नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हुई हिंसा के दौरान मेरठ में 6 मुस्लिम युवकों की मृत्यु हुई थी. उनके परिजनों की ओर से यह आरोप लगाया जा रहा था कि युवकों की मृत्यु पुलिस की गोली लगने से हुई है, जबकि पुलिस ने गोली चलाने की बात से साफ़ इंकार कर दिया था. इस मामले की जांच जब आगे बढ़ी तो खुलासा हुआ कि मुसलमान युवक ही पुलिस पर गोली चला रहे थे. दंगाइयों की तरफ से चलाई गई गोली पुलिस को न लग कर प्रदर्शन कर रहे उन युवकों को लग गई, जिस कारण उनकी मौत हुई.
1987 के दंगे का बदला लेना चाहता था अनीस उर्फ़ खलीफा
पुलिस ने आसपास के इलाके में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज को निकलवाया तो उसमें 3 लोग पुलिस पर गोली चलाते हुए दिखाई दिए. इन तीन युवकों की फुटेज निकाल कर जब पुलिस ने छानबीन की तो इन की पहचान अनस, अनीस उर्फ़ खलीफा और नईम के तौर पर हुई. जब पुलिस ने पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया के सदस्य एवं 20 हजार रूपए के इनामी अनीस उर्फ़ खलीफा को गिरफ्तार कर पूछताछ की तो अनीस ने पुलिस को बताया कि वर्ष 1987 में दंगा हुआ था. उस दंगे में उसके भाई रईस की मौत हो गई थी. तभी से वह पुलिस के खिलाफ था. वर्ष 2004 में एक हत्या के मामले में अनीस जेल भी गया था. श्री राम जन्मभूमि विवाद पर फैसला आने के बाद वह पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया से जुड़ गया था. यह संगठन उसे हिंसा करने के लिए उकसा रहा था. नागरिकता संशोधन कानून लागू होने के बाद भी उकसाया गया था. 20 दिसंबर को जुमे की नमाज के बाद पुलिस पर गोली चलाने की पूरी तैयारी कर ली गई थी, मगर उस हमले में गोली मुस्लिम युवकों को लगी. मेरठ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, अजय साहनी ने बताया कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने मुसलमानों को हिंसा करने के लिए उकसाया था. कुछ लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है. अन्य की तलाश में दबिश दी जा रही है.
लखनऊ से सुनील राय