करंट टॉपिक्स

स्वदेशी जागरण मंच, प्रस्ताव – एक … भूमंडलीकरण के अंत का समय

Spread the love

स्वदेशी जागरण मंच की 20, 21 मई को गुवाहाटी (असम) में आयोजित राष्ट्रीय परिषद की दो दिवसीय बैठक में पारित प्रस्ताव

भूमंडलीकरण के अंत का समय –

वर्तमान केंद्र सरकार का आधे से भी अधिक कार्यकाल पूरा हो चुका है. ऐसे में वर्तमान राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय आर्थिक परिदृश्य का मूल्यांकन करने का यह उपयुक्त समय है. वर्ष 2008 से प्रारंभ वैश्विक आर्थिक संकट से विश्व अभी तक उबर नहीं पाया है और इसका प्रभाव किसी न किसी रूप में विश्व के विभिन्न भागों में दिखाई पड़ रहा है. अमरीकी अर्थव्यवस्था में पुनः प्रवर्तन का कार्य अभी चल रहा है. यूरोप गंभीर आर्थिक संकट में है, जापान अस्फीति से संघर्ष कर रहा है और चीन में मंदी प्रारंभ हो चुकी है.

अंकटॉड (UNCTAD) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार आज जबकि दुनिया में जीडीपी 3 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, अंतरराष्ट्रीय व्यापार की वृद्धि दर मात्र 1.5 प्रतिशत रह गयी है. ऐसी स्थिति पिछले 25 वर्षों में नहीं देखी गयी थी. इसका अभिप्राय यह है कि आज विश्व की समृद्धि घरेलू समृद्धि को नहीं, बल्कि घरेलू समृद्धि विश्व की समृद्धि को बढ़ा रही है. अमरीका में डोनाल्ड ट्रंप की ‘अमरीका पहले’ के नारे पर हुई जीत और यूरोपीय संघ से ब्रिटेन का बाहर आना यह इंगित करता है कि वैश्वीकरण का अंत प्रारंभ हो चुका है. फ्रांस और जर्मनी के चुनाव ने भूमंडलीकरण पर बहस को और तीव्र कर दिया है. चीनी अर्थव्यवस्था आंतरिक रूप से कमजोर हुई है और चीन नाजुक वैश्विक परिस्थिति का लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है. अमरीका को अपदस्थ कर वैश्विक नेतृत्व हथियाने की कोशिश में लगा चीन वही कर रहा है जो अमरीका ने कुछ दशक पहले किया था. देवोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में चीनी राष्ट्रपति का वक्तव्य और हाल में बेल्ट रोड इनीशिएटिव (BRI) में इसके भूमंडलीकरण को आगे बढ़ाने की कोशिश आदि इसी दिशा की ओर इंगित करते हैं. यह प्रवृत्ति दिखाती है कि पुनः भूमंडलीकरण की कोशिश शुरू हो गई है.

राष्ट्रऋषि दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के वाक्य कि ‘भूमंडलीकरण मात्र एक क्षण स्थायी चरण है और स्वदेशी ही स्थायी है’, सत्य साबित हो रहा है. यह समझते हुए कि आक्रामक भूमंडलीकरण के दिन लद चुके हैं और अंतरराष्ट्रीय व्यापार की संभावनाएं क्षीण हो रही हैं, अब भारत को सार्थक कदम उठाने होंगे.

अंतरराष्ट्रीय पद्धति के अनुसार जीडीपी एवं अन्य आर्थिक संकेतकों जैसे औद्योगिक उत्पादन सूचकांक आदि के मापन की विधियों में बदलाव के बाद जीडीपी की समृद्धि दर 7.1 प्रतिशत आंकी गई है. आज भारत दुनिया की सबसे तेज बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन चुकी है, लेकिन रोजगार सृजन अभी भी चुनौती बना हुआ है. ताजा रिपोर्ट के अनुसार रोजगार मात्र 1 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. यह एक चिंतनीय स्थिति है. आई.टी. उद्योग में भी भारी रोजगार क्षरण और छंटनी हो रही है. रूकी हुई परियोजनाएं अभी भी शुरू नहीं हुई और एनपीए समस्या में भी सुधार नहीं है. हालांकि विमुद्रीकरण के बाद बैंकों के पास भारी मात्रा में धन एकत्र हुआ है, लेकिन ऋणों में उठाव अभी शुरू नहीं हुआ है, और घरेलू निवेश रूका हुआ है. सरकार ने कई नये क्षेत्रों के लिए एफडीआई खोली है और अन्य क्षेत्रों में इसकी सीमा बढ़ायी है. हालांकि पिछले साल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लगभग 56 अरब डालर रहा, नजदीक से देखने पर पता चलता है कि इसमें से अधिकांश निवेश ‘ब्राउन फील्ड’ निवेश है और ई-कॉमर्स में ही सर्वाधिक निवेश आया है. 50 प्रतिशत से भी अधिक निवेश मॉरिशस और सिंगापुर से प्राप्त हो रहा है. ज्ञातव्य है कि यह देश धन के घुमाव के लिए कुख्यात है. यह भी दिख रहा है कि प्रत्यक्ष निवेश निजी इक्विटी के रूप में आ रहा है, जो इससे कई गुणा आने वाले वर्षों में वापस चला जाएगा. ‘ग्रीन फील्ड’ निवेश अर्थात नये उद्योगों में निवेश बहुत कम है. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का एक अन्य महत्वपूर्ण आयाम यह है कि प्रौद्योगिकी बदलाव के कारण रोजगार घट रहे हैं.

स्वदेशी जागरण मंच वर्तमान सरकार की देश में उत्पादित वस्तुओं को सरकारी खरीद में प्राथमिकता देने की स्वदेशी भावना की सराहना करता है. लेकिन अब समय आ गया है कि सरकारी नीति में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के बजाय घरेलू निवेश को प्रोत्साहन दिया जाए. इस संदर्भ में स्वदेशी जागरण मंच सरकार से मांग करता है कि विश्व में बह रही विभूमंडलीकरण की हवा को ध्यान में रखकर अपने देश के आर्थिक ढांचे की रचना करें. भारत की युवा शक्ति का अपव्यव होने से रोकना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है. भारत की भारी घरेलू मांग एक महत्वपूर्ण अवसर उपलब्ध करा रही है, इसलिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लाभ का अवसर दिये बिना घरेलू मांग पर आधारित आर्थिक मॉडल बनाया जाए. आज जबकि करोड़ों रोजगार उपलब्ध कराने की आवश्यकता है, स्वदेशी जागरण मंच मांग करता है कि सरकार अपने दृष्टिकोण में इन कारकों को प्राथमिकता प्रदान करे. आज जरूरत इस बात की है कि वर्तमान एवं प्रस्तावित सभी अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों की विस्तृत समीक्षा हो और इन्हें अपने लाभ के लिए मोड़ने हेतु व्यापक प्रयास किये जाएं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *