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2019-n-CoV से पीड़ितों की मृत्यु दर दूसरे कॉरोना वायरसों से पीड़ितों की मृत्यु दर से कम, फिर भी बना महामारी का कारण

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घर बैठें, सरकार के निर्देशों का पालन करें, योग करें, अच्छा खाएं और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएं

डॉ. शुचि चौहान

कॉरोना वायरसों का अपना एक परिवार है, जिसमें अभी तक कुल 6 वायरस ज्ञात थे. दिसम्बर 2019 में चीन के वुहान में एक नए वायरस की पहचान हुई, जिसे नोवेल कॉरोना वायरस-2019 या SARS-CoV-2 नाम दिया गया. इससे फैलने वाली बीमारी को CoViD-19 कहा गया. इसी परिवार के दो सदस्य SARS-CoV व MERS-CoV पहले भी पूरे विश्व के लोगों की नींद उड़ा चुके हैं. 2003 में सीवियर एक्यूट रेसपिरेटरी सिंड्रोम से विश्व में 8 हजार लोग संक्रमित हुए थे, जिनमें से 8 सौ लोगों की मृत्यु हो गई थी. 2012 में मिडल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम से 2 हजार 5 सौ लोग संक्रमित हुए थे, जिनमें से 9 सौ लोग अकाल काल कवलित हो गए. इस तरह इन बीमारियों से होने वाली मृत्यु दर क्रमश: 10 प्रतिशत व 36 प्रतिशत थी. नोवेल कॉरोना वायरस से विश्व भर में अब तक 5 लाख 3 हजार 218 लोग संक्रमित हो चुके हैं और 22 हजार 340 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. इस तरह वायरस से पीड़ितों की मृत्यु दर 4.4 प्रतिशत है. लेकिन यह बाकियों की तुलना में अत्याधिक संक्रामक है. इसीलिए आज इसे सुपर विलेन की तरह देखा जा रहा है.

नया वायरस होने के कारण इसके विरुद्ध हमारे शरीर में कोई रक्षात्मक प्रणाली विकसित नहीं है. इसलिए यह आसानी से मानव कोशिकाओं में प्रवेश कर जाता है और प्रवेश करने के बाद कोशिका की मशीनरी को हाईजैक कर खुद की संख्या बढ़ाने लगता है.

दरअसल, वायरस एक ऐसा अतिसू़क्ष्म जीव है, जिसका अपना कोई कोशिकीय तंत्र नहीं होता. यह प्रोटीन के खोल (कैप्सिड) के अंदर डीएनए या आरएनए का सिंगल या डबल स्ट्रैंड मात्र है. कैप्सिड के बाहर ग्लाइकोप्रोटीन का बना एक और खोल होता है जिस पर स्पाइक्स होते हैं. प्रत्येक वायरस की स्पाइक्स पर अपने यूनीक रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन होते हैं जो होस्ट सेल से चिपक कर वायरल जीनोम को कोशिका के अंदर प्रवेश करने में मदद करते हैं. वायरस होस्ट के बाहर सुप्तावस्था में रहते हैं, लेकिन जैसे ही होस्ट सेल में प्रवेश करते हैं सक्रिय होकर अपने जीनोम को रेप्लीकेट करने लगते हैं और जीव बीमार हो जाता है. एक बार जब वायरस जीवित कोशिका में प्रवेश कर जाता है, वह कोशिका के मूल डीएनए एवं आरएनए की जेनेटिक संरचना को अपनी जेनेटिक सूचना से बदल देता है और संक्रमित कोशिका अपने जैसी संक्रमित कोशिकाओं का पुनरुत्पादन शुरू कर देती है.

नोवेल कॉरोना वायरस एक आरएनए वायरस है जो मनुष्य के श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है. यह नाक और मुंह से होता हुआ श्वास नली व फेफड़ों में पहुंचता है. इसके रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन गले, श्वास नली व फेफड़ों की कोशिकाओं से चिपक जाते हैं और वायरल जीनोम कोशिकाओं में प्रवेश कर ‘कॉरोना फैक्टरियॉं’ स्थापित कर लेता है. संक्रमण अधिक होने पर फेफड़ों में छोटे-छोटे एअर सैक बन जाते हैं, जिनमें पानी जमने लगता है और सांस लेने में मुश्किल होने लगती है. इस स्थिति में मरीज को वेंटीलेटर पर रखना पड़ता है.

संक्रमण की आरम्भिक अवस्था में सूखी खांसी, सौ डिग्री फैरेनहाइट तक बुखार, सिर दर्द, मुंह का स्वाद बदल जाने जैसे लक्षण दिखायी देते हैं. इस समय शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पूरी ताकत से संक्रमण का मुकाबला करती है. जिन लोगों की प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है, उनका यह कुछ नहीं बिगाड़ पाता. लेकिन ऐसे लोग दूसरे लोगों को संक्रमित कर सकते हैं. संक्रमण के लक्षण 4-14 दिनों में नजर आते हैं. संक्रमण के समय शरीर में साइटोकाइनिन का प्रवाह बढ़ जाता है. शरीर में सूजन आने लगती है.

चूंकि यह मानव से मानव में तेजी से फैलता है और काफी समय तक संक्रमण का पता नहीं चलता. इसीलिए सबको सलाह दी जाती है कि छींकते या खांसते समय मुंह पर कपड़ा रखें. इस दौरान लार के छींटे आसपास न गिरने पाएं, वे संक्रमण का कारण होते हैं. बार बार साबुन से हाथ धोएं.

वैज्ञानिकों का मानना है कि सभी ज्ञात कॉरोना वायरस जानवरों से मनुष्य में आए हैं. इनमें से सार्स, मर्स व नोवेल कॉरोना वायरस को चमगादड़ से उत्पन्न माना जाता है जो क्रमश: सिवेट कैट, ऊंट और पेंगोलिन से मानव में आए माने जाते हैं. चीन में सिवेट कैट और पेंगोलिन को पाला और खाया जाता है. मर्स सऊदी अरब से दुनिया में फैला वहॉं ऊंट पाले और खाए जाते हैं.

सामान्य रूप से कोरोना वायरस एक मानव शरीर से दूसरे मानव शरीर में पहुंचने पर अपनी संरचना बदलता रहता है, जिसे म्युटेशन कहते हैं. लेकिन अभी तक की रिसर्च में सामने आया है कि नोवेल कोरोना वायरस स्टेबल है. भारत व अन्य देशों में मिले नोवेल कोरोना वायरस की जेनेटिक संरचना 99.99 फीसदी वुहान में मिले वायरस के समान पायी गई. इस कारण इस वायरस को रोकने के लिए जब भी कोई वैक्सीन या ड्रग बनेगी, वह लंबे समय तक कारगर रहेगी. लेकिन जब तक ऐसी कोई वैक्सीन या दवा नहीं बनती है, सोशल डिस्टेंसिंग ही महामारी से निपटने का एक मात्र उपाय है. इसलिए घर बैठें, सरकार के निर्देशों का पालन करें, योग करें, अच्छा खाएं और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएं.

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