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27 दिसम्बर / जन्मदिवस – सीमाओं के जागरूक प्रहरी राकेश जी

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rakesh ji 1नई दिल्ली. देश की सीमाओं की रक्षा का काम यों तो सेना का है, पर सीमावर्ती क्षेत्र के नागरिकों की भी इसमें बड़ी भूमिका होती है. शत्रुओं की हलचल की सूचना सेना को सबसे पहले वही देते हैं. अतः उनका हर परिस्थिति में वहां डटे रहना जरूरी है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस विषय के महत्व को देखते हुए ‘सीमा जागरण मंच’ का गठन किया है. इसके राष्ट्रीय संगठन मंत्री थे श्री राकेश जी, जिनका एक कार दुर्घटना में असामयिक निधन हो गया.

राकेश जी का जन्म 27 दिसम्बर, 1954 को मंडी अहमदगढ़ (जिला संगरूर, पंजाब) में हुआ था. उनके पिता श्री रामेश्वर दास जी तथा माता श्रीमती सुशीला देवी थीं. परिवार में सब लोग संघ से जुड़े थे. राकेश जी भी शाखा कार्य में बहुत सक्रिय थे. 1973 में अबोहर से उन्होंने प्रथम वर्ष संघ शिक्षा वर्ग किया.

आपातकाल में चंडीगढ़ के पास सोहाना में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था. उसमें बोलने के लिए इंदिरा गांधी जैसे ही खड़ी हुईं, पूर्व विधायक श्री ओमप्रकाश भारद्वाज तथा राकेश जी के नेतृत्व में स्वयंसेवकों ने सत्याग्रह कर दिया. पूरा पंडाल भारत माता की जय, तानाशाही खत्म करो..आदि नारों से गूंज उठा. पुलिस वाले भौचक रह गये. प्रधानमंत्री के सामने उनकी नाक कट गयी. अतः वे लाठी बरसाने लगे. घुड़सवार पुलिस ने सत्याग्रहियों पर घोड़े दौड़ा दिये. पंडाल में खून ही खून फैल गया तथा सभा समाप्त हो गयी.

पुलिस ने सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर लिया. थाने में राकेश जी की खूब पिटाई हुई और फिर उन्हें 19 महीने के लिए पटियाला जेल भेज दिया गया. राकेश जी ने जेल में रहते हुए ही अर्थशास्त्र में एम.ए. किया तथा फिर प्रचारक बन गये. क्रमशः वे पठानकोट तहसील, गुरदासपुर जिला, अमृतसर विभाग, संभाग और फिर पंजाब के सहप्रांत प्रचारक बने. उन दिनों वहां आतंक से डर कर हिन्दू भाग रहे थे. ऐसे में वे लगातार प्रवास कर सबका मनोबल बढ़ाते रहे तथा हिन्दू-सिख एकता के सूत्र सर्वत्र गुंजाते रहे. पंजाब में ‘राष्ट्रीय सुरक्षा समिति’ का संचालन तथा युवाओं के प्रशिक्षण का कार्य भी उन्हीं पर था.

इसके बाद जम्मू-कश्मीर के प्रांत प्रचारक रहते हुए भी उन्होंने आतंक, हत्या और पलायन के दौर में विस्थापितों की सेवा और व्यवस्था का उल्लेखनीय काम किया. इस दौरान उन्होंने सीमावर्ती क्षेत्र में होने वाली विदेशी और विधर्मी गतिविधियों का गहन अध्ययन किया. जब यह बात संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के सामने रखी गयी, तो उन्होंने इसके लिए एक अलग संगठन ‘सीमा जागरण मंच’ बनाकर इसकी जिम्मेदारी राकेश जी को ही दे दी.

अब राकेश जी ने उन राज्यों का सघन प्रवास किया, जिनकी सीमा दूसरे देशों से लगती हैं. उन्होंने स्थानीय समितियां बनाकर सीमांत गांवों में सेवा और संस्कार के केन्द्र खोले. उन्होंने ग्रामीणों को सेना के पीछे दूसरी सुरक्षापंक्ति के रूप में डट कर खड़े रहने के लिए तैयार किया. इसके लिए ‘सीमा सुरक्षा जनचेतना यात्रा’ तथा फिर ‘सरहद को प्रणाम’ जैसे रोचक व रोमांचक कार्यक्रम किये गये. हर राज्य से 10 उत्साही युवक इसमें शामिल हुए. इसमें ‘सीमा सुरक्षा बल’ के साथ ‘फिन्स’ जैसी स्वयंसेवी संस्था ने भी सहयोग दिया.

सादगी के प्रेमी राकेश जी प्रायः रेल में साधारण श्रेणी में ही यात्रा करते थे. फौजी टोपी तथा बड़ी-बड़ी मूंछें उन पर खूब फबती थीं. इससे लोग उन्हें कोई पूर्व सैन्य अधिकारी ही समझते थे.  12 जून, 2014 को राजस्थान में जैसलमेर से जोधपुर के बीच सोडाकोर गांव के पास उस कार का पिछला टायर फट गया, जिसमें वे यात्रा कर रहे थे. इससे गाड़ी कई बार पलट गयी. इस दुघर्टना में राकेश जी तथा कार चला रहे जैसलमेर जिले के संगठन मंत्री श्री भीकसिंह जी का वहीं निधन हो गया. एक अन्य कार्यकर्ता श्री नीम्ब सिंह बुरी तरह घायल हुए, जबकि श्री अशोक प्रभाकर को भी काफी चोट आयी.

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