भारत की सबसे बड़ी विशेषता उसकी परिवार प्रणाली है. घर से ही बालक के मन पर संस्कार पड़ते हैं; पर इन दिनों संयुक्त परिवार के विखंडन, शहरीकरण तथा भौतिकता की होड़ के कारण लोग इस ओर ध्यान नहीं दे पाते. केरल में बच्चों को धर्म, संस्कृति और देशप्रेम के संस्कार देने हेतु ‘बाल गोकुलम्’ नामक एक संस्था काम करती है.
इसके संस्थापक श्री एम.ए.कृष्णन का जन्म कोल्लम जिले के एक गांव में 28 जनवरी, 1928 को हुआ था. अध्ययन, अध्यापन और संस्कृत में रुचि होने के कारण संस्कृत की सर्वोच्च परीक्षा ‘महोपाध्याय’ उत्तीर्ण कर वे संस्कृत के अध्यापक बने गये.
महाराजा संस्कृत विद्यालय, त्रिवेन्द्रम में पढ़ते समय उनका सम्पर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से हुआ, जो क्रमशः बढ़ता ही गया. कुछ समय तक अध्यापन करने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़कर प्रचारक जीवन अपना लिया. अपने परिश्रम से केरल के अनेक जिलों में उन्होंने संघ का काम खड़ा किया.
श्री कृष्णन की रुचि अध्ययन और अध्यापन के साथ ही लेखन में भी थी. यह देखकर 1964 में उन्हें कोझीकोड से मलयालम भाषा में प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक समाचार पत्र ‘केसरी’ के मुख्य सम्पादक की जिम्मेदारी दी गयी.
इस दौरान उन्होंने केरल में हो रहे सामाजिक व राजनीतिक परिवर्तन के बारे में राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखकर विविध सामग्री प्रकाशित की. इससे केसरी की लोकप्रियता बढ़ने लगी. उन्होंने केरल के सभी प्रतिष्ठित लेखकों की रचनायें केसरी में प्रकाशित कर उन्हें भी हिन्दुत्व की मुख्य धारा से जोड़ा.
केसरी का सम्पादन करते हुए उनका ध्यान बच्चों की संस्कारहीनता की ओर गया. दूरदर्शन तथा दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली के कारण नयी पीढ़ी को अपने देश और धर्म से कटता देख 1974 में उन्होंने ‘बाल गोकुलम्’ की स्थापना की. केरल के तत्कालीन प्रांत प्रचारक श्री भास्करराव तथा दक्षिण के क्षेत्र प्रचारक श्री यादवराव जोशी का आशीर्वाद मिलने से इस कार्य ने गति पकड़ ली.
बाल गोकुलम् की कार्यप्रणाली बहुत सरल है. इसमें नगर, गांव या मोहल्ले के 100-150 बच्चों को सप्ताह में एक बार किसी मंदिर, विद्यालय या सार्वजनिक स्थान पर डेढ़ घंटे के लिये एकत्र किया जाता है. यहां उन्हें गीत, कविता, कहानी, खेल, नृत्य आदि के माध्यम से अपने देश और धर्म के बारे में जानकारी दी जाती है.
जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण रूप सज्जा की प्रतियोगिता कर उन सब स्वरूपों की शोभायात्रा निकाली जाती है. कुछ ही वर्ष में केरल के कई नगरों में यह शोभायात्रा इतनी भव्य होने लगी कि प्रशासन को विद्यालयों में छुट्टी घोषित करनी पड़ी. शोभायात्रा में बच्चों के साथ उनके परिवारजन भी चलते हैं. लोग स्वागत द्वार बनाते हैं, जिससे पूरा नगर और गांव श्रीकृष्णमय हो जाता है. 1981 से यह प्रयोग पूरे देश में होने लगा.
इसके बाद श्री कृष्णन ने 1975 में कला एवं साहित्य के क्षेत्र में ‘तपस्या’ नामक संस्था बनाई. 1984 में ‘बाल साहिति प्रकाशन’ के माध्यम से बच्चों के लिये पुस्तकों का प्रकाशन प्रारम्भ किया. 1986 में ‘अमृत भारती विद्यापीठ’ स्थापित की, जो संस्कृत की परीक्षायें आयोजित करता है. इसी प्रकार 2007 में ‘अन्तरराष्ट्रीय श्रीकृष्ण केन्द्र’ की स्थापना हुई, जहां श्रीकृष्ण लीलाओं की जीवंत झांकियों का निर्माण हो रहा है.
श्री एम.ए कृष्णन 1980 से 84 तक केरल प्रांत के बौद्धिक प्रमुख तथा 1985 से 92 तक प्रचार प्रमुख भी रहे. इन दिनों बाल गोकुलम् के प्रयोगों को भारत के साथ ही अमेरिका, इंग्लैंड तथा अरब देशों में भी लोग अपना रहे हैं. ईश्वर उन्हें स्वस्थ रखे, यही कामना है.