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28 जुलाई / जन्मदिवस – विश्व हिन्दू परिषद और केशवराम शास्त्री

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keshav ram shashtriगुजरात में ‘विश्व हिन्दू परिषद’ के पर्याय बने श्री केशवराम शास्त्री का जन्म 28 जुलाई, 1905 को हुआ था. उनके पिता का नाम श्री काशीराम था. धार्मिक परिवार में जन्म लेने के कारण शास्त्री जी को बालपन से ही हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अध्ययन में विशेष आनन्द मिलता था. वे अद्भुत मेधा के धनी थे. उन्होंने सैकड़ों ग्रन्थों की रचना की. संयमित जीवन, सन्तुलित भोजन और नियमित दिनचर्या के बल पर वे 102 वर्ष तक सक्रिय रह सके.

1964 की जन्माष्टमी पर मुम्बई के सान्दीपनी आश्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री गुरुजी और हिन्दू समाज के अनेक मत-पन्थों के विद्वानों एवं धर्मगुरुओं की उपस्थिति में विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना हुई. श्री केशवराम शास्त्री वहाँ उपस्थित थे. परिषद की स्थापना की घोषणा होते ही उन्होंने गुजरात प्रदेश विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना की और अपना जीवन इसके लिये समर्पित कर दिया.

अपने घर आकर वे गुजरात में विश्व हिन्दू परिषद को सबल बनाने में लग गये. इसके लिये उन्होंने गुजराती भाषा में ‘विश्व हिन्दू समाचार’ नामक पत्र निकाला. 26 वर्ष तक वे उसके सम्पादक रहे. वे कहते थे कि मैं मूलतः साहित्यिक जीव हूँ. लेखन मेरा मुख्य कार्य है. इसलिये यह पत्र मेरी गोद ली हुई सन्तान है. उसका काम दूसरे कार्यकर्त्ता को सौंपने के बाद भी वे उसके लिये लगातार लिखते रहे और उसके प्रकाशन की चिन्ता करते रहे.

परिषद के पहले राष्ट्रीय अधिवेशन की चर्चा होने पर शास्त्री जी ने उसे गुजरात में करने का प्रस्ताव दिया. उनके आग्रह पर सिद्धपुर में यह अधिवेशन सम्पन्न हुआ. उन्होंने अपने संगठन कौशल के बल पर गुजरात में परिषद का मजबूत तन्त्र खड़ा किया. 7,000 गाँवों में परिषद की समितियाँ उनके सामने खड़ी हो गयीं थीं. सेवा कार्यों पर भी उनका बहुत जोर था. वनवासी क्षेत्र हो या नगरों के निर्धन हिन्दू परिवार; सबके बीच में शिक्षा और चिकित्सा के अनेक प्रकल्प उन्होंने प्रारम्भ कराये. इससे ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित धर्मान्तरण के षड्यन्त्रों पर रोक लगी और परावर्तन का क्रम प्रारम्भ हुआ.

शास्त्री जी का सब कार्यकर्ताओं से आग्रह रहता था कि वे संगठन के विस्तार के लिये समय दें. वे स्वयं प्रवास तो करते ही थे; पर प्रतिदिन शाम को चार से पाँच बजे तक विश्व हिन्दू परिषद कार्यालय पर अवश्य आते थे. अस्वस्थ होने पर कार्यकर्त्ताओं को अपने घर बुलाकर उनसे संगठन सम्बन्धी बात करते रहते थे. स्वर्गवास से दो दिन पूर्व उन्होंने कहा था कि यदि मैं खड़ा हो सका, तो सबसे पहले परिषद कार्यालय पर जाना चाहूँगा.

जब वे 75 वर्ष के हुये, तो गुजरात विश्व हिन्दू परिषद ने उनका ‘अमृत महोत्सव’ मनाया और उनके शतायु होने की कामना की. शास्त्री जी ने अपने अभिनन्दन के प्रत्युत्तर में कहा – “परिषद के विविध कार्य और सेवा प्रकल्प ही मुझमें प्राणबल की पूर्ति करते हैं. जीना है तो इसी ध्येय के लिये जीना, ऐसी हृदय में दृढ़ता है और परमात्मा इसे पूरा करेंगे, ऐसी मेरी आत्मश्रद्धा है.”

छह दिसम्बर, 1992 को बाबरी ढाँचा गिरने पर वे गिरफ्तार कर लिये गये. उन्होंने घोर वृद्धावस्था में भी जेल जाना स्वीकार किया; पर झुकना नहीं. ऐसे समर्पित कार्यकर्त्ता ने नौ सितम्बर, 2006 को अपने जीवनकार्य को विराम दिया. उनकी इच्छानुसार उनके पार्थिव शरीर को विश्व हिन्दू परिषद कार्यालय लाया गया. इसके बाद ही उनका अन्तिम संस्कार हुआ.

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