श्री रामेश्वर दयाल शर्मा का जन्म दो सितम्बर, 1927 को अपनी ननिहाल फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था. इनके पिता पंडित नत्थीलाल शर्मा तथा माता श्रीमती चमेली देवी थीं. 1935 में इनके पिताजी का देहांत हो गया, अतः माताजी चारों बच्चों को लेकर अपने मायके फिरोजाबाद आ गयीं. इस कारण सब बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा फिरोजाबाद में ही हुई.
1942-43 में रामेश्वर जी स्वाधीनता सेनानी श्री रामचन्द्र पालीवाल तथा श्री रामगोपाल पालीवाल से प्रभावित होकर फिरोजाबाद के भारतीय भवन पुस्तकालय का संचालन करने लगे. इसी समय आगरा जिले में प्रचारक श्री भाऊ जी जुगाधे के छोटे भाई भैया जी जुगाधे के साथ वे शाखा में जाने लगे. फिरोजाबाद संघ कार्यालय पर श्री बाबासाहब आप्टे के दर्शन एवं वार्तालाप से उनके मन पर संघ के विचारों की अमिट छाप पड़ गयी.
1945 में वे फिरोजाबाद से आगरा आ गये और यमुना प्रभात शाखा में सक्रिय हो गये. इसी समय वे छत्ता वार्ड की कांग्रेस कमेटी के महामंत्री भी थे. 1948 में गांधी जी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबन्ध लग गया. रामेश्वर जी प्रारम्भ में तो भूमिगत रहकर काम करते रहे, फिर संगठन का आदेश मिलने पर श्री भाऊ साहब जुगाधे के साथ सत्याग्रह कर दिया.
जेल से छूटने और प्रतिबन्ध समाप्ति के बाद वे फिर संघ कार्य में सक्रिय हो गये. परिवार के पालन के लिये वे आगरा में सेना की कार्यशाला में नौकरी करने लगे. 1954, 58 और 60 में उन्होंने संघ के तीनों वर्ष के प्रशिक्षण पूरे किये. नौकरी, परिवार और संघ कार्य में उन्होंने सदा संतुलन बनाकर रखा. उनके तीन पुत्र और चार पुत्रियां थीं; पर उन्होंने सादगीपूर्ण जीवन बिताते हुए अपने खर्चे सदा नियन्त्रित रखे. 1960 से 66 तक वे भारतीय मजदूर संघ के प्रदेश सहमंत्री तथा प्रतिरक्षा मजदूर संघ के केन्द्रीय कोषाध्यक्ष भी रहे.
1967 में वे विश्व हिन्दू परिषद में सक्रिय हुये. साधु-संतों के प्रति श्रद्धा होने के कारण उन्हें उ. प्र. में धर्माचार्य संपर्क का काम दिया गया. प्रतिदिन दफ्तर जाने से पहले और बाद में वे परिषद कार्यालय पर आते थे. 1987 में सरकारी सेवा से अवकाश प्राप्त कर वे वि.हि.प के दिल्ली स्थित केन्द्रीय कार्यालय में आ गये. यहां उन्हें केन्द्रीय सहमंत्री की जिम्मेदारी और विश्व हिन्दू महासंघ में नेपाल डेस्क का काम दिया गया. 1996 से वे श्री अशोक सिंहल के निजी सहायक के नाते उनके पत्राचार को संभालने लगे.
अध्यात्म के क्षेत्र में वे पूज्य स्वामी अड़गड़ानंद जी को अपना गुरु मानते थे. उनके प्रवचनों की छोटी-छोटी पुस्तकें बनाकर वे निःशुल्क वितरण करते रहते थे. वर्ष 2009 में उनकी मूत्र ग्रंथि में कैंसर का पता लगा. शल्य क्रिया से कैंसरग्रस्त भाग हटाने पर कुछ सुधार तो दिखाई दिया; पर रोग समाप्त नहीं हुआ. अतः कमजोरी लगातार बढ़ती रही. यह देखकर वे अपने हिस्से के काम दूसरों को सौंपकर अपने बच्चों के पास आगरा चले गये.
आगरा में उपचार तथा देखभाल के साथ कैंसर भी अपना काम करता रहा और धीरे-धीरे वह पूरे शरीर में फैल गया. 10 जून, 2010 को संत बच्चा बाबा ने घर आकर उनके गुरु पूज्य स्वामी अड़गड़ानंद जी का संदेश सुनाया कि अब तुम यह शरीर छोड़ दो. नये शरीर में आकर प्रभु भजन करना. यह संदेश सुनने के कुछ घंटे बाद ही रामेश्वर जी ने संसार छोड़ दिया.
रामेश्वर जी के छोटे भाई राजेश्वर जी संघ के जीवनव्रती प्रचारक थे. वे पहले संघ और फिर भारतीय मजदूर संघ में सक्रिय रहे. उनका देहांत भी आगरा के संघ कार्यालय, माधव भवन में 10 जून, 2007 को ही हुआ था.