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14 नवम्बर / जन्मदिवस – कथक की साधिका रोहिणी भाटे

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Rohini Bhate- Kathhak Guruविश्व में नृत्य की अनेक विधाएं प्रचलित हैं; पर भारतीय नृत्य शैली की अपनी विशेषता है. उसमें गीत, संगीत, अंग संचालन, अभिनय, भाव प्रदर्शन आदि का सुंदर तालमेल होता है. इससे न केवल दर्शक बल्कि नर्तक भी अध्यात्म की ऊंचाइयों तक पहुंच जाता है; पर ऐसा केवल वही कलाकार कर पाते हैं, जो नृत्य को मनोरंजन या पैसा कमाने का साधन न समझकर साधना और उपासना समझते हैं. भारत की ऐसी ही एक विशिष्ट नृत्य शैली कथक की साधिका थीं डॉ. रोहिणी भाटे.

रोहिणी भाटे का जन्म 14 नवम्बर 1924 को पटना, बिहार में हुआथा. पर इसके बाद का उनका जीवन पुणे में ही बीता. विद्यालयीन शिक्षा के बाद उन्होंने स्नातकोत्तर और फिर कथक में पीएचडी की. 1947 में उन्होंने पुणे में ‘नृत्य भारती’ की स्थापना कर सैकड़ों छात्र-छात्राओं को कथक की शिक्षा दी. उनकी योग्यता को देखकर खैरागढ़ विश्वविद्यालय और कथक केन्द्र, दिल्ली ने उन्हें अपनी परामर्श समिति में स्थान दिया. पुणे विश्वविद्यालय में कथक शिक्षण का पाठ्यक्रम भी उनकी सहायता से ही प्रारम्भ हुआ था.

रोहिणी भाटे विख्यात कथक नर्तक लच्छू महाराज और पंडित मोहनराव कल्याणपुरकर की शिष्या थीं. इसके साथ ही उन्होंने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में विधिवत प्रशिक्षण केशवराव भोले व डॉ. वसंतराव देशपांडे से पाया था. संस्कृत और मराठी साहित्य से उन्हें बहुत प्रेम था. उन्होंने अनेक प्राचीन व नवीन साहित्यिक कृतियों पर नृत्य प्रस्तुत किये. इसलिये उनके नृत्य गीत और संगीत प्रेमियों के साथ ही साहित्य प्रेमियों को भी आकृष्ट करते थे.

उन्हें कथक नृत्य को प्रसिद्धि दिलाने के लिये अनेक मान-सम्मानों से अलंकृत किया गया. 1979 में उन्हें प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी सम्मान मिला. इसके बाद वर्ष 2007 में केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी ने उन्हें अपनी ‘रत्न सदस्यता’ प्रदान की. इससे पूर्व महाराष्ट्र राज्य पुरस्कार, महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार, कालिदास सम्मान जैसे अनेक पुरस्कार भी उन्हें मिले. इसके बाद भी उनकी विनम्रता और सीखने की वृत्ति बनी रही. यदि किसी विश्वविद्यालय से उन्हें प्रयोगात्मक परीक्षा लेने के लिये बुलावा आता, तो वे अवश्य जाती थीं. कथक की नयी प्रतिभाओं से मिलकर उन्हें प्रसन्नता होती थी.

वे साल में एक-दो महीने लखनऊ रहकर लच्छू महाराज से लखनऊ घराने की तथा जयपुर में मोहनराव कल्याणपुरकर से जयपुर घराने की विशेषताएं सीखतीं थीं. वहां से उन्हें जो पाथेय मिलता, पुणे जाकर उसका अनुशीलन और विश्लेषण करती थीं. इस प्रकार प्राप्त निष्कर्ष को फिर अपने तथा अपनी शिष्य मंडली के नृत्य में समाहित करने में लग जातीं. इससे उनके नृत्यों में सदा नूतन और पुरातन का सुंदर समन्वय दिखायी देता था.

नृत्य के साथ उनकी रुचि लेखन में भी थी. उनके शोधपूर्ण लेख कथक गोष्ठियों में बहुत आदर से पढ़े जाते थे. उन्होंने मराठी में अपनी आत्मकथा ‘माझी नृत्यसाधना’ लिखी और आधुनिक नृत्य की प्रणेता आइसाडोरा डंकन की आत्मकथा का मराठी अनुवाद ‘मी आइसाडोरा’ किया. नंदिकेश्वर के अभिनय दर्पण की संहिता का अन्वय, हिन्दी अनुवाद और टिप्पणियों सहित ‘कथक दर्पण दीपिका’ उनके गहरे अध्ययन और अनुभव का निचोड़ है.

जीवन के अंतिम क्षण तक कथक को समर्पित डॉ. रोहिणी भाटे ने अपने घुंघरुओं की ताल व गति को अपनी कर्मस्थली पुणे में 10 अक्तूबर, 2008 को सदा के लिये विराम दे दिया.

 

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