी रामानंद उस काल में काशी में पंच गंगाघाट में रहते थे. वे सभी को अपना शिष्य बनाते थे. रविदास ने उन्हीं को अपना गुरू बना लिया. स्वामी रामानंद ने उन्हें राम भजन की आज्ञा दी व गुरू मंत्र दिया “ रं रामाय नमः”. गुरूजी के सानिध्य में ही उन्होंने योग साधना और ईश्वरीय साक्षात्कार प्राप्त किया. उन्होंने वेद, पुराण शास्त्रों का समस्त ज्ञान प्राप्त कर लिया. कहा जाता है कि भक्त रविदास का उद्धार करने के लिये भगवान स्वयं साधु वेश में उनकी झोंपड़ी में आये, लेकिन उन्होंने उनके द्वारा दिये गये पारस पत्थर को स्वीकार नहीं किया.
उस समय मुस्लिमों का प्रयास होता था कि येन केन प्रकारेण हिंदुओं को मुसलमान बनाया जाये. सदना पीर नाम का एक मुस्लिम विद्वान था, रविदास को मुसलमान बनाने के उद्देश्य से वह उनसे मिलने पहुंचा. सदना पीर ने शास्त्रार्थ कर हिंदू धर्म की निंदा की और मुसलमान धर्म की प्रशंसा की. सन्त रविदास ने उसकी बातों को ध्यान से सुना और फिर उत्तर दिया और उन्होंने इस्लाम धर्म के दोष बताये. संत रविदास के तर्कों के आगे सदना पीर टिक न सका. सदना पीर आया तो था सन्त रविदास को मुसलमान बनाने, लेकिन वह स्वयं हिंदू बन बैठा. दिल्ली में उस समय सिकन्दर लोदी का शासन था. उसने रविदास के विषय में काफी सुन रखा था. सिकंदर लोदी ने उन्हें दिल्ली बुलाया और मुसलमान बनने के लिये बहुत से प्रलोभन दिये. सन्त रविदास ने काफी निर्भिक शब्दों में निंदा की, जिससे चिढ़कर उसने रविदास को जेल में डाल दिया. सिकन्दर लोदी ने कहा कि यदि वे मुसलमान नहीं बनेंगे तो उन्हें कठोर दण्ड दिया जाएगा. इस पर रविदास जी ने जो उत्तर दिया, उससे वह और चिढ़ गया. रविदास जी जेल में डाल दिये गये. वहां भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें दर्शन दिया और कहा कि अपने धर्मनिष्ठ सेवक की रक्षा करेंगे.
अगले दिन सुल्तान जब नमाज पढ़ने गया तो सामने रविदास जी को खड़ा पाया. उसे चारों दिशाओं में सन्त रविदास के ही दर्शन हुये. यह चमत्कार देखकर सिकन्दर लोदी घबरा गया. उसने रविदास को कारागार से मुक्त कर दिया और उनसे क्षमा मांगी. उदार सन्त ने उनको क्षमा कर दिया. सन्त रविदास के जीवन में बहुत सी चमत्कारिक घटनाएं घटीं. चित्तौड़ के राणा सांगा की पत्नी झाली रानी और उनकी पुत्रवधू प्रसिद्ध कवयित्री सन्त मीरा उनकी शिष्य बनीं. वहीं चित्तौड़ में उनकी स्मृति में रविदास की छतरी बनी हुई है, मान्यता है कि वे यहीं से स्वर्गारोहण कर गये.
समाज में सभी स्तर पर उन्हें सम्मान मिला. वे महान सन्त रामानन्द के शिष्य कबीर के गुरूभाई और मीरा के गुरू थे. श्री गुरूग्रंथ साहिब में उनके पदों का समावेष किया गया. आज के सामाजिक वातावरण में समरसता का संदेश देने के लिये सन्त रविदास का जीवन प्रेरक है.