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सैनिक देश की सीमाओं की, और संत समाज में नैतिक मूल्यों की रक्षा करते हैं – डॉ. मोहन भागवत जी

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नागपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि सैनिक हमें विदेशी आक्रमण से बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं . वे सदैव हमारी सीमाओं की रक्षा के लिए सतर्क रहते हैं. हमें उन्हें केवल युद्ध के समय ही स्मरण नहीं करना चाहिए, बल्कि ईश्वर के समान उन्हें भी अपने दैनिक जीवन में दिल में स्मरण करना चाहिए. उनके बलिदान का सतत स्मरण ही राष्ट्रवाद के अभ्यास जैसा है. सरसंघचालक जी 24 दिसंबर, 2016 को रेशम बाग़ नागपुर में चल रहे “धर्म संस्कृति महाकुंभ ‘ के अंतर्गत आयोजित “प्रेरणा संगम” कार्यक्रम में उसंबोधित कर रहे थे. उन्होंने संतों और सैनिकों द्वारा एक साथ मंच साझा करने को एक ऐतिहासिक घटना बताते हुए कहा कि संन्यासी और सैनिक दोनों ही सही अर्थों में मानवता का उद्धार करने वाले हैं. जिस प्रकार सैनिक राष्ट्र और देश की सीमाओं की रक्षा करते हैं, उसी प्रकार संत मनुष्य को उसकी ‘नैतिक सीमाओं’ के बारे में सचेत कर, मानवता की रक्षा करते हैं.

सरसंघचालक जी ने कहा कि पूरे देश को सैनिकों के बलिदान के महत्व को समझते हुए उनके परिवारों का ध्यान रखना चाहिए. उन्होंने संतों से भी आग्रह किया कि वे अपने उपदेशों के माध्यम से समाज में सैनिकों के प्रति अपनत्व की भावना को दृढ़ बनाने, सैनिकों को प्रोत्साहित करने और उनके दर्द को साझा करने की दिशा में प्रयासरत रहें. उन्होंने कहा कि आजादी के तुरंत बाद ही सरकार को इस तरह के समारोह का आयोजन करने हेतु कदम उठाने चाहिए थे. दुर्भाग्य से, सरकारें राष्ट्र निर्माण में संतों और सैनिकों के योगदान की पहचान करने में विफल रही है. उन्होंने आशा व्यक्त की कि “प्रेरणा संगम” के माध्यम से आम जनता में एकता, सद्भाव, शांति और समृद्धि का संदेश प्रसारित होगा और पूरा देश सैनिकों के बलिदान और समाज के लिए संतों की निस्वार्थ सेवाओं को मान्यता प्रदान करेगा.

ज्योतिषपीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती जी ने “प्रेरणा संगम” की अध्यक्षता की. कार्यक्रम का विषय था – ‘संत से सेना तक ” और उद्देश्य था – ‘ राष्ट्र धर्म के संदेश का प्रसार’. इस अवसर पर शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी ने कहा कि प्राचीन काल में ऋषियों के हाथों में वेद होते थे, तो उनके स्कंध पर धनुष और पीठ पर तूणीर. वे संत की भूमिका में भी होते थे और सैनिक की भूमिका में भी. एयर मार्शल भूषण गोखले जी ने राष्ट्रीय सीमाओं की रक्षा करने में सैनिकों के बलिदान का पुण्य स्मरण किया. उन्होंने आशा व्यक्त की कि धर्म संस्कृति महाकुंभ निश्चित रूप से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में समर्थ होगा. देश युद्धकाल में सैनिकों के साथ खड़ा रहता है, लेकिन अब उनके पीछे हर समय खड़े होने की जरूरत है.

इस अवसर पर सैनिक परिवारों की 150 “वीर पत्नियों” और “वीर माताओं” को संतों द्वारा सम्मानित किया गया. पदक अर्जित करने वाले सैनिकों को भी सम्मानित किया गया. संतों ने पूरी ताकत के साथ सैनिकों के पीछे खड़ा होने और आत्मबल को प्रेरित करने की शपथ ली.

केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर, मध्यप्रदेश के ऊर्जा मंत्री पारस जैन, अर्चना चिटनीस के अतिरिक्त पूर्व एडमिरल एनसी विज, पूर्व जनरल सैयद अता हसनैन, सांसद योगी आदित्यनाथ महाराज भी कार्यक्रम में सम्माननीय अतिथि थे. धर्म संस्कृति महाकुंभ के राष्ट्रीय संयोजक और देवनाथ मठ अंजनगाँव सुर्जी के पीठाधीश जितेन्द्रनाथ महाराज जी, राष्ट्रसेविका समिति की प्रमुख संचालिका शान्तक्का जी, सीआरपीएफ के आईजी एपी सिंह जी, अन्य गणमान्य लोग कार्यक्रम में उपस्थित थे. विश्व मांगल्य टीम ने अमरज्योति प्रज्ज्वलित करते समय “जागो भारत के जवानो” देशभक्ति पूर्ण गीत का सुमधुर गायन किया.

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